हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक)/अब कठोरहो वज्रादपि
अब कठोर हो वज्रादपि
ओ कुसुमादपि सुकुमारी!
आर्यपुत्र दे चुके परीक्षा
अब है मेरी बारी।
मेरे लिए पिता ने सबसे
धीर-वीर वर चाहा,
आर्यपुत्र को देख उन्होंने
सभी प्रकार सराहा,
फिर भी हठ कर हाय!
वृथा ही उन्हें उन्होंने थाहा,
किस योद्धा ने बढ़ कर उनका
शौर्य-सिन्धु अवगाहा,
क्यों कर सिद्ध करूँ अपने को
मैं उन नर की नारी।
आर्यपुत्र दे चुके परीक्षा
अब है मेरी बारी।
देख कराल काल सा जिसको
काँप उठे सब भय से,
गिरे प्रतिद्वन्दी नन्दार्जुन
नागदत्त जिस हय से,
वह तुरंग पालित-कुरंग सा
नत हो गया विनय से,
क्यों न गूँजती रंगभूमि फिर
उनके जय जय जय से?
निकला वहाँ कौन उन जैसा
प्रबल पराक्रमकारी?
आर्यपुत्र दे चुके परीक्षा
अब है मेरी बारी।
सभी सुन्दरी बालाओं में
मुझे उन्होंने माना,
सबने मेरा भाग्य सराहा
सबने रुप बखाना,
खेद! किसी ने उन्हें न फिर भी
ठीक-ठीक पहचाना,
भेद चुने जाने का अपने
मैंने भी अब जाना,
इस दिन के उपयुक्त पात्र की
उन्हें खोज थी सारी!
आर्यपुत्र दे चुके परीक्षा
अब है मेरी बारी।
मेरे रूप-रंग यदि तुझको
अपना गर्व रहा है,
तो उसके झूठे गौरव का
तूने भार सहा है,
तू परिवर्तनशील उन्होंने
कितनी बार कहा है,
फूला दिन किस अन्धकार में
डूबा और बहा है?
किन्तु अन्तरात्मा भी मेरी थी
क्या विकृत-विकारी?
आर्यपुत्र दे चुके परीक्षा
अब है मेरी बारी।
मैं अबला! पर वे तो
विश्रुत वीर-बली थे मेरे,
मैं इन्द्रियासक्त! पर
वे कब थे विषयों के चेरे?
अयि! मेरे अर्द्धांगि भाव
क्या विषय मात्र थे तेरे?
हा! अपने अंचल में किसने
ये अंगार बिखेरे?
है नारीत्व मुक्ति में भी तो
अहो विरक्ति विहारी!
आर्यपुत्र दे चुके परीक्षा
अब है मेरी जारी।
सिद्धि-मार्ग की बाधा नारी!
फिर उसकी क्या गति है?
पर उनसे पूछूँ क्या
जिनको मुझसे आज विरति है!
अर्द्ध विश्व में व्याप्त शुभा-शुभ
मेरी भी कुछ मति है,
मैं भी नहीं अनाथ जगत में
मेरा भी प्रभु पति है,
यदि मैं पतिव्रता तो मुझको
कौन भार भय भारी?
आर्यपुत्र दे चुके परीक्षा
अब है मेरी बारी।
यशोधरा के भूरि भाग्य पर
ईर्ष्या करने वाली,
तरस न खाओ कोई उस पर
अच्छी भोली-भाली!
तुम्हें न सहना पड़ा दु:ख यह
मुझे यही सुख आली!
बधू-वंश की लाज दैव ने
आज मुझी पर डाली,
बस जातीय सहानुभूति ही
मुझ पर रहे तुम्हारी।
आर्यपुत्र दे चुके परीक्षा,
अब है मेरी बारी।
जाओ नाथ! अमृत लायो तुम
मुझमें मेरा पानी,
चेरी ही मैं बहुत तुम्हारी
मुक्ति तुम्हारी रानी,
प्रिय तुम तपो सहूँ मैं भरसक
देखूँ बस हे दानी,
कहाँ तुम्हारी गुण-गाथा में
मेरी करुण कहानी,
तुम्हें अप्सरा-विघ्न न व्यापे
यशोधरा-कर धारी!
आर्यपुत्र दे चुके परीक्षा
अब है मेरी बारी।