हिंदी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल)/उत्तर छायावाद

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द्विवेदी युग, छायावाद और छायावाद के बाद के दौर में मुख्य काव्यधारा के समानांतर अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरोध में राष्ट्रीयता के नये स्वर और स्वच्छंदतावादी प्रवृत्तियों के साथ कविता की कुछ काव्यधाराएँ और भी प्रवाहमान रहीं। द्विवेदी युग और छायावादी कविता के समय उस काव्यधारा से जुड़े कवियों ‘माखनलाल चतुर्वेदी’, ‘बालकृष्ण शर्मा नवीन’, ‘सुभद्रा कुमारी चौहान’, ‘सोहनलाल द्विवेदी’ और बाद में ‘रामधारी सिंह दिनकर’ का नाम लिया जाता है।

प्रमुख प्रतिनिधि कवि तथा उनकी रचनाएं[सम्पादन]

माखनलाल चतुर्वेदी की “हिमकिरीटिनी”, “हिमतरंगिणी”, और समर्पण प्रमुख रचनाएं हैं। स्वाधीनतावादी चेतना, त्याग, और बलिदान उनकी कविता के केंद्र में है। बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ ओज और पौरूष के कवि हैं। “कुंकुम”, “अपलक”, और “रश्मिरेखा” उनकी प्रमुख कृतियां हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता “झांसी की रानी”, और “वीरों का कैसा हो वसन्त”; स्वाधीनता संघर्ष के दौर की प्ररेणास्पद कविता है।

रामस्वरूप चतुर्वेदी का वक्तव्य[सम्पादन]

"छायावादी काव्य और उसके समानांतर लिखा गया गद्द साहित्य आधुनिक सृजनशीलता की श्रेष्ठतम उपलब्धि में है। कविता में जो छायावाद युग है, नाटक के क्षेत्र में वह प्रसाद युग, कथा साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद युग और आलोचना में शुक्ल युग है। उत्तर छायावाद स्पष्ट ही इस तुलना में हल्का पड़ता है। छायावाद की बुनियादी सांस्कृतिक इनके योग्य न‌ थीं; इनकी रुचि तत्कालिक समाधानों में अधिक थीं; संदर्भ चाहे प्रेम के हों या कि फिर मानव क्रांति के।"