सामग्री पर जाएँ

हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/भ्रम विघौसण कौ अंग

विकिपुस्तक से
हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)
 ← साँच कौ अंग भ्रम विघौसण कौ अंग भेष कौ अंग → 
भ्रम विघौसण कौ अंग


(3)

कबीर पाँहन केश पूतला, करि पूजै करतार।

इह र भरोसे जे रहे, ते बूड़े कली धार।।


(4) मन मथुरा दिल द्वारिका काया काशी जाणि

दसवां द्वार देहुरा, तामै जोति पिछाणि।