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हिंदी उपन्यास/फणीश्वरनाथ रेणु

विकिपुस्तक से

जीवनी-

फणीश्वर नाथ ' रेणु ' का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के अररिया जिले में फॉरबिसगंज के पास औराही हिंगना गाँव में हुआ था। उनकी शिक्षा भारत और नेपाल में हुई। इन्होने इन्टरमीडिएट काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1942 में की जिसके बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। बाद में 1950 में उन्होने नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में भी हिस्सा लिया जिसके परिणामस्वरुप नेपाल में जनतंत्र की स्थापना हुई। पटना विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ छात्र संघर्ष समिति में सक्रिय रूप से भाग लिया और जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति में अहम भूमिका निभाई। १९५२-५३ के समय वे भीषण रूप से रोगग्रस्त रहे थे जिसके बाद लेखन की ओर उनका झुकाव हुआ। उन्होंने हिंदी में आंचलिक कथा की नींव रखी। सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय, एक समकालीन कवि, उनके परम मित्र थे। इनकी कई रचनाओं में कटिहार के रेलवे स्टेशन का उल्लेख मिलता है।

उपन्यास

रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।

उपन्यास:-'मैला आंचल' (१९५४), 'परती : परिकथा'(१९५७), 'दीर्घतपा"(१९६२), 'जुलूस' (१९७५), 'कितने चौराहे' (१९६६), पल्टू बाबू रोड (मरणोपरांत १९७९ में प्रकाशित)[]

मैला आंचल

'मैला आंचल' मिथिला में पूर्णिया जिले के एक छोटे से गांव मेरीगंज पर केंद्रित है। नील की खेती करवाने वाले किसी अंग्रेज की पत्नी के नाम पर हुआ यह नामकरण अंग्रेजों के चले जाने के बाद भी जनमानस में स्वीकृत है। यह पिछड़ा हुआ गांव है। इसमें तीन दल प्रमुख है: कायस्थ, राजपूत और यादव। गांव में अशिक्षा का बोलबाला है। रेणु मेरीगंज के माध्यम से संपूर्ण भारतीय ग्राम समाज की कहानी कहते हैं। डॉ प्रशांत गांव के मलेरिया सेंटर में डॉक्टर बनकर आता है। कायस्थ टोली के मुखिया तहसीलदार विश्वनाथ प्रसाद की बेटी कमला से उसका संपर्क रागतत्व में बदल जाता है उपन्यास में इसी प्रकार की क‌ई और कथाएं है, बलदेव और लक्ष्मी की कथा, महंत रामदास और रामपियरिया, कालीचरण और बावनदास आदि के कथा प्रसंग को जोड़कर लेखक गांव और इसके माध्यम से सम्पूर्ण देश की स्थिति का आकलन करना चाहते हैं। देश की स्वाधीनता के बाद, नवनिर्माण और योजनाओं के दौर में मेरीगंज सबसे अछूता नहीं रहता मलेरिया का उन्मूलन का कार्यक्रम जैसे गांव के पुराने और बंद समाज के लिए एक बहुत बड़ा उत्साह है।

मैला आंचल में अंचल की सांस्कृतिक और लोकतांत्रिक विशेषताओं पर लेखक ने खूब ध्यान दिया है। इस उपन्यास के पात्र अपने इस अंचल से बहुत आत्मीय भाव से जुड़े हैं। एक गांव के रूप में मेरीगंज को समूचे राष्ट्र के प्रतिकवत् स्वीकृति किया गया है। यह लेखक के हस्तक्षेप से स्वतंत्र, गांव में जातिवाद की राष्ट्रीय स्तर पर पैदा होती बुराई, अमानवीयता की हद तक क्रूर अधिकारी, राजनीति में सांठ गांठ का वर्चस्व, मठों और आश्रमों का पाखंड आदि चीज़ें को उजागर किया गया हैं।

भाषा और शिल्प के स्तर पर मैला आंचल ग्राम समाज के छोटे-छोटे चित्रात्मक और लोक तत्व का आबाध उपयोग किया गया है। इसके अलावा शब्दों को तोड़ मरोड़ कर उन्हें एक खास स्थानीय रंग में ढालने का आग्रह आदि इसको एक विभिन्न प्रकार के रचना के रूप में प्रस्तुत करते है।[]

परती परिकथा

इसमें पारनपुर गांव कथा के केंद्र में है। गांव में जातियों और उपजातियों की स्थिति वैसे ही है। विभिन्न सरकारी योजनाओं, ग्राम समाज सुधार और विकास योजनाएं, जमींदारी उन्मूलन, लैंड सर्वे ऑपरेशन, कोसी योजना आदि के प्रति लोगों में अपार उत्साह है। उपन्यास का नायक जितेंद्र जित्तन अपने निजी अनुभव से राजनीति की जिस कटुता और दुरभि संधि के प्रति वितृष्णा पाल लेता है, लेखक ने उसे ही एक आदर्श स्थिति मानकर प्रस्तुत किया है। परती परीकथा के कथा सूत्र जित्तन और उसके पिता शिवेंद्र नाथ मिश्र से जुड़कर ग्राम समाज के प्रतिनिधि अंकन को एक रोचक प्रेम कथा में परिवर्तित कर देते हैं। उसे परती कि परिकथा अर्थात धूसर, विरान और अंतहीन प्रांतर अर्थात् निर्जन पथ की कथा के रूप में परिकल्पित किया गया और पूरी कहानी को शिवेंद्र ताजमनी और जीत्तन इरावती की प्रेम कथा में सीमित कर दिया गया है।

जूलूस

जुलूस उपन्यास पूर्वी बंगाल की एक विस्थापित युवती पवित्रा को केंद्र में रखकर चलता है। रेणु विभिन्न विशेषताओं एवं सामाजिक व्यवहार वाले मनुष्यों का एक चित्र सामाजिक जुलूस के रूप में यहां देते हैं। लेकिन आंचलिकता के प्रति उनमें कोई उत्साह यहां दिखाई नहीं देता। इस उपन्यास को पढ़कर बिहार की और बिहार के माध्यम से समूचे देश की राजनीतिक विकृतियों का कुछ पूर्वाभास अवश्य पाया जा सकता है।

सन्दर्भ

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  1. मधुरेश, हिंदी उपन्यास का विकास, इलाहाबाद, सुमित प्रकाशन p.140-143
  2. मधुरेश, हिंदी उपन्यास का विकास, इलाहाबाद, सुमित प्रकाशन p.140-143