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हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/मैं अकेला

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हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका
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मैं अकेला


संदर्भ

मै अकेला कविता छायावादी कवि सूर्य कांत त्रिपाठी ' निराला ' द्वारा उद्धृत है। निराला जी अपनी कविता जीवन से जुड़ी वस्तुओं का समावेशन करते हैं।


प्रसंग

मैं अकेला कविता में निराला जी ने अपने जीवन के अंतिम क्षण की व्याख्या की है।


व्याख्या

कवि कहते है मैं अपने जीवन की संध्या को पास आते देख रहा हूं। अर्थात् जीवन के अंतिम समय अब वह महसूस कर रहे है। वह बताते है उनके बाल का रंग सफेद हो रहा है। मेरे चेहरे का चमक खत्म हो गई है। किसी भी काम को करने की कार्यक्षमता में गिरावट आ गई है। अर्थात् उनकी गति धीमी हो गई है। अन्तिम पक्तियो में कवि कहते है जो कार्य मुझे करने थे वह में के चुका हूं। परंतु हंसी आ रही है कि मेरे जीवन के अंतिम समय में मेरे साथ कोई भी नहीं है। में अपनी जीवन के अंतिम समय में अकेला हूं।


विशेष

1) भाषा सरल है।

2)जीवन के अंतिम क्षणों का वर्णन है।

3) करुण रस है।