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हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/उधर के चोर

विकिपुस्तक से
       "उधर के चोर"

उधर के शोर पीडअजीब हैं,
लूट और डकैती के अजीबो-गरीब किस्से —

वे कहते हैं,
ट्रेन-डकैती सात बजने-बजते सम्पन्न हो जाता है!
क्योंकि डकैतों को जल्दी सोने की आदत है!
और चूंकि सारे मुसाफिर बीना टिकट,
गरीब-गुरबा मजदुरा जस लोगही होते हैं!
इसलिए डकैन किसी से झोला,
किसी से अंगोछा चुटौनी,
खैनी की डिबिया छीनते झपटते,
चलती गाड़ी से कुद रहड़ के खेत में,
गुम हो जाते हैं।

और लूट की जो घटना अभी प्रकाश में आई है,
उसमें बलधामी लुटेरों के एक दल ने दिनदहाड़े,
एक कट्टे खेत में लगा चने का साग खोट डाला,
और लौटती में चूड़ीहार की चूड़ियाँ लूट ली।

लेकिन इससे भी हैरतअंगेज़ है चौरी की एक घटना
जो सम्पूर्ण क्षेत्र में आज भी चर्चा का विषय है-
वे कहते हैं, एक चोर सेंध मार घर में घुसा,
इधर-उधर टो-टा किया और जब कुछ न मिला!
तब चुहानी में रक्खा बासी भात और साग खा,
थाल वहीं छोड़ भाग गया!

वो तो पकड़ा ही जाता यदि दबा न ली होती डकार