हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/जुही की कली

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जुही की कली


संदर्भ

जूही की काली कविता छायावादी कवि सूर्य कांत त्रिपाठी ' निराला ' द्वारा उद्धृत है। निराला जी अपनी कविता जीवन से जुड़ी वस्तुओं का समावेशन करते हैं।


प्रसंग

जूही की कली’ कविता ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ द्वारा रचित कविता है, जिससें जूही की कली और पवन का मानवीकरण किया गया है। नायिका जूही की कली नायक पवन के वियोग में है। नायक पवन उसे छोड़ कर दूर मलयगिरि को पर्वत पर चला गया है।

व्याख्या

कवि निराला जी कहते हैं कि जूही की कली विरह में पीड़ित नायिका का रूप है जो अपने प्रेमी पवन के विरह में तड़प रही है, जो उसे छोड़कर दूर मलयागिरी पर्वत पर चला गया है।वह अपने प्रेमी के स्वप्न में ही खोई रहती है कि कब उसका प्रेमी आएगा और उन दोनों का मिलन होगा।दूर मलयागिरि पर्वत पर गए उसके प्रेमी पवन को भी अपनी नायिका की याद आती है तो वह अपनी प्रेयसी से मिलने के लिए तड़प उठता है और वह अपनी प्रेयसी जूही की कली से मिलने के लिए चल पड़ता है।जब वह अपनी प्रेयसी के पास पहुंचता है तो उसकी प्रेयसी जूही की कली उसके सपनों में खोई निश्चल आंखें मूंदे पड़ी है।उसे अपने प्रेमी के आने की कोई सुध-बुध नही है, और वो अपने प्रेमी के स्वागत में उठती नही है तो उसके प्रेमी को लगता है कि वह जूही की कली को उसके आने का उसे कोई हर्षनहीं हुआ और पवन क्रोधित हो जाता है।फिर पवन क्रोधित होकर अपने झोंको को तेज गति से चलाने लगता है, जिससे जूही की कली के कोमल तन पर आघात लगता है और वह हड़बड़ा कर उठ जाती है। तब अपने सामने अपने प्रेमी पवन को देखकर वह हर्ष से उल्लासित हो उठती है और फिर दोनों प्रेमी-प्रेमिकाओं के गिले-शिकवे दूर हो जाते हैं और दोनों का मिलन हो जाता है और दोनों प्रेमी-प्रेमिका प्रेम के रंग में डूब जाते हैं।

विशेष

1) भाषा सरल है।

2) मानवीकरण अलंकार है।

3)नायक नायिका वियोग का वर्णन है।