हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/धूमिल

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सुदामा पांडे( धूमिल)

साहित्यिक परिचय[सम्पादन]

साधारण परिवार में जन्मा साधारण शिक्षा प्राप्त की और साधारण नौकरी करते हुए अपनी असाधारण प्रतिभा के बल पर अपने आसपास की जिंदगी का जो चित्र उन्होंने खींचा वह वास्तविकताओं को समझने का महत्वपूर्ण दस्तावेज है। वस्तुतः धूमिल की कविता जिस तरह पारस्परिक आलोचना के प्रतिमान और से नहीं पहचानी जा सकती,उसी तरह उनका व्यक्तित्व भी परस्पर के घीसे पिटे शब्दों से नहीं पहचाना जा सकता। प्रारंभ में धूमिल बड़े विनम्र सहनशील उदार दया शील और करना नार्थ थे। धूमिल के लिए बच्चों की हंसी कितनी महत्वपूर्ण थी यह 'कल सुनना मुझे; कविता संग्रह की निम्न पंक्तियों में दृश्य काव्य है-

"चालाक गिलहरियों का पीछा करते हुए दुधमुंही तिनी

मेरी बच्ची किलक उठी है
मैं चौक पढ़ता हूं
नहीं इन दिनों बात बात पर
इस तरह उदास होना
ठीक नहीं है
मैं देखता हूं मुझे बर जाती हुई
उसके चेहरे पर खुली हंसी है-
जिसमें एक भी दांत

शरीक नहीं है।"

धूमिल की काव्य यात्रा का सही विकास विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छपी कविताओं तथा उनके काव्य संग्रह में संकलित कविताओं के अध्ययन प्रांत ही समझा जा सकता है। उनका पहला संग्रह संसद से सड़क तक सन 1972 में दूसरा संग्रह' कल सुनना मुझे'सन 1977 में मृत्यु प्रांत राजशेखर से संपादित किया तथा तीसरा संग्रह'सुदामा पांडे का प्रजातंत्र'सन 1984 में प्रकाशित हुआ ।'संसद से सड़क तक'की कविताओं में सन 1966 से 1970 तक की 25 कविताएं । यह कविताएं है-कविता, 20 साल बाद जनतंत्र के सूर्योदय में, अकाल दर्शन, बसंत, एकांत कथा, मोचीराम, शहर में सूर्यास्त, कवि 1970, नक्सलबाड़ी, कुत्ता, मुनासिब, कार्यवाई, भाषा की रात तथा पटकथा। इन कविताओं में अधिकांश कविताएं छोटी हैं। पटकथा, भाषा की रात, राजकमल चौधरी, प्रोढ़-शिक्षा, कभी 1970 तक मोचीराम आकार की दृष्टि से लंबी है।

'कल सुनना मुझे'धूमिल का दूसरा काव्य संग्रह है जो मरणोपरांत छपा तथा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हुआ। इसमें कुल 37 कविताएं हैं। किस्सा जनतंत्र, प्रजातंत्र के विरुद्ध, आतिश के अनार c वह लड़की, रोटी और संसद, शब्द जहां सक्रिय है, पराजय बोध, गांव में कीर्तन आदि इस संग्रह की प्रमुख कविताएं हैं।

धूमिल का तीसरा काव्य संग्रह है'सुदामा पांडे का प्रजातंत्र'जिसका प्रकाशन सन् 1984 में मृत्यु उपरांत हुआ। एक समर्थ रचनाकार की यह एक अजीब विडंबना ही है कि उसके जीवन काल में उसकी रचनाएं छप तक नहीं पाई है। जब वह बीमार पड़े थे तब भी अपनी रचनाओं के प्रकाशन को लेकर सोचते थे और कहते थे कि आगामी संग्रह से लेखन जगत में जरूर एक बदलाव आएगा।

जीवन परिचय[सम्पादन]

सुकावि श्री सुदामा पांडे धूमिल का जन्म वाराणसी जनपद के गांव में 9 नवंबर 1936 को ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यह बचपन से ही मेधावी संवेदनशील और प्रखर प्रतिभाशाली थे। ग्राम खेवली उस जमाने में शिक्षा भी मुखी नहीं हो पाया था। इसीलिए ऐसे अपेक्षित शिक्षा संसाधनों और अभावों में भी बालक सुदामा पांडे ने 1953 में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद से हाई स्कूल परीक्षा पास की और गांव में पहले मैट्रीकुलेट होने का गौरव पाया।12 वर्ष की आयु में ही सुदामा पांडे का विवाह मूर्ति देवी नाम की सुशील कन्या से हो गया। लेकिन अकाश मात पिता मां पिता और चाचा के निधन के कारण सुदामा पांडे का अध्ययन बीच में छूट गया और इन्हें परिवार के भरण-पोषण के लिए नौकरी करनी पड़ी। इसके लिए यह कलकत्ता चले गए। वहां कुछ दिन लोहे की ढुलाई का काम भी किया।इसके बाद उन्होंने एक निजी कंपनियां पासिंग अधिकारी की नौकरी कर ली। आत्मा भी मानी सुदामा पांडे यहां ज्यादा समय नहीं टिक सके और त्यागपत्र देकर बनारस लौट आए। बनारस में आप ने कड़ी मेहनत करके तकनीकी क्षेत्र में अपना भाग्य आजमाया। आईटीआई की और सरकारी नौकरी पाई। लेकिन भाग्य को तो कुछ और ही स्वीकार था इन्होंने यहां भी असुविधा अनुभव की और फिर छुट्टी लेकर वाराणसी आ गए। 1968 से 1974 तक का काल उनकी सेवाओं का महत्वपूर्ण समय था।उन्होंने बिजली विभाग के कर्मचारियों का प्रबल संगठन बनाया भ्रष्टाचार एवं मुद्दों पर अफसरों की कलई खोली। इसके फलस्वरूप उन्हें सीतापुर स्थानांतरित कर दिया गया।जहां उन्होंने जाकर लंबी छुट्टी ले ली और काशी में ही जाकर रहने लगे।अक्टूबर 1974 में सिर दर्द की पीड़ा से परेशान होकर अंत में काशी विश्वविद्यालय के मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुए उन्हें ब्रेन ट्यूमर का इलाज चला और अंत में 10 फरवरी 1975 को उन्होंने संघर्षशील मसीह जीबी की अपनी यात्रा समाप्त की।स्वर्गीय धूमिल का व्यक्तित्व अनन्य विशेषताओं का पुंज था।