हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/भूमिका
इस पुस्तक के तैयार होने और इस भूमिका के लिखे जाने का दौर बड़ा ही अजीब है। सारी दुनिया बंद है मानो विश्वयुद्ध छिड़ा हो। ४ अप्रैल तक दस लाख से अधिक लोगों को बिमार कर देने वाला कोरोना एक तरफ है और घरों में बंद होने को कहे जाते दुनिया के लोग दूसरी तरफ। इस बंदी में अनिवार्य आवश्यकताओं की सूची में शिक्षण संस्थाएं शामिल नहीं हैं। लेकिन वे बंद भी नहीं हैं। मनुष्य का मस्तिष्क शरीर को घरों में बंद करने को तैयार है मगर खुद बंद होने को नहीं।
महाविद्यालय के बंद होने के बाद कक्षाओं एवं शिक्षण सामग्रियों के लिए ऑन लाइन साधनों की जब जरूरत पड़ी तो मेरी वर्षों की पसंदीदा विकि परियोजनाएं काम आईं। मैने विद्यार्थियों को अपनी मदद आप करने के लिए प्रेरित भी किया और बाध्य भी। धीरे-धीरे वे जुड़ते गए, सीखते गए और फिर यह किताब हमेशा के लिए सभी लोगों के लिए तैयार हो गई। अनिरुद्ध कुमार (वार्ता) ००:१३, ४ अप्रैल २०२० (UTC)