हिन्दी/आजादी के बाद

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आजादी के बाद 13 सितम्बर 1949 भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि किसी विदेशी भाषा से कोई देश महान नहीं बन सकता, क्योंकि कोई भी विदेश भाषा आम लोगों की भाषा नहीं बन सकता है। उसके एक दिन बाद 14 सितंबर 1949 में हिन्दी भाषा को लेकर कई निर्णय लिए गए। इसमें यह निर्णय लिया गया कि हिन्दी भाषा लिपि देवनागरी और अंक अंतरराष्ट्रीय होगा। यह भारत की राजभाषा भी होगा।

हिन्दी का विरोध और अंग्रेज़ी को स्थान[सम्पादन]

हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाने के बाद ही इसका विरोध शुरू होने लगा। क्योंकि कुछ प्रतिशत लोगों को हिन्दी का कोई ज्ञान नहीं था। इस विरोध के बाद यह फैसला लिया गया कि अंग्रेज़ी भाषा को 15 वर्षों के लिए राजभाषा का स्थान जाएगा। इसके बाद केवल हिन्दी ही राजभाषा होगी। इन 15 वर्षों में सभी को हिन्दी भाषा सिखाया जाएगा, जिससे किसी को भी हिन्दी भाषा में किसी भी प्रकार की तकलीफ न हो।

15 वर्षो के बाद[सम्पादन]

15 वर्षों के बाद हिन्दी भाषा का विकास नहीं हुआ और तब तक अंग्रेज़ी भाषा ने काफी हद तक हिन्दी का स्थान ले लिया था। 26 जनवरी 1965 को संसद में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि "हिन्दी का सभी सरकारी कार्यों में उपयोग किया जाएगा, लेकिन उसके साथ साथ अंग्रेज़ी का भी सह राजभाषा के रूप में उपयोग किया जाएगा।" वर्ष 1967 में संसद में "भाषा संशोधन विधेयक" लाया गया। इसके बाद अंग्रेज़ी को अनिवार्य कर दिया गया। इस विधेयक में धारा 3(1) में हिन्दी की चर्चा तक नहीं की गई। इसके बाद अंग्रेज़ी का विरोध शुरू हुआ। 5 दिसंबर 1967 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राज्यसभा में कहा कि हम इस विधेयक में विचार विमर्श करेंगे। लेकिन इसके बाद भी कोई परिवर्तन नहीं किया गया।