हिंदी सिनेमा 2024/निल बट्टे सन्नाटा

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                                            फिल्म समीक्षा 

फिल्म शीर्षक  : नील बट्टे सन्नाटा

निर्देशक  : अश्विनी अय्यर तिवारी

शैली  : नाटक

मूल भाषा  : हिंदी

प्रदर्शन तिथि: 22 अप्रेल, 2016

रनटाइम  : 1 घंटा 40 मिनट

IMBD  : 8.2/10

निर्माता  : एलन मैकएलेक्स , आनंद एल राय , अजय राय संजय शेट्टी , नितेश तिवारी

लेखक  : अश्विनी अय्यर तिवारी , नीरज सिंह , नितेश तिवारी , प्रांजल चौधरी।

समीक्षा : इस फिल्म की कहानी आगरा में रहने वाली एक मां (चंदा सहाय) और उसकी 15 वर्षीय बेटी (अपेक्षा सहाय) की है। चंदा अकेली मां है जो आगरा के एक मध्यमवर्गी घर में नौकरानी है तथा अतिरिक्त आय के लिए जूता फैक्ट्री, धोबी घाट जैसे जगह पर भी काम करती है ताकि वह अपनी बेटी अपेक्षा के लिए अच्छी शिक्षा सुनिश्चित कर सके। वहीं दूसरी ओर अपेक्षा उर्फ अप्पू एक लापरवाह लड़की है जिसने हाल में दसवीं कक्षा में प्रवेश किया है, उसका मन पढ़ाई से ज्यादा टी.वी देखने, डांस करने और दोस्तों के साथ घूमने में लगता है। उसे गणित से सख्त नफरत है। अप्पू जैसा कि उसकी मां उसे बुलाती है एक "जिद्दी घोड़ी" है। अप्पू का मानना है कि एक ‘बाई की बेटी बाई ही बनेगी’ और ‘गरीबों को सपने देखने का हक नहीं होता’। चंदा अप्पू को पढ़ाई के लिए प्रभावित करने का हर मुमकिन प्रयास करती है और वह अप्पू की सोच और अपनी परिस्थितियों के आगे हार नहीं मानना चाहती।

यह एक साफ–सुथरी और कुछ हद तक सरल कहानी है जिसे निर्देशक–अश्विनी अय्यर तिवारी हल्के स्पर्श और बहुत दिल से कहती हैं। फिल्म का केंद्र मां और बेटी का रिश्ता है। वह दोस्त हैं लेकिन उनमें कटुता और प्रतिस्पर्धा भी है। वह बोहोत हद्द तक बहनों की तरह हैं। फिल्म में आप चंदा के लिए सबसे ज्यादा महसूस करते हैं। स्वरा ने मां के दर्द तथा भावनाओं को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। लेखक – नितेश तिवारी ने उनके रिश्ते में दोषों को उजागर किया है और मां के रूप में स्वरा भास्कर तथा बेटी के रूप में रिया शुक्ला दोनों ने मजबूत अभिनय किया है। स्कूल प्रिंसिपल जो की दसवीं में गणित भी पढ़ाता है, के रूप में पंकज त्रिपाठी के किरदार को देखकर मजा आता है। अन्य सहायक किरदार जैसे चंदा की मालकिन, दीदी तथा सलाहकार के रूप में रत्ना पाठक शाह, अप्पू का दोस्त पिंटू जो ड्राइवर बनना चाहता है तथा कलेक्टर के रूप में संजय सूरी जो चंदा के लिए एक आदर्श है, आदि ने भी अपना किरदार बहुत अच्छे से निभाया है। फिल्म में आगरा की खूबसूरती को दर्शाया गया है – नदी, घाट, ताजमहल, सड़क किनारे जलेबी और लस्सी बेचने वाले, सभी कहानी का हिस्सा बन जाते हैं। फिल्म का संगीत उत्तम और रंगीन है। फिल्म में डायलॉग रूह कंपा देने वाले और दिल को छू जाने वाले हैं।

निल बट्टे सन्नाटा को जो बात सबसे अलग बनाती है वह यह है कि यह कैसे गरीब परिवारों को शिक्षा हासिल करने की कोशिश में आने वाली मुश्किलों को वास्तविक रूप से दिखाती है। वहीं बड़े साहस के साथ अकेली मां के रूप में चंदा का किरदार साबित करता है की गणित, गरीबी, अवसर की कमी – यदि आप पर्याप्त मेहनत करें तो आखिर में सभी बाधाओं से पार आया जा सकता है। साथ ही साथ फिल्म इस बारे में एक मजबूत संदेश देती है की शिक्षा का क्या महत्व है और यह कैसे जीवन को बदल सकती है। परंतु इतनी खूबियों के बावजूद 100 मिनट की यह फिल्म कुछ साधारण तथा खिंची हुई लगती है।

अंततः निल बटे सन्नाटा एक दिल को छू लेने वाली प्रेरणादायक फिल्म है जो शिक्षा, आकांक्षाओं और मां और बेटी के बीच के रिश्ते की जटिलताओं की पड़ताल करती है। बिना किसी बड़े थियेटर रिलीज़ तथा बिना किसी बड़े अभिनेता के यह फिल्म अपनी छाप छोड़ जाती है। इसे देखकर आपकी आंखों में आंसू और दिल में अपनी मां को गले से लगाने की इच्छा आ सकती है।



नाम  : मोहम्मद अजीम अंसारी

क्रमांक: 395