हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/धूमिल
साहित्यिक परिचय
[सम्पादित करें]साधारण परिवार में जन्मा साधारण शिक्षा प्राप्त की और साधारण नौकरी करते हुए अपनी असाधारण प्रतिभा के बल पर अपने आसपास की जिंदगी का जो चित्र उन्होंने खींचा वह वास्तविकताओं को समझने का महत्वपूर्ण दस्तावेज है। वस्तुतः धूमिल की कविता जिस तरह पारस्परिक आलोचना के प्रतिमान और से नहीं पहचानी जा सकती,उसी तरह उनका व्यक्तित्व भी परस्पर के घीसे पिटे शब्दों से नहीं पहचाना जा सकता। प्रारंभ में धूमिल बड़े विनम्र सहनशील उदार दया शील और करना नार्थ थे। धूमिल के लिए बच्चों की हंसी कितनी महत्वपूर्ण थी यह 'कल सुनना मुझे; कविता संग्रह की निम्न पंक्तियों में दृश्य काव्य है-
मेरी बच्ची किलक उठी है
मैं चौक पढ़ता हूं
नहीं इन दिनों बात बात पर
इस तरह उदास होना
ठीक नहीं है
मैं देखता हूं मुझे बर जाती हुई
उसके चेहरे पर खुली हंसी है-
जिसमें एक भी दांत
धूमिल की काव्य यात्रा का सही विकास विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छपी कविताओं तथा उनके काव्य संग्रह में संकलित कविताओं के अध्ययन प्रांत ही समझा जा सकता है। उनका पहला संग्रह संसद से सड़क तक सन 1972 में दूसरा संग्रह' कल सुनना मुझे'सन 1977 में मृत्यु प्रांत राजशेखर से संपादित किया तथा तीसरा संग्रह'सुदामा पांडे का प्रजातंत्र'सन 1984 में प्रकाशित हुआ ।'संसद से सड़क तक'की कविताओं में सन 1966 से 1970 तक की 25 कविताएं । धूमिल जी का 'संसद से सड़क तक' यह प्रथम काव्य-संग्रह सन् 1972 में प्रकाशित हुआ। प्रस्तुत काव्य-संग्रह में कुल मिलाकर 25 कविताएँ संग्रहीत हैं - 'कविता', 'बीस साल बाद', 'जनतन्त्र के सूर्योदय में', 'अकाल दर्शन', 'बसन्त', 'एकान्त कथा', 'शान्ति पाठ', 'उस औरत की बगल में लेटकर', 'राजकमल चौधरी के लिए', 'मोचीराम', 'शहर में सूर्यास्त', 'प्रौढ़ शिक्षा', 'मकान', 'एक आदमी', 'शहर का व्याकरण', 'पतझड़', 'कवि 1970', 'नकसलबाडी', 'कुत्ता', 'शहर, शाम और एक बूढ़ा : मैं', 'सच्ची बात', 'हत्यारी सम्भावनाओं के नीचे', 'मुनासिब कार्रवाई', 'भाषा की रात' और 'पटकथा' आदि। राहुलजी लिखते है, "प्रकारान्तर से हम कह सकते है कि 'संसद से सड़क तक' यथार्थवादी अन्तर्द्वन्द्व का अजायबघर है।"
'कल सुनना मुझे'धूमिल का दूसरा काव्य संग्रह है जो मरणोपरांत छपा तथा साहित्य अकादमी द्वारा 1979 में पुरस्कृत हुआ। इसमें कुल 37 कविताएं हैं। वे इस प्रकार हैं- 'जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु पर आस्था', 'दस्तक', 'देश-प्रेम : मेरे लिए', 'किस्सा जनतंत्र', 'प्रजातंत्र के विरूध्द', 'कविता श्रीकाकुलम', 'आतिश के अनार सी वह लड़की', 'मुक्ति के तुरन्त बाद', 'एक कविता : कुछ सूचनाएँ', 'सुदूर पूर्व में', 'रोटी और संसद', 'लेनिन का सिर', 'शब्द जहाँ सक्रिय हैं', 'अन्तर', 'बारिश में भीग कर', 'दूसरे का घर', 'कल', 'दिनचर्या', 'नगर-कथा', 'गृहस्थीः चार आयाम', 'साक्षेप संवेदन', 'युवा सदी गति है', 'उसके बारे में', 'खेवली', 'खुन के बारे में कविता', 'मैं हूँ', 'मेरी कविता', 'आलोचक', 'कविता के द्वारा हस्तक्षेप', 'आज मैं लड़ रहा हूँ', 'पराजय-बोध', 'मृत्यु-चिन्ता', 'प्रवेश-पत्र', 'गाँव में कीर्तन', 'ओ वैरागी : पं. शान्तिप्रिय द्विवेदी' धूमिल की अन्तिम कविता रही। "
धूमिल का तीसरा काव्य संग्रह है'सुदामा पांडे का प्रजातंत्र'जिसका प्रकाशन सन् 1984 में मृत्यु उपरांत हुआ। जिसमें साठ कविताएँ हैं -'सुदामा पाण्ड़े का प्रजातंत्र : (एक)', 'सुदामा पाण्ड़े का प्रजातंत्र : (दो)', 'ट्यूशन पर जाने से पहले', 'न्यू गरीब हिन्दू होटल', 'कविता के भ्रम में', 'बसंत से बातचीत का एक लमहा', 'रण नीति', 'ताजा खबर', 'कोडवर्ड', 'सूखे की छायाएँ और एक शिशिर संध्या', 'संसद-समीक्षा', 'संयुक्त मोर्चा', 'कर्फ्यू में एक घंटे की छूट', 'घर में वापसी', 'गृह-युध्द', 'रोटियों का शहर', 'मैंमन सिंह', 'लोकतंत्र', 'मैंने घुटने से कहा', 'अगली कविता के लिए', 'पर्वतारोहण नवम्बर 1971', 'बीसवीं शताब्दी का सातवाँ दशक', 'मैं सहज होना चाहता हूँ', 'मेरा गाँव', 'शिविर नम्बर तीन', 'चानमारी से गुजरते हुए', 'नौजवान', 'जनतंत्र एक हत्या संदर्भ', 'मुक्ति का रास्ता', 'गुफ्तगू', 'मतदाता', 'चुनाव', 'सिलसिला', 'स' और 'त' का खेल', 'निहत्थे आदमी से कहा', 'हरित क्रांति', 'हरित क्रांति (एक)', 'हरित क्रांति (दो)', 'हत्यारे (एक)', 'हत्यारे (दो)', 'वापसी', 'अब मैं अगली योजनाओं पर बात करूँगा', 'लोहसाँय', 'कमरा', 'आदम इरादों से बित्ता भर उठी हुई पृथ्वी', 'खून का हिसाब', 'नींद के बाद', 'रात्रि-भाषा', 'भूख', 'प्रस्ताव', '20 मादा कविताएँ एक : पी. सुदामा और मूर्ति के लिए', 'दो: पत्नी के लिए', 'तीन सत्यभामा', 'चार पुरबिया सूरज', 'पाँच : पाँचवें पुरखे की कथा', 'छहः चमड़े को गाने दो प्यार', 'सात : प्यार', 'आठ : स्त्री', 'नौ...'आदि । एक समर्थ रचनाकार की यह एक अजीब विडंबना ही है कि उसके जीवन काल में उसकी रचनाएं छप तक नहीं पाई है। जब वह बीमार पड़े थे तब भी अपनी रचनाओं के प्रकाशन को लेकर सोचते थे और कहते थे कि आगामी संग्रह से लेखन जगत में जरूर एक बदलाव आएगा।
जीवन परिचय
[सम्पादित करें]सुकावि श्री सुदामा पांडे धूमिल का जन्म वाराणसी जनपद के गांव में 9 नवंबर 1936 को ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यह बचपन से ही मेधावी संवेदनशील और प्रखर प्रतिभाशाली थे। ग्राम खेवली उस जमाने में शिक्षा भी मुखी नहीं हो पाया था। इसीलिए ऐसे अपेक्षित शिक्षा संसाधनों और अभावों में भी बालक सुदामा पांडे ने 1953 में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद से हाई स्कूल परीक्षा पास की और गांव में पहले मैट्रीकुलेट होने का गौरव पाया।12 वर्ष की आयु में ही सुदामा पांडे का विवाह मूर्ति देवी नाम की सुशील कन्या से हो गया। लेकिन अकाश मात पिता मां पिता और चाचा के निधन के कारण सुदामा पांडे का अध्ययन बीच में छूट गया और इन्हें परिवार के भरण-पोषण के लिए नौकरी करनी पड़ी। इसके लिए यह कलकत्ता चले गए। वहां कुछ दिन लोहे की ढुलाई का काम भी किया।इसके बाद उन्होंने एक निजी कंपनियां पासिंग अधिकारी की नौकरी कर ली। आत्मा भी मानी सुदामा पांडे यहां ज्यादा समय नहीं टिक सके और त्यागपत्र देकर बनारस लौट आए। बनारस में आप ने कड़ी मेहनत करके तकनीकी क्षेत्र में अपना भाग्य आजमाया। आईटीआई की और सरकारी नौकरी पाई। लेकिन भाग्य को तो कुछ और ही स्वीकार था इन्होंने यहां भी असुविधा अनुभव की और फिर छुट्टी लेकर वाराणसी आ गए। 1968 से 1974 तक का काल उनकी सेवाओं का महत्वपूर्ण समय था।उन्होंने बिजली विभाग के कर्मचारियों का प्रबल संगठन बनाया भ्रष्टाचार एवं मुद्दों पर अफसरों की कलई खोली। इसके फलस्वरूप उन्हें सीतापुर स्थानांतरित कर दिया गया।जहां उन्होंने जाकर लंबी छुट्टी ले ली और काशी में ही जाकर रहने लगे।अक्टूबर 1974 में सिर दर्द की पीड़ा से परेशान होकर अंत में काशी विश्वविद्यालय के मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुए उन्हें ब्रेन ट्यूमर का इलाज चला और अंत में 10 फरवरी 1975 को उन्होंने संघर्षशील मसीह जीबी की अपनी यात्रा समाप्त की।स्वर्गीय धूमिल का व्यक्तित्व अनन्य विशेषताओं का पुंज था।