हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/मधुप गुनगुना कर

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हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका
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मधुप गुनगुना कर


संदर्भ

मधुप गुनगुना कर कविता छायावादी काव्याधारा के प्रमुख आधार स्तम्भ जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित है। साहित्यिक जगत में प्रसाद जी एक सफल व श्रेष्ठ कवि, नाटककार कथाकार व निंबंध लेखक के रूप में विख्यात रहे है।

प्रसंग

मधुप गुनगुना कर कविता में कवि ने अपने आत्मकथा ना लिखने की अनेक कारणों का वर्णन करा है। वह बताती हैं उन्होंने कोई ऐसा कार्य नहीं करा है ऐसा कुछ भी अर्जित नहीं करा है जिसको वह अपनी आत्मकथा में जगह दे अर्थात उनकी आत्मकथा का को पढ़कर को कोई प्रेरणा नहीं मिलेगी। वस्तुत प्रेमचंद जी ने अपने मासिक पत्र हंस में प्रकाशन हेतु प्रसाद जी से अपनी आत्मकथा का अक्षांश आग्रह पूर्वक मांगा था तभी जयशंकर प्रसाद जी ने यह कविता रची।

व्याख्या


कवि कहते हैं कि मन रूपी भंवरा गुनगुना कर कह रहा है कि जीवन का आधार कैसे कहूं। कवि के जीवन की इच्छाएं एक-एक करके पतियों की तरह मिलाकर गिर गई। उन्होंने एक-एक करके अपने जीवन के सपनों को मरते देखा है। दुख झेला है। इस विशाल नीले आकाश में रहने वाली कितने महापुरुषों ने अपने जीवन का इतिहास लिखा है। उन्हें पढ़कर ऐसा लगता है कि मानो वो अपना ही उपहास कर रहे हैं। कवि का जीवन अभावों और कठिनाइयों से भरा पड़ा है। उनके मित्र कहते हैं कि वह अपने जीवन की कथा लिखे। कवि कहते हैं कि उनके कहानी जानकार लोगों को क्या सुख मिलेगा वह खाली गागर के समान है उसके जीवन के खालीपन को देखकर किसी को कोई सुख नहीं मिलेगा। आगे कवि कहते हैं कि मैं अपने सरालमन की हंसी नहीं करूंगा। मैं मन की कमजोरियों को सबके सामने प्रकट क्यों करूं। मेरे जीवन में जो भी मधुर चांदनी रातें आई थी वह सभी चली गई। वह सब मेरे जीवन की निजी अनुभूतियां है। अपनी प्रियतमा के साथ निजी क्षणों को सबके सामने क्यों प्रकट करू। कवि कहते हैं कि वह स्वप्न देखकर जो जागे थे वह प्रियतम कहां मिलेगा जिसे प्रियतमा को आलिंगन करने के लिए उसने बाहे आगे बढ़ाई थी वह प्रियतम दूर भाग गया। प्रियतम कवि को कवि नहीं मिला। कवि अपनी प्रियतमा के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं की उनकी प्रेमिका के लाल कपोल उषाकालीन लालिका से भी अधिक मनोरम है। कवि उसकी यादों का सहारा लेकर जीवन के थकान को दूर करते हैं। कवि के जीवन में सूखे पल कभी नहीं आए जिन्हें वह आम जनता को बता सके। लोग मेरी आत्मकथा क्यों जानना चाहेंगे हैं। कवि कहते हैं इसीलिए यही अच्छा होगा कि वह दूसरा महान लोगों की आत्म कथाएं सुनाएं और अपनी व्यथा को लेकर शांत बने रहे। मेरी भोली आत्मकथा को सुनकर कोई प्रेरणा प्राप्त नहीं कर सकेगा। कवि का मन शांत है उसके जीवन में ऐसी को महानता अर्जित नहीं की है। जिसके बारे ममें बताया जाए। अंत कवि आत्मकथा नहीं लिखना चाहते हैं।


विशेष

1) खड़ी बोली है

2) आत्मकथा ना लिखने के अनेक कारणों का वर्णन किया गया है

3) शांत रस है