सामग्री पर जाएँ

हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/केश वर्णन

विकिपुस्तक से
हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका
 ← मंझन-कृत 'मधुमालती' केश वर्णन नेत्र वर्णन → 
केश वर्णन
मंझन/

सन्दर्भ

[सम्पादन]

प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि मंझन द्वारा रचित हैं। यह उनकी कृति 'मधुमालती' से अवतरित हैं।

प्रसंग

[सम्पादन]

'केश-वर्णन' के अंतर्गत कवि ने मधुमालती के बालों की सुंदरता तथा उसकी रूप-सज्जा की चर्चा की है। उसके बालों को, सर्प जो विषधर के रूप में आंकने की कोशिश की है। ये बाल उसके रूप-सौंदर्य को बढ़ाने में सहायक हैं। कवि ने तरह-तरह से उसकी अन्य उपकरणों से तुलना की है। वे कहते हैं-

व्याख्या

[सम्पादन]

तेहि पर कच बिखधर बिख-सारे......मनमथ रोपा जाल।।

मधुमालती के केश (बाल) उस पर ऐसे प्रतीत हो रहे हैं जैसे जहर से भरे हुए सर्प काले रंग के होते है, वैसे ही उसके केश हैं। अर्थात् वे सर्प के समान काले रंग को धारण किए हुए हैं। वे लम्बे एवं घने काले हैं उसके बाल लम्बे होने के साथ-साथ लहराते हुए हैं। वे हवा के झोंकों से हवा में लहरा रहे हैं। वे आसानी से हवा में लहरा रहे हैं। वे केश अपने आप में ऐसे लग रहे हैं जैसे वे सकपका रहे हों। ये बाल जहर से युक्त हैं। वे हत्यारे लग रहे हैं। जहरीले सर्प अपने जहर की वजह से हत्यारे लगते हैं वैसे ही उसके बाल प्रतीत हो रहे हैं। रात के समय जब उजाला अपना प्रकाश चारों तरफ फैलाता है ठीक उसी प्रकार उसके गौरे या सफ़ेद मुख पर ये बाल ज्यादा ही चमक हे हैं। चेहरे की शोभा उन काले बालों से बढ़ रही है। जैसे वे बाल अपना खेल खेल रहे हों। वे तरह-तरह से हिल-डुल रहे हैं। सर्प भी इधर-उधर लहरें खाकर चलता है। केश नहीं हो रहे हैं विरही वे मानों अपने मन के सम्पूर्ण दुख को व्यक्त कर रहे हों ।

केश मधुमालती के चेहरे पर अपना सिंगार बिखेर रहे हैं अर्धत् उन काले बालों से उसके चेहरे की शोभा बढ़ रही है। उस पर वह दसों दिशाओं को भूल गई है। उसे अपना ही ध्यान है। मानो उसके केश अपना परिचय सारे संसार को देना चाह रहे हों। उस सुहागिनी के केश इधर-उधर बिखर कर-फैल रहे हैं। सारा संसार अँधरे में डूब गया हो। अर्थात् संसार में अँधेरा हो गया हो। विरही लोग जैसों का वध हो जाता है वैसे ही वे उन विरहियों के लिए मरने का कारण हो गए हों। कवि कहता है कि मानों कामदेव ने यह सारा खेल स्वयं ही फैलाया हो। अर्थात् यह कामदेव का ही कमाल है, जिसने यह सारा जाल फैलाया है।

विशेष

[सम्पादन]

इसमें कवि ने मधुमालती के केशों को सुंदरता का वर्णन किया है। उसके मुख की शोभा उन केशों से बढ़ गयी है। कवि ने उपमा, अनुप्रास तथा रूपक अलंकारों का पूरे पद में प्रयोग किया है। कामदेव' की चर्चा की है। अवधी भाषा का प्रयोग किया है। भावों में उत्कर्ष है। विरही की भी स्थिति स्पष्ट की है। भाषा में प्रवाह है। शब्द-चयन उत्तम है। मिश्रित शब्दावली है। भावों में स्पष्टता है।

शब्दार्थ

[सम्पादन]

तेहि पर - उस पर। कच = केश। बिखधर - विषधर, सर्प जो जहर से युक्त होता है। सहज = आसानी से। बिखसारे = विष से युक्त। लुहकारे = लहराते हुए। सग बगाहिं - सकपका रहे हैं। परतिख - प्रत्यक्ष। मनियारे-मणिधारी। गरल = जहर, विष। बर्दन = शरीर, तना हतियारे - हत्यारे। अँजोर - उजाला, प्रकाश। बदन - मुख। मोकराएँ - खेलने पर। दुखसारा - सम्पूर्ण दुख। मधु - मधुमालती। चिहुर - चिकुर, केश। चिन्हारि - परिचय। मनपथ = कामदेव। रोपा फैला दिया।