हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक)/मैं अकेला
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मैं अकेला
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
मेरे दिवस की सान्ध्य बेला।
हट रहा मेरा।
कोई नहीं भेला।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
मैं अकेला;
देखता हूं, आ रही
पके आधे बाल मेरे,
हुए निष्प्रभ गाल मेरे,
चाल मेरी मन्द होती आ रही,
जानता हूं, नदी-झरने,
जो मुझे थे पार करने,
कर चुका हूं, हंस रहा यह देख,