हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/देवभाषा

विकिपुस्तक से
          "देवभाषा"

और वह मेरी ही ओर चले आ रहे थे तीनों,
एक तेज प्रकाश लगातार मुझ पर पुत रहा था।
जैसे बवंडर में पड़ा कागज का टुकड़ा,
यह घूम रहा था।

तभी वह समवेत स्वर में बोले,
मांग, क्या मांगता है उल्लू।
अरे चमत्कार! चमत्कार!
देव आज हिंदी बोले,
देव ने तज दी देवभाषा।

अब क्या मांगना चाहना प्रभु,
आपने सब कुछ तो दे दिया जो,
आप बोले निजभाषा।
धन्य भाग प्रभु धन्य भाग।

और तीनों देव जूतों की विश्व कंपनी,
के राष्ट्रीय शो रूप के उद्घाटन में दौड़े —
आज का उनका यही कार्यक्रम था न्यूनतम।