हिंदी भाषा और साहित्य ख/बिहारी
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बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ॥
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या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोइ।
ज्यौं-ज्यौं बूड़ै स्याम रँग त्यौं-त्यौं उज्ज्वल होइ॥[१]
सटपटाति-सी ससिमुखी मुख घूँघट-पटु ढाँकि।
पावक-झर-सी झमकिकै गई झरोखौ झाँकि॥72॥[२]