सामग्री पर जाएँ

हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/श्रीकृष्ण का प्रेम

विकिपुस्तक से
हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)
 ← वंदना श्रीकृष्ण का प्रेम राधा का प्रेम → 
श्रीकृष्ण का प्रेम


श्रीकृष्ण का प्रेम


जहाँ - जहाँ पग जुग धरई। तहि - तहि सरोरूह झाराई।

जहाँ - जहाँ झलकत अंग। तही तही बिजुरीजूज तरंग।।

कि हेरल अपुरब गोरी। पैठलि हियमधि मोरि।।

जहाँ - जहाँ नयन बिकास। तही तही कमल प्रकाश।।

जहाँ लहु हास संचार। तही तही अमिय बिकार।।

जहाँ - जहाँ कुटिल कटाख ततहि मदन सर लाख।।

हेरइत से धनि थोर। अब तीन भुवन अगोर।।

पुनु किए दरसन पाब। अब मोहे ई दुख जाब।।

विद्यापति कह जानि। तुअ गुन देहब आनि।।