हिंदी साहित्य का सरल इतिहास/सूफी साधना
भक्ति आंदोलन इतना व्यापक एवं मानवीय था कि इसमें हिंदुओं के साथ मुसलमान भी आए। सूफ़ी यद्यपि इस्लाम मतानुयायी हैं, किंतु अपने दर्शन एवं साधना-पद्धति के कारण भक्ति आंदोलन में गणनीय हैं। इस्लाम एकेश्वरवादी है। किंतु सूफ़ी संतों ने 'अनलहक' अर्थात् 'मैं ब्रह्म हूँ' की घोषणा की। यह बात अद्वैतवाद से मिलती-जुलती है। सूफ़ी साधना के अनुसार मनुष्य के चार विभाग हैं-
1. नफ्स (इंद्रिय),
2. अक्ल (बुद्धि या माया),
3. कल्ब (हृदय),
4. रूह(आत्मा)।
यह साधना नफ्स और अक्ल को दबाकर कल्ब की साधना से रूह की प्राप्ति पर बल देती है। हृदय-रूपी दर्पण में परम सत्ता का प्रतिबिंब आभासित होता है। यह दर्पण जितना ही निर्मल होगा, रूप उतना ही स्पष्ट होगा, अर्थात् सूफ़ी साधना भी हृदय की साधना है। इसी से वह भक्ति है। आचार्य शुक्ल ने इसीलिए जायसी आदि सूफ़ी कवियों को कबीर, सूर, तुलसी की कोटि में रखा है। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि सूफ़ी संतों में भी प्राय: निम्न वर्ग के लोग थे और इसमें राबिया जैसी महिला साधिका प्रसिद्ध हैं। मुल्ला दाऊद (1379) हिंदी प्रथम सूफ़ी कवि हैं। सूफ़ी कवियों की परंपरा उन्नीसवीं शती तक मिलती है। सूफ़ी साधना का प्रवेश इस देश में बारहवीं शती में मोइनुद्दीन चिश्ती के समय से माना जाता है। सूफ़ी साधना के चार संप्रदाय प्रसिद्ध हैं-1. चिश्ती, 2. सोहरावर्दी, 3. कादरी और 4. नक्शबंदी। हिंदी का सूफ़ी काव्य अवधी भाषा में रचित मिलता है। सूफ़ी मुसलमान थे, लेकिन उन्होंने हिंदू घरों में प्रचलित कथा-कहानियों को अपने काव्य का आधार बनाया। उनकी भाषा और वर्णन में भारतीय संस्कृति रची-बसी है। प्रेम की पीर की व्यंजना इनकी विशेषता है।