हिंदी कविता (रीतिकालीन)/भूषण
पाठ
[सम्पादन]शिवभूषण तथा प्रकीर्ण रचना
(1)
इंद्र जिमि जंभ पर बाड़व ज्यौं अंभ पर,
रावन सदंभ पर, रघुकुल राज हैं।
पौन बारिबाह पर, संभु रतिनाह पर,
ज्यौं सहस्रबाह पर राम-द्विजराज हैं।
दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर
'भूषन वितुंड पर, जैसे मृगराज हैं।
तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,
त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर सिवराज हैं।।
(2)
उद्वत अपार तुअ दुंदभी-धुकार-पाथ लंघे पारावार बृंद बैरी बाल्कन के।
तेरे चतुरंग के तुरंगनि के रँगे-रज साथ ही उड़न रजपुंज है परन के।
दच्छिण के नाथ सिवराज तेरे हाथ चढ़ै धनुष के साथ गढ़-कोट दुरजन के।
भूषण असीसै तोहिं करत कसीसैं पुनि बाननिके साथ छूटे प्रान तुरकन के।
(3)
साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धरि
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है
भूषण भनत नाद बिहद नगारन के
नदी-नद मद गैबरन के रलत है
ऐल-फैल खैल-भैल खलक में गैल गैल
गजन की ठैल –पैल सैल उसलत है
तारा सो तरनि धूरि-धारा में लगत जिमि
थारा पर पारा पारावार यों हलत है
(4)
वेद राखे विदित पुरान परसिद्ध राखे,
राम नाम राख्यो अति रसना सुघर मैं।
हिन्दुन की चोटी रोटी राखी है सिपाहिन को,
काँधे मैं जनेऊ राख्यो माला राखी गर मैं।
मीड़ि राखे मुगल मरोड़ि राखे पातसाह,
बैरी पीसि राखे बरदान राख्यो कर मैं।
राजन की हद्द राखी तेग-बल सिवराज,
देव राखे देवल स्वधर्म राख्यों घर मैं।
(5)
सबन के ऊपर ही ठाढ़ो रहिबे के जोग,
ताहि खरो कियो जाय जारन के नियरे .
जानि गैर मिसिल गुसीले गुसा धारि उर,
कीन्हों न सलाम, न बचन बोलर सियरे.
भूषण भनत महाबीर बलकन लाग्यौ,
सारी पात साही के उड़ाय गए जियरे .
तमक तें लाल मुख सिवा को निरखि भयो,
स्याम मुख नौरंग, सिपाह मुख पियरे.'
(6)
राजत अखण्ड तेज छाजत सुजस बड़ो,
गाजत गयंद दिग्गजन हिय साल को।
जाहि के प्रताप से मलीन आफताब होत,
ताप तजि दुजन करत बहु ख्याल को।।
साज सजि गज तुरी पैदरि कतार दीन्हें,
भूषन भनत ऐसो दीन प्रतिपाल को ?
और राव राजा एक चिन्त में न ल्याऊँ अब,
साहू को सराहौं कि सराहौं छत्रसाल कों।।
(7)
देस दहपट्टि आयो आगरे दिली के मेले बरगी बहरि' चारु दल जिमि देवा को।
भूपन भनत छत्रसाल, छितिपाल मनि ताकेर ते कियो बिहाल जंगजीति लेवा को।।
खंड खंड सोर यों अखंड महि मंडल में मंडो तें धुंदेल खंड मंडल महेवा को।
दक्खिन के नाथ को कटक रोक्यो महावाहु ज्यों सहसवाहु नै प्रबाह रोक्यो नेवा को॥