सामग्री पर जाएँ

हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/विनय तथा भक्ति

विकिपुस्तक से
हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)
 ← सूरदास के पद विनय तथा भक्ति गोकुल लीला → 
विनय तथा भक्ति


रोरो मन अनत कहाँ सुख पावे।

जैसे उड़ि जहाज की पंछि, फिरि जहाज पर आवै।

कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै।

परम गंग को छाँड़ि पियसो, दुरमति कूप खनावै।

जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल खावै।

'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै।