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  • तो हम से लिखवाए हुई सुबह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले हुई इस दौर में मंसूब मुझ से बादा-आशामी फिर आया वो ज़माना, जो जहां में जामे-जम निकले हुई जिनसे...
    ३ KB (२१७ शब्द) - ०५:१३, २६ जुलाई २०२१
  • आएंगीं, उनकी स्वादेन्द्रियों को गुदगुदाने लगा। उन्होंने मन में तरह-तरह के मंसूबे बांधे-- पहले तरकारी से पूड़ियाँ खाऊंगी, फिर दही और शक्कर से, कचौरियाँ रायते...
    ४१ KB (३,३६१ शब्द) - ०४:५६, २५ जुलाई २०२१
  • आएंगीं, उनकी स्वादेन्द्रियों को गुदगुदाने लगा। उन्होंने मन में तरह-तरह के मंसूबे बांधे-- पहले तरकारी से पूड़ियाँ खाऊंगी, फिर दही और शक्कर से, कचौरियाँ रायते...
    ४१ KB (३,३६१ शब्द) - १७:४६, २१ मार्च २०२२
  • आएंगीं, उनकी स्वादेन्द्रियों को गुदगुदाने लगा। उन्होंने मन में तरह-तरह के मंसूबे बांधे-- पहले तरकारी से पूड़ियाँ खाऊंगी, फिर दही और शक्कर से, कचौरियाँ रायते...
    ४१ KB (३,३६१ शब्द) - ०८:५४, १० जनवरी २०२२