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हिंदी भाषा और साहित्य ख/पदावली

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मीराँबाई की पदावली-सं. आचार्य परशुराम चतुर्वेदी, हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, चौदहवाँ संस्करण १८९२, १९७०ई. पद-१, ४, ५

मण थें परस हरि रे चरण।।
सुभग सीतल कँवल कोमल, जगत ज्वाला हरण।
जिण चरण प्रहलाद परस्याँ, इन्द्र पदवी धरण।
जिण चरण ध्रुव अटल करस्याँ, सरण असरण सरण।
जिण चरण ब्रह्माण्ड भेट्याँ, नखसिखाँ सिरी धरण।
जिण चरण कालियाँ नाथ्याँ, गोपी लीला करण।
जिण चरण गोबरधन धार्याँ, गरब मधवा हरण।
दासि मीराँ लाल गिरधर, अगम तारण तरण।।

हरि म्हारा जीवण प्राण आधार ।। टेक।।
और आसिरो णा म्हारा थें विण, तीनूँ लोक मँझार।
थें विण म्हाणे जग णा सुहावाँ, निरख्याँ सब संसार।
मीराँ रे प्रभु दासी रावली, लीज्यो णेक णिहार ।। 4 ।।

राग-कान्हरा
तनक हरि चितवाँ म्हारी ओर ।। टेक।।
हम चितवाँ थें चितवो णा हरि, हिवड़ों बड़ो कठोर।
म्हारी आसा चितवणि थारी, ओर णा दूजा ठौर ।
उभ्याँ ठाढ़ी अरज करूँ छूँ करताँ करताँ भोर।
मीराँ रे प्रभु हरि अविनासी देस्यूँ प्राण अकोर ।। 5 ।।

शब्द
म्हारो गोकुल रो ब्रजवासी ।। टेक।।
ब्रजलीला लख जण सुख पावाँ, ब्रजवणताँ सुखरासी।
णाच्याँ गावाँ ताल बजावाँ, पावाँ आणंद हाँसी।
णन्द जसोदा पुत्र री, प्रगटयाँ प्रभु अविनासी।
पीताम्बर पट उर बैजणता, कर सोहाँ री बाँसी।
मीराँ रे प्रभु गिरधर नागर, दरसण दीज्यो दासी।।6।।