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हिंदी कविता (छायावाद के बाद)/बाढ़ की संभावनाएं

विकिपुस्तक से
हिंदी कविता (छायावाद के बाद)
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बाढ़ की संभावनाएं
दुष्यन्त कुमार

बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं,
और नदियों के किनारे घर बने हैं।

चीड़-वन में आँधियों की बात मत कर,
इन दरख्तों के बहुत नाज़ुक तने हैं।

इस तरह टूटे हुए चेहरे नहीं हैं,
जिस तरह टूटे हुए ये आइने हैं।

आपके क़ालीन देखेंगे किसी दिन,
इस समय तो पाँव कीचड़ में सने हैं।

जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में,
हम नहीं हैं आदमी, हम झुनझुने हैं।

अब तड़पती-सी ग़ज़ल कोई सुनाए,
हमसफ़र ऊँघे हुए हैं, अनमने हैं।