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हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/बिहारी

विकिपुस्तक से

बिहारी लाल का नाम हिन्दी साहित्य के रीति काल के कवियों में महत्त्वपूर्ण है। बिहारी लाल की एकमात्र रचना 'बिहारी सतसई' है। यह मुक्तक काव्य है। इसमें 719 दोहे संकलित हैं।

बिहारी लाल
बिहारी सतसई

दोहे

मेरी भववाधा हरौ, राधा नागरि सोय।

जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय।।

संदर्भ : यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सत्साई से लिया गया है

प्रसंग : इस पद के माध्यम से बिहारी जी राधा आग्रह करते हैं उनके दुखों को हरने के लिए

व्याख्या : राधा जी के पीले शरीर की छाया नीले कृष्ण पर पड़ने से वे हरे लगने लगते है। दूसरा अर्थ है कि राधा की छाया पड़ने से कृष्ण हरित (प्रसन्न) हो उठते हैं।

इस दोहे में बिहारी लाल जी ने राधा जी से प्रार्थना की है कि मेरी जिंदगी भी सांसारिक बाधाएं हैं उन्हें दूर कर मुझे सुख प्रदान करो | वे कहते हैं राधा जी ऐसी चमत्कारिक स्त्री है जिसके बदन की एक झलक पढ़ने से श्री कृष्ण जी के जीवन में सभी खुशियां आ गई| वे प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे राधा जी मेरी भी सभी दुख दूर कर कष्टों को हर लो

विशेष १. राधा की आराधना की गई है

२. श्लेष अलंकार का प्रयोग


जब जब वै सुधि कीजिए, तब तब सब सुधि जाहिँ।

आँखिनु आँखि लगी रहै, आँखैं लागति नाहिं।।

संदर्भ : यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सत्साई से लिया गया है

प्रसंग : इस पद के माध्यम से बिहारी जी एक भी वियोगिनी नायिका की दशा को दिखाते हैं

व्याख्या : इस छंद में एक वियोगिनी नायिका अपनी सखी से कहती है कि जब जब मैं अपने प्रियतम को याद करती हूं तो तब तब मैं अपनी सुधि खो जाती हूं उनकी आंखों के ध्यान में मेरे हृदय रूपी आंखें लगी रह जाती हैं और मुझे नींद नहीं आती


मकराकृति गोपाल कैं सोहत कुंडल कान।

धरथौ मनौ हिय-गढ़ समरु ड्यौढ़ी लसत निसान

संदर्भ : यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सत्साई से लिया गया है

प्रसंग : बिहारी लाल द्वारा कृष्ण के कानों के कुंडलो की प्रशंसा करते हुए इस पद की रचना की है

व्याख्या : नायिका कहती है कि श्री कृष्ण के कानों में मकर की आकृति वाले कुंडल है जो बहुत ही सुंदर लग रहे हैं उनके हृदय रूपी तेज पर कामदेव ने विजय पाली है

विशेष १. नायक के सौंदर्य का वर्णन है

२. उपेक्षा और रूपक अलंकार है


घाम घरीक निवारियै कलित ललित अलि-पुंज।

जमुना-तीर तमाल-तरु मिलित मालतो-कुंज।।

संदर्भ : यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सत्साई से लिया गया है

प्रसंग : इस पद के माध्यम से नायिका नायक से मिलने की व्याकुलता को दर्शाती है

व्याख्या : नायिका कहती है जमुना के किनारे मालती कुंज पर मैं आपके पास मिलने के लिए आऊंगी और थोड़ी देर वहीं पर विश्राम करूंगी तुम मेरे से वहां पर मिलने आ जाना मैं वही तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी

विशेष १. शृंगार रस है

२. श्लेष के बहाने से वर्णन किया गया है

३. नायिका की चतुराई का वर्णन किया गया है

४. व्यंजना लक्ष्मण शक्ति है

५. प्रसंगों की उटा करने में इनमें स्वागत विशेषता अवश्य दिखाई देती है


उन हरकी हंसी कै इतै, इन सौंपी मुस्काइ।

नैना मिले मन मिल गए, दोउ मिलवत गाइ

संदर्भ : यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सत्साई से लिया गया है

प्रसंग : इस पद में कृष्ण और नायिका के मिलन को बहुत ही सुंदर ढंग से दर्शाया गया है

व्याख्या : जब श्री कृष्ण जी गाय चराने के लिए मथुरा में जा रहे हैं तो नायिका भी अपनी गायों के झुंड को उसी में मिला देती है और इसी तरह दोनों की आंखें मिलती है और फिर मन भी मिल जाते हैं


जटित नीलमनि जगमगति सीक सुहाई नाँक ।

मनौ अली चंपक-कली बसि रसु लेतु निसाँक।।

संदर्भ : यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सत्साई से लिया गया है

प्रसंग : नायिका राधा के नाक की सुंदरता को अनोखा वर्णन इस पद के द्वारा किया गया है

व्याख्या : नायक नायिका के नाक की शोभा का वर्णन करता है और कहता है कि राधा जी की नाक मैं एक सुंदर सी मणिजङित सीक है और वह ऐसे दिखाई दे रही है जैसे चपे की कली पर भंवरा बैठा हुआ हो

विशेष १. नायक के आभूषण का वर्णन किया गया है

२. श्लेष अलंकार है उपेक्षा अलंकार है


मिली चंदन-बैठी रही गौर मुंह, न लखाइ

ज्यौं ज्यौं मद लाली चढै त्यौं त्यौं उधरति जाई

संदर्भ : यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सत्साई से लिया गया है

प्रसंग : नायिका के रूप का बड़े ही सुंदर और सूक्ष्म रूप से वर्णन किया गया है

व्याख्या : नायिका के मुख पर चंदन की बिंदी बहुत ही सुंदर लग रही है और वह ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे मदिरापान के बाद जो लाली चढ़ती है उससे वह प्रत्यक्ष नजर आने लगती है


लिखन बैठि जाकी सवी गहि गहि गरब गरूर।

भए न केते जगत के चतुर चितेरे कूर॥

संदर्भ : यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सत्साई से लिया गया है

प्रसंग : नायिका के रूप सौंदर्य का बड़े ही सुंदर ढंग से वर्णन किया गया है

व्याख्या : बिहारी जी कहते हैं की नायिका इतनी सुंदर है सारे चित्रकार नायिका के रूप सौंदर्य को चित्रित करने के लिए अभिमान से बैठे हैं लेकिन उनका अभिमान टूट जाता है क्योंकि नायिका इतनी सुंदर है कि चित्रकारों को बार-बार नायिका की सुंदरता परिवर्तित होती दिखाई देती है चतुर चित्रकार लोग ऐसे कितने ही आए लेकिन कोई भी चित्र चित्रत नहीं कर पाए |विकृत बुद्धि वाले कितने ही चित्रकार अभिमान से भरे हुए थे लेकिन कोई भी नायिका का चित्र नहीं बना सका

विशेष १. बिहारी ने लड़ाई करके नित प्रति पल बदलते सौंदर्य का वर्णन किया है

२. अद्भुत सौंदर्य का वर्णन किया गया है

अपार सौंदर्य का वर्णन किया गया है


दृग उरझत टूटत कुटुम, जुरत चतुर चित प्रीति।

परति गाँठि दुरजन हिये, दई नई यह रीति॥

संदर्भ : यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सत्साई से लिया गया है

प्रसंग : तिवारी ने इस पत्र के माध्यम से समाज की कुरीतियों का वर्णन किया है

व्याख्या : बिहारी जी कहते हैं कि जब नायक और नायिका के नेत्र आपस में उलझते हैं अर्थात मिलते हैं तो इसका परिणाम यही होता है कि उनके परिवार टूट जाते हैं अर्थात ऐसे नायक नायिका के प्रेम को उनके परिवार स्वीकार नहीं करते हैं लेकिन विचित्र बात यह है कि वे लोग जुड़ जाते हैं जो चित चालक होते हैं तीसरे ह्रदय चतुर होते हैं लेकिन दुर्जन लोग जो प्रेम को नहीं समझते हैं ऐसे लोगों के ह्रदय में गांठ पड़ जाती है ऐसे चतुर लोगों को मिलते हुए देखकर उन्हें दुख होता है लेकिन यह विधाता की नई रीति है कि काम कहीं और होता है उसका प्रभाव कहीं और हो रहा होता है

एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि जैसे आंखों से आंखें मिलती हैं परिवार टूट जाते हैं और दुर्जनों के हृदय में एक गांव सी पड़ जाती है इसलिए इन आंखों का मिलन थी एक विलक्षण ही है

विशेष १. असंगति अलंकार का प्रयोग हुआ है

२. भाषा की समाज शक्ति का प्रयोग किया है


रनित भृृग-घंटावली झरित दान-मधुनीरु।

मंद-मंद आवतु चल्यौ कुंजरु-कुंज-समीरु॥

संदर्भ : यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सत्साई से लिया गया है

प्रसंग : प्रकृति और बसंत ऋतु के आने का सुंदर वर्णन किस पद के द्वारा किया गया है

व्याख्या : बिहारी ने ऋतु वर्णन मैं बसंत का वर्णन किस प्रकार मंद मस्त हाथी गुजरते हुए झूमते हुए गले में बजती हुई घंटी (खंटावाली) उसकी गर्दन के पास से झढ़ता हुआ (भद्र) हाथी पुष्प उसके सामान मीठा नीर, उसकी मस्तानी चाल से धीरे-धीरे गमन कर रही है आगे की ओर अग्रसर है उसी प्रकार उक्त ऋतु की मंद मस्त पवन की हाथी के अनुरूप धीरे-धीरे अपने मंदमस प्रकृति से प्राप्त सुकृत हवा से सब को सराबोर करते हुए हाथी के समान धीरे धीरे चल रही है


विशेष १. चित्रांकन निरूपण।

२. प्रकृति वर्णन।

३. स्वतंत्र दोहा की रचना।

४. अलंकार को साधन के रूप में प्रस्तुत किया है ना कि साध्य रूप में ।

५. ऋतु वर्णन का सागर में सागर भरना।

६. शुद्ध-ब्रज भाषा का प्रयोग।

७. शब्दों की एकरूपता पर ध्यान दिया है।

८. समीर की तुलना मदमस्त हाथी से की है।

९. हाथी का मद (दान) सुगंध बसंत ऋतु की हवा के समान है।