हिंदी साहित्य का सरल इतिहास/अन्य मत
आधुनिक हिंदी क्षेत्र के बाहर पड़ने वाले दो संत कवियों- महाराष्ट्र के नामदेव (13 वीं शती) और पंजाब के गुरु नानक (15 वीं शती) ने हिंदी में रचनाएँ की हैं। अनुमानतः नामदेव पहले सगुणोपासक थे, बाद में ज्ञानदेव के प्रभाव के कारण नाथ पंथ में आए। इसी कारण नामदेव की रचनाएँ सगुणोपासना और निर्गुणोपासना, दोनों से संबंधित हैं। गुरु नानक का संबंध किसी संप्रदाय से जोड़ना कठिन है। वे दृष्टिकोण में कबीर से काफ़ी मिलते-जुलते हैं, यद्यपि उनका स्वर कबीर जैसा प्रखर नहीं, बल्कि शामक है। ये सिख संप्रदाय के प्रथम गुरु है|
इनके अतिरिक्त भी भक्ति के अनेक छोटे-छोटे संप्रदाय हैं, किंतु भक्ति का लक्षण भगवद्विषयक रति, अनन्यता, पूर्ण समर्पण सब में मिलता है। सदाचार, परदुखकातरता, प्राणिमात्र पर करुणा, समभाव, अनावश्यक लौकिक संपत्ति के प्रति उपेक्षा, अहिंसा आदि का भाव सभी प्रकार के भक्तों में पाया जाता है। इनमें निर्भीकता भी है।