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हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/रहीम

विकिपुस्तक से
अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ानाँ

दोहे


१- काज परै कछु और है,काज सरै कछु और।

रहिमन भॅंवरी के भयै नदी सिरावत मौर।।


संदर्भ- रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।


प्रसंग- प्रस्तुत दोहे के माध्यम से कवि ने किसी व्यक्ति की महत्ता को समय के अनुसार दर्शाने का प्रयास किया है।


व्याख्या- रहीमदास जी इस नीति के दोहे के माध्यम से हमें यह बताने का प्रयत्न कर रहे हैं कि जब किसी व्यक्ति की जरूरत होती है तो उसकी महत्ता कुछ और होती है परंतु काम के पश्चात चीजें काफी बदल जाती है। यह उसी प्रकार प्रतीत होता है जैसे कि शादी हो जाने के पश्चात हम दुल्हे के सेहरे को नदी में बहा आते हैं।


विशेष- छंद- दोहा , नीति का दोहा ,


२- खैर,ख़ून,खाॅंसी,खुसी,बैर,प्रीति,मदपान।

रहिमन दाबै न दबै जानत सकल जहान।


संदर्भ- पूर्ववत।


प्रसंग- इस दोहे के माध्यम से कवि हमें यह बताने का प्रयत्न कर रहा हैं कि कुछ चीजें ऐसी है जिन्हें भी छुपा लो वे छुप नही सकती है।


व्याख्या- रहीमदास जी इस दोहे के माध्यम से हमें यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि पान का कत्था,रक्त, खांसना, खुशी, किसी से बैर अथवा प्रेम और नशे के मद में होना हम किसी से छुपा नहीं सकते हैं इन्हें कितना भी छुपा ले ये छुप नहीं सकते हैं संसार इसे जान ही लेता है।


विशेष-दोहा छंद ,


३- जो रहीम दीपक दसा,तिय राखत पट ओट।

समय परे ते होत है,याही पट की चोट।।


संदर्भ- रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।


प्रसंग- प्रस्तुत दोहे के माध्यम से कवि ने हमें यह बताने का प्रयत्न किया है कि काम पड़ने पर जिस को हम संभाल कर रखते हैं बाद में उसी को किस प्रकार हटा देते हैं।


व्याख्या- रहीमदास जी ने हमें इस दोहे के माध्यम से हमें यह बताया है कि जब दीपक की आवश्यकता होती है तो जो औरत उसे हवा का झोंका आने पर अपने पल्लू से ढक कर बुझने से बचा लेती है बाद में अर्थात सूर्य के निकलने पर वही औरत उसे अपने पल्लू की चोट मारकर उसे बुझा देती है।


विशेष-


४- पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।

अब दादुर वक्त भए, हमको पूछे कौन।।


संदर्भ- रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।


प्रसंग- इस पद के माध्यम से रहीम दास जी एक समझदार व्यक्ति के कर्तव्य को समझाते हैं।


व्याख्या- वर्षा ऋतु को देख कर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया है। अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं। हमारी तो कोई बात ही नहीं पूछता। अभिप्राय यह है कि कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान व्यक्ति को चुप रह जाना पड़ता है. उनका कोई आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता है।


विशेष- *कोयल के माध्यम से व्यक्त किया गया है

  • मेंढक जैसे लोग महान बने फिर रहे हैं


५- प्रेम-पंथ ऐसो कठिन, सब काउ निबहत नाहि

रहिमन’ मैन-तुरंग चह़ि, चलिबो पावक माहि


संदर्भ- रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।


प्रसंग- इस पद के माध्यम से रहिमदास प्रेम के मार्ग का ज्ञान कराते हैं।


व्याख्या- रहिमदास कहते हैं कि प्रेम का मार्ग अत्यंत कठिन है सभी उसका निर्वाह नहीं कर सकते प्रेम के मार्ग पर निर्वाह करना कठिन वैसा ही है जैसे मॉम के घोड़े पर बैठकर अग्नि में चलना क्योंकि प्रेम मार्ग में अनेक कठिनाइयां आती हैं।


विशेष-


६- यह ‘रहीम’ निज संग लै, जनमत जगत् न कोय ।

बैर, प्रीति, अभ्यास, जस होत होत ही होय ॥


संदर्भ- रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।


प्रसंग- रहीम दास कहते हैं कि कोई व्यक्ति जन्म से ही बुद्धिमान या सर्वश्रेष्ठ पैदा नहीं होता है।


व्याख्या- रहिमदास कहते हैं कि बैर, प्रीति, अभ्यास और यश यह समस्त चीजें व्यक्ति जन्म से साथ लेकर पैदा नहीं होता है सभी तो अभ्यास, व्यवहार, साधना और अच्छे अचार के परिणाम स्वरूप ही प्राप्त होती है।


विशेष-


७- यह ‘रहीम’ माने नहीं , दिल से नवा न होय ।

चीता, चोर, कमान के, नवे ते अवगुन होय ॥


संदर्भ- रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।


प्रसंग- रहीम दास तीन वस्तु (चीते, चोर, कमान) के माध्यम से उनके महत्व को समझाने ने का प्रयास करते हैं। इनका चलना कभी भी व्यर्थ नहीं जात


व्याख्या- चीते का, चोर का और कमान का झुकना अनर्थ से खाली नहीं होता है। मन नहीं कहता कि इनका झुकना सच्चा होता है। चीता हमला करने के लिए झुककर कूदता है। चोर मीठा वचन बोलता है, तो विश्वासघात करने के लिए। कमान (धनुष) झुकने पर ही तीर चलाती है।


विशेष-


८- रहिमन अति न कीजिए, गहि रहिए निज कानि।

सैंजन अति फूलै तऊ, डार पात की हानि॥


संदर्भ- रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।


प्रसंग- रहीम कहते हैं कि कभी भी किसी कार्य और व्यवहार में अति न कीजिये। अपनी मर्यादा और सीमा में रहें।


व्याख्या- रहीम दास जी कहते हैं कि व्यक्ति को किसी भी चीज की अति नहीं करनी चाहिए। व्यक्ति को अपनी हद में रहते हुए अपनी मर्यादा का पालन करना चाहिए जैसे सैजन के वृक्ष में जब जरूरत से ज्यादा फूल आते हैं तो डाल और पत्ते टूट जाते हैं इसी लिए किसी भी चीज की अति न करो।


विशेष-. पद में बिंबात्मकता है

  • लोक कल्याण की बात की गई है
  • छंद- दोहा , नीति का दोहा ,


९- रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ,

जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।


संदर्भ- रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।


प्रसंग- रहीम कहते हैं की आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा।


व्याख्या- रहीम जी कहते हैं कि जैसे आंसू आंखों से निकल कर सीधे की पीड़ा को व्यक्त कर देते हैं ठीक उसी प्रकार जिसे आप अपने घर से निकालोगे तो वह भी घर के रहस्य को सभी से जाकर बता देगा जैसे रावण ने विभीषण को घर से निकाला था तो फिर भीषण ने राम से रावण के सारे रहस्य को बता दिया।


विशेष-.


१०- ‘रहिमन’ प्रीति न कीजिए , जस खीरा ने कीन।

ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांकें तीन ॥


संदर्भ- रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।


प्रसंग- रहीम दास जी कहते हैं कि व्यक्ति को समझकर और परख कर ही उसे प्रेम करना चाहिए। नहीं तो बाद में वह बहुत दुख देता है।


व्याख्या- रहीम दास जी कहते हैं कि छली कपटी व्यक्ति की तरह प्रेम नहीं करना चाहिए जो ऊपर से अच्छे दिखते हैं और अंदर से उनके दिल विभाजित होते हैं अर्थात कुछ और होता है जैसे खीरा ऊपर से सुंदर हरा भरा दिखाई देता है और अंदर से तीन भागों में बटा होता है | प्रेम में कपट नही होना चाहिये।वह बाहर भीतर से एक समान पवित्र और निर्मल होना चाहिये।केवल उपर से दिल मिलने को सच्चा प्रेम नही कहते।


विशेष-.


११- रहिमन पैंडा प्रेम को निपट सिलसिली गैल।

बिछलत पाॅव पिपीलिका लोग लदावत बैल।।


संदर्भ- रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।


प्रसंग- रहीम दास जी बताते हैं कि प्रेम की राह कितनी कठिन होती है केवल निश्छल ब्यक्ति हीं प्रेम में सफल हो पाते हैं।


व्याख्या- रहीम दास जी कहते हैं कि प्रेम का रास्ता अत्यंत फिसलन भरा है और हो सकता है जिस में चलने से चींटी के भी पांव फिसलते है तो लोग उसमें बैल लादकर ले जाना चाहते हैं अर्थात धोखे और चालाकी के साथ चलना चाहते हैं| जिसमे सच्चाई है संयम एवं एकाग्रता है वहीं इस मार्ग से जा सकता है।


विशेष-.


१२- रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाये।

टूटे से फिर ना जुटे जुटे गाॅठ परि जाये।।


संदर्भ- रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।


प्रसंग- रहीम दास जी कहते हैं कि प्रेम का रिश्ता अत्यंत नाजुक डोर से बँधा होता है उसको कभी तोड़ना नहीं चाहिए।


व्याख्या- रहीम दास कहते है प्रेम के संबंध को सावधानी से निबाहना पड़ता है । थोड़ी सी चूक से यह संबंध टूट जाता है । टूटने से यह फिर नहीं जुड़ता है और जुड़ने पर भी एक कसक रह जाती है।


विशेष-.