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हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/धार

विकिपुस्तक से

सन्दर्भ:-प्रस्तुत काव्य अरूण कमल की प्रसिद्ध कविता धार से उद्धत किया गया है।यह आधुनिक हिन्दी कविता के बहुचर्चित कवि है।

प्रसंग: इस कविता मे कवि ने जन जीवन की यथार्थ स्थिति का चित्रण किया है। मज़दूर और किसान किस प्रकार संघर्षों से जीता है उसी का एक बिम्ब प्रस्तुत किया है।

व्याख्या :- कवि कहता है कि यह वंचित लोगों की कविता है। जो जीवन व्यतीत करने के लिए पूँजीपति, साहूकारों के सामने हाथ फैला रहे है। ये दिन-रात माँगते रहते है। यह वह लोग है जिनके जीवन में कोई सुख नहीं है, कोई बुनियादी साधन नहीं है। जीवन जीने के लिए भी इनको हाथ पसारना पड़ता है।यह समाज के सबसे उपेक्षित लोग है। जिनके पास कुछ नहीं है।जीवन सुरक्षित के लिए मनुष्य को सबसे पहले रोटी और तन ढकने के लिए कपड़ा चाहिए। और यह भी उधार का है।जो भी हमने चाहा सब उधार ही मिला। अनाज,कपड़ा इतना ही नहीं नमक, तेल,हल्दी,हींग सब उधार का ही है। सब कुछ क़र्ज पे मिला है। स्थिति यहा तक आ गई है की उन्होंने ख़ुद को भी गिरवी रख दिया है। अपना क्या है इस जीवन में, सब कुछ लिया उधार यहाँ तक की उनका शरीर भी बंधक है अर्थात् बहुत से लोग तो बंधुआ है। उनका सारा जीवन ही उधार का है। अंत:कवि उनको क़र्ज़ों की याद इसलिए दिला रहा है कि उनके लोहे को हथियार बना कर उनके ऊपर ही इस्तमाल करे।जिन लोगों ने हमे क़र्ज़ा दिया है हमे बन्धक बना रखा है। कवि मज़दूरो केअंदर प्रतिरोध की भावना को जगाना चाहता है। कवि कहता है लोहे को धार दो और देखो सब बदल जाएगा।

विशेष: ०प्रगतिवाद स्वर की कविता है। ०यहाँ श्रमिको के जीवन के यथार्थ को वर्णित किया गया है। ०श्रमिको का जीवन उधार की ज़िन्दगी है । ० सामाजिक विषयता का चित्रण है। ० बेबसी की भाषा है। ० लोहा और धार प्रतीकात्मक शब्द है। ० कोने कोने - पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। ० यह उधार से धार की तरफ़ बढ़ाने वाली कविता है।