हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/धार

विकिपुस्तक से
हिंदी कविता (छायावाद के बाद)
 ← नये इलाके में धार
धार
अरुण कमल

कौन बचा है जिसके आगे
इन हाथों को नहीं पसारा

यह अनाज जो बदल रक्त में
टहल रहा है तन के कोने-कोने
यह कमीज़ जो ढाल बनी है
बारिश सरदी लू में

सब उधार का, माँगा चाहा
नमक-तेल, हींग-हल्दी तक
सब कर्जे का
यह शरीर भी उनका बंधक

अपना क्या है इस जीवन में
सब तो लिया उधार
सारा लोहा उन लोगों का
अपनी केवल धार।