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हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/नासिका वर्णन

विकिपुस्तक से

नांक सरूप न बरने पारो। तिनिऊ भुवन हेरी कै हारो।

कीर ठोर औे खरग कै धारा। तिलक फूल मै बरनी न पारा।

उदयागिरी जौ कहौ तौ नाही। ससी सुरुज दुई बाद कराही।

निकट न कोउअ संचरै पारा। निसी दिन जिये सो बास अधारा।

केही दे जोर पटतरो नासा। ससि सूरज जेही करह बतासा।

नाक , सरुप सोहगिनी केहि ले लावाै भाऊ

जा कस ससि सुरुज निसि बासर ओसारी बाऊ।