हिंदी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल)/स्वाधीनता आंदोलन और नवजागरणकालीन चेतना का उत्कर्ष
भारतेन्दु युग से ही राष्ट्रीय भावना की कविताएं लिखी जाने लगी थी। भारतेंदु ने 'भारत दुर्दशा' में भारत की खराब स्थिति तथा उसमें अंग्रेजों की भूमिका रेखांकित की।
रोअहू सब मिलिकै आवहु भारत भाई।
हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ।। धु्रव ।।
सबके पहिले जेहि ईश्वर धन बल दीनो।
सबके पहिले जेहि सभ्य विधाता कीनो ।।
सबके पहिले जो रूप रंग रस भीनो।
सबके पहिले विद्याफल जिन गहि लीनो ।।
अब सबके पीछे सोई परत लखाई।
हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ।।
प्रेमघन ने आनन्द अरूणोदय, तथा 'देश दशा' में, राधाकृष्ण दास ने भारत बारहमासा में भारत की खराब स्थिति के प्रति चिंता दिखायी। कवि 'शंकर' ने शंकर सरोज, शंकर सर्वस्व, गर्भरण्डारहस्य के अर्न्तगत बलिदान गान लिखकर देश के प्रति उत्सर्ग की भावना को प्रोत्साहित किया। 'प्राणों का बलिदान देष की वेदी पर करना होगा' १९१२ ई. में मैथिलीशरण गुप्त ने भारत भारती में लिखा है कि-
'वज्रनाद से व्योम जगा दे
देव और कुछ लाग लगा दे'
छायावादी कवियों ने भी राष्ट्रीय भावना की अनेक कविताएं लिखीं। निराला ने 'वर दे वीणा वादिनी', 'भारती जय विजय करे', 'जागो फिर एक बार', 'शिवाजी का पत्र' आदि लिखीं। प्रसाद के नाटकों में 'अरूण यह मधुमय देश हमारा' चन्द्रगुप्त नाटक में आया 'हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती' आदि कविताओं में देश प्रेम का भाव व्यक्त किया है। बालकृष्ण शर्मा नवीन ने 'विप्लव गान' शीर्षक कविता में लिखा-
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाये
एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर को जाये
नाश ! नाश! हाँ महानाश! ! ! की प्रलयंकारी आंख खुल जाये।"
माखनलाल चतुर्वेदी ने हिमकिरीटनी, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण आदि कृतियों में राष्ट्रीय भाव की रचनाएं की।