हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/भ्रम विघौसण कौ अंग
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(3)
कबीर पाँहन केश पूतला, करि पूजै करतार।
इह र भरोसे जे रहे, ते बूड़े कली धार।।
(4)
मन मथुरा दिल द्वारिका काया काशी जाणि
दसवां द्वार देहुरा, तामै जोति पिछाणि।
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(3)
कबीर पाँहन केश पूतला, करि पूजै करतार।
इह र भरोसे जे रहे, ते बूड़े कली धार।।
(4)
मन मथुरा दिल द्वारिका काया काशी जाणि
दसवां द्वार देहुरा, तामै जोति पिछाणि।