हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक)/वर दे
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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
वर दे, वीणावादिनी वर दे!
प्रिय स्वतन्त्र-रव अमृत-मन्त्र नव
काट अन्ध-उर के बन्धन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मम निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
नव गति, नव लय, ताल-छन्द नव
नवल कण्ठ, नव जलद-मन्द्र रव;
नव नभ के नव बिहग-वृन्द को