हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/उनको प्रणाम

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हिंदी कविता (छायावाद के बाद)
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उनको प्रणाम
नागार्जुन

जो नहीं हो सके पूर्ण–काम
मैं उनको करता हूँ प्रणाम।
कुछ कुंठित और कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट
जिनके अभिमंत्रित तीर हुए;
रण की समाप्ति के पहले ही
जो वीर रिक्त तूणीर हुए!
उनको प्रणाम!
जो छोटी–सी नैया लेकर
उतरे करने को उदधि–पार;
मन की मन में ही रही¸ स्वयं
हो गए उसी में निराकार!
उनको प्रणाम!
जो उच्च शिखर की ओर बढ़े
रह–रह नव–नव उत्साह भरे;
पर कुछ ने ले ली हिम–समाधि
कुछ असफल ही नीचे उतरे!
उनको प्रणाम!

एकाकी और अकिंचन हो
जो भू–परिक्रमा को निकले;
हो गए पंगु, प्रति–पद जिनके
इतने अदृष्ट के दाव चले!
उनको प्रणाम!
कृत–कृत नहीं जो हो पाए;
प्रत्युत फाँसी पर गए झूल
कुछ ही दिन बीते हैं¸ फिर भी
यह दुनिया जिनको गई भूल!
उनको प्रणाम!

थी उम्र साधना, पर जिनका
जीवन नाटक दुःखांत हुआ;
था जन्म–काल में सिंह लग्न
पर कुसमय ही देहांत हुआ!
उनको प्रणाम!
दृढ़ व्रत और दुर्दम साहस के
जो उदाहरण थे मूर्ति–मंत ?
पर निरवधि बंदी जीवन ने
जिनकी धुन का कर दिया अंत!
उनको प्रणाम!
जिनकी सेवाएँ अतुलनीय
पर विज्ञापन से रहे दूर
प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके
कर दिए मनोरथ चूर–चूर!
उनको प्रणाम!