हिंदी उपन्यास/प्रेमचंद
प्रेमचंद का व्यक्तित्व परिचय -
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई सन् 1880 को उत्तर प्रदेश में बनारस शहर से चार मिल दूर लमही गांव में हुआ था । उनके बचपन का नाम धनपतराय था । इनके पिता का नाम श्री अजायबराय तथा माता का नाम श्रीमती आनंदी देवी था । उनका बचपन गरीबी और कष्टों में व्यतीत हुआ था । पिता डाकखाने में क्लर्क का काम करते थे । आमदनी इतनी कम थी कि परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से होता था । प्रेमचंद की माँ अस्वस्थ रहती थी । जब वह 8 वर्ष के थे , कि उनकी माता का स्वर्गवास हो गया । ये मातृ - स्नेह से वंचित हो गए । जब वह मिडिल में थे , उन्होंने उपन्यास पढ़ना शुरू कर दिया था । अपने जीवन में अंत तक गरीबी , अभाव शोषण और उत्पीड़न जैसी जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते रहे । किंतु ये परिस्थितियाँ कभी भी प्रेमचंद के साहित्य की ओर उनके झुकाव को रोक न पाई । उनकी आरम्भिक शिक्षा गांव के स्कूल में उर्दू - फारसी से आरम्भ हुई । 15 वर्ष की आयु में विवाह हो गया । प्रेमचंद का वैवाहिक जीवन भी अत्यंत कष्टपूर्वक बीता ।
साहित्यिक परिचय
[सम्पादन]प्रेमचंद हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार हैं । उनकी अनेक रचनाओं की गणना कालजयी साहित्य के अंतर्गत की जाती है । प्रारम्भ में प्रेमचंद नबाबराय के नाम से उर्दू में कहानियों लिखते रहे । 1901 से 1906 तक उर्दू में कहानियाँ लिखने के बाद हिन्दी में आये और प्रेमचंद के नाम से प्रसिद्ध हो गए । प्रेमचंद का साहित्य 20 वीं सदी की भारतीय पीड़ा , त्रासदी और प्रतिरोध का दस्तावेज है ।
प्रेमचंद के उदय के साथ ही हिन्दी उपन्यास के क्षेत्र में एक नया मोड़ आता है । उनसे पहले हिन्दी उपन्यास में कौतुहल , तिलिस्म तथा ऐयारी की प्रधानता थी । सुधारवादी भावनाओं को चित्रित किया जाता रहा था । इस प्रकार के उपन्यासों का लक्ष्य केवल मनोरंजन था । प्रेमचंद ने सामाजिक , राजनैतिक समस्याओं के प्रति उन्मुख होकर उपन्यास लिखे । जिससे एक नई विचारधारा का सूत्रपात हुआ । उन्होंने स्वयं अपने जीवन में अनेक समस्याओं का सामना किया था ।
निम्न वर्ग और प्रेमचंद
[सम्पादन]वे निम्न वर्ग की समस्याओं के प्रति जागरूक रहे हैं । ' सेवासदन ' उनका पहला उपन्यास था । जो 1918 में प्रकाशित हुआ है । इसमें दहेज तथा वेश्यावृत्ति की समस्या को उभारा गया है । प्रेमाश्रम ' में सामाजिक बुराइयों , शोषण अत्याचार का चित्रण हुआ है । प्रेमचंद के उपन्यासों में गांधीवादी विचारधारा का प्रभाव लक्षित होता है । ' रंगभूमि ' उपन्यास में इसी विचारधारा के दर्शन होते हैं । इसके पश्चात प्रेमचंद ने ' कायाकल्प ' , ' गबन ' , ' कर्मभूमि ' उपन्यास लिखे । उनका अंतिम उपन्यास ' गोदान ' है । जो 1936 में प्रकाशित हुआ । इस उपन्यास में कृषक जीवन की त्रासदी का ऐसा सुंदर चित्रण हुआ है कि इस उपन्यास की गिनती हिन्दी के श्रेष्ठ उपन्यासों में होती है । इन उपन्यासों में जो समस्याएं उठाई गई हैं । ये आज भी सार्थक प्रतीत होती है । भारतीय समाज विशेष कृषक जीवन का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया गया है ।