हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/कवितावली/(१)बालकांड
सन्दर्भ
[सम्पादन]प्रस्तुत पद भक्तिकालीन सगुण काव्यधारा के रामभक्ति-शाखा के प्रवर्तक कवि तुलसीदास द्वारा रचित 'कवितावली' से लिया गया है। यह 'कवितावली' खंडकाव्य के बालकाण्ड का यह प्रथम छंद है।
प्रसंग
[सम्पादन]इसमें वे श्रीराम की बाल-छवि का वर्णन कर रहे हैं। एक सखी अपनी सखी से श्रीराम ने नेत्रों के सौन्दर्य का वर्णन कर रही है। सखी का कहना है कि-
व्याख्या
[सम्पादन]अवधेस के द्वारे सकारे गई सुत गोद में भूपति लै निकसे।
अवलोकि हौं सोच बिमोचन को ठगि-सी रही,जे न ठगे धिक-से।
'तुलसी' मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन जातक-से।
सजनी ससि में समसील उभै नवनील सरोरुह-से बिकसे।।
हे सखि ! आज मै प्रात: काल अयोध्यापति राजा दशरथ के दरवाज़े पर गई थी, उस समय राजा अपनी गोंद में श्रीराम को लिए हुए बाहर निकले। कहने का अभिप्राय यह है कि सखी के हृदय में श्रीराम की बाल-छवि दर्शन की उत्कट अभिलाषा थी। जैसे ही वह वहाँ पहुँची उसे भगवान् श्रीराम के दर्शन हो गए। उसके दर्शन करने की लालसा पूर्ण हो गई। भगवान् श्रीराम की अद्भुत छवि के दर्शन कर मैं ठगी-सी रह गई और अपनी सुध-बुध भी खो बैठी। उस समय श्रीराम की छवि अत्यंत अनुपम थी, जो उस छवि के दर्शन न कर सका, वास्तव में उसके जीवन को धिक्कार है।
दूसरे शब्दों में, उनका जीवन व्यर्थ है। श्रीराम के नेत्र खंजन पक्षी के बच्चे के नेत्र के समान अत्यंत सुंदर हैं और देखते ही मन को विमोहित करने वाले हैं श्रीराम के सुंदर युग-नेत्र ऐसे प्रतीत होते हैं मानो शशि-मण्डलमें समान रूप वाले दो नवीन नील-कमल विकसित-पुष्पित हो गए हों।
विशेष
[सम्पादन]1. बाल राम की चित्ताकर्षक झाँकी प्रस्तुत करते हुए कवि ने उनके नेत्रों का सुंदर चित्रण किया है।
2. इसमें अनुप्रास, उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार है।
3. सवैया छंद है।
4. अवधी भाषा है।
5. भाव-साम्य के लिए निम्न अंश देखें-
काम कोटि छवि स्याम सरीरा। नील कज बारिद गम्भीरा ............ रूप सकहिं नहिं श्रुति सेषा। सो आने सपनेहुँ जेहि देखा।- (रामचारितमानस)
6. सूरदास ने श्रीकृष्ण के नेत्रों के सौंदर्य का वर्णन इस प्रकार किया है -
देखरी हरि के चंचल नैन।
खंजन मौन - मृगज चपलाई , नहिं पटतर इक सैन।
7. गुण - माधुर्य
8. रस - वातसल्य
शब्दार्थ
[सम्पादन]अवधेस - अयोध्या के स्वामी; राजा दशरथ। सकारे - प्रात: काल। सुत = पुत्र। भूपति = राजा। निकसे - निकले। अवलोकि - देखकर। हौं - मैं सोच-बिमोचन - शोक से विमुक्त करने वाले। ठगि-सी = आश्चर्यचकित। धिक - धिक्कार योग्य। मन-रंजन = मन को आनंदित करने वाले। खंजन = पक्षी विशेष जो अपने नेत्रों की सुंदरता के लिए विख्यात है। जात = बच्च। ससि = चन्द्रमा। उभै = दोनों। सरोरुह = कमल। बिकसे - विकसित होना;खिलना।