हिंदी साहित्य का इतिहास (आदिकाल एवं मध्यकाल)/सिद्ध साहित्य
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सिद्ध साहित्य
- सिद्धों की संख्या 84 मानी जाती है (राहुल सांकृत्यायन के अनुसार)
- सिद्धों का संबंध पूर्वोत्तर भारत से रहा है
- सिद्ध निरीश्वर वादी है
- शास्त्रीय ज्ञान का विरोध किया
- तांत्रिक साधना पर बल दिया
- सिद्धों की रचनाओं में शांत व श्रृंगार रस की प्रधानता मानी जाती है
- जब बौद्ध धर्म को दो भागों में बांटा गया तो इसमें से दो शाखाएं निर्मित हुई (हीनयान और महायान)
- हीनयान :- हीनयान बौद्ध धर्म की एक प्राचीन शाखा है जो इस धर्म के आरंभिक रूप को मानती है। हीनयान बौद्ध धर्म के दो सम्प्रदायों में से एक हैं। इसे थेरवाद भी कहा जाता है। थेरवाद या हीनयान बुद्ध के मौलिक उपदेश ही मानता है।
- महायान :- महायान, वर्तमान काल में बौद्ध धर्म की दो प्रमुख शाखाओं में से एक है। (महायान के अंतर्गत दो शाखाएं उत्पन्न हुई सहजयान और वज्रयान)
- वज्रयान शाखा का प्रचार प्रसार करने वाले सिद्ध कहलाते है
- सिद्ध धर्म में 3 महिला संत हुई (कनखलता, मणिभद्रपा, लक्ष्मीखरा)
- सिद्ध धर्म की भाषा संध्या भाषा थी ( यह भाषा पहेलिदार होती है)
- संध्या भाषा का इसका विकसित रूप कबीरदास के उलट भाषियों शैली में मिलता है
विशेषताएं
- काया की साधना
- अंतर्मुखी साधना
- सद्गुरु की महिमा
- ज्ञान की उपेक्षा
- समाजिक खंडन मंडन की प्रवृत्ति
- वर्णाश्रय व्यवस्था का विरोध
- संध्या भाषा शैली का प्रयोग
- नारी को साधना के केंद्र में रखा