हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक)/खेत जोत कर घर आए हँ
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खेत जोतकर घर आये हैं।
बैलों के कन्धों पर माची,
माची पर उलटा हल रक्खा,
बद्धी हाथ, अधेड़ पिता जी,
माता जीं, सिर गट्ठल पक्का;
पिता गये गाँवों के गोंडे,
माता घर, लड़के धाये हैं।
खेत जोतकर घर आये हैं।
बैलों के कन्धों पर माची,
माची पर उलटा हल रक्खा,
बद्धी हाथ, अधेड़ पिता जी,
माता जीं, सिर गट्ठल पक्का;
पिता गये गाँवों के गोंडे,
माता घर, लड़के धाये हैं।