हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/श्रीकृष्ण का प्रेम
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श्रीकृष्ण का प्रेम
जहाँ - जहाँ पग जुग धरई। तहि - तहि सरोरूह झाराई।
जहाँ - जहाँ झलकत अंग। तही तही बिजुरीजूज तरंग।।
कि हेरल अपुरब गोरी। पैठलि हियमधि मोरि।।
जहाँ - जहाँ नयन बिकास। तही तही कमल प्रकाश।।
जहाँ लहु हास संचार। तही तही अमिय बिकार।।
जहाँ - जहाँ कुटिल कटाख ततहि मदन सर लाख।।
हेरइत से धनि थोर। अब तीन भुवन अगोर।।
पुनु किए दरसन पाब। अब मोहे ई दुख जाब।।
विद्यापति कह जानि। तुअ गुन देहब आनि।।