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आर्थिक भूगोल/कृषि के स्थानीयकरण के सिद्धांत

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वाँन थ्यूनेन

वॉन थ्यूनेन का सिद्धान्त

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कृषि उत्पादन का कार्य विस्तृत क्षेत्र पर होता है, इसलिए साधारणतया इसमें स्थानीयकरण संबंधी कोई समस्या प्रथम दृष्टया नजर नहीं आती, किंतु जिस तरह किसी उद्योग के किसी स्थान विशेष पर स्थानीयकरण की समस्या उत्पन्न होती है उसी तरह जिस समस्या कृषि उत्पादन में भी होती है इस समस्या के समाधान हेतु 1826 में सर्वप्रथम वॉन थ्यूनेन ने प्रयास किया। वॉन थ्यूनेन द्वारा प्रतिपादित कृषि स्थानीयकरण सिद्धांत सबसे पहला सिद्धांत था जिसे सबसे अधिक मान्यता मिली है। []यह सिद्धांत 1826 में प्रतिपादित किया गया था जो एडम स्मिथ एवं अलब्रेट दायर जैसे प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों के सिद्धांतों पर आधारित था। जॉन हेनरिज,वॉन थ्यूनेन(1783-1850) एक जर्मन विद्वान थे। सन् 1810 में रोस्टोक नगर के नजदीक में मैकलनबर्ग में टेलो कृषि फार्म के मैनेजर बने। थ्यूनेन जीवनपर्यंत 40 सालों तक बड़ी ही कुशलता एवं सफलता के साथ अपना पद संभाले रहे। अपने जीवन के अंतिम 40 वर्षों में उन्होंने अपना फार्म चलाने के लिए लागत तथा उत्पादन की छोटी से छोटी जानकारी का अध्ययन किया उन्होंने अपने कृषि अवलोकनों के माध्यम से एक विशेष तरह के परस्पर संबंध को ढूंढ निकाला जो की तुलनात्मक लाभ के सिद्धांत पर आधारित था। वॉन थ्यूनेन के उस कृषि स्थानीयकरण सिद्धांत पर विचार करने से पहले उनके द्वारा प्रयुक्त कुछ शब्दावलीयों के बारे में अध्ययन करते हैं-

  1. आर्थिक लगान (Economic Rent)- आर्थिक लगान वस्तुतः वह सापेक्षिक लाभ है जो किसी फसल को बाजार के नजदीक की भूमि पर उपजाने से प्राप्त होता है।
  2. लगान शुन्य भूमि (No Rent Land)- ऐसी सीमांत क्षेत्र की भूमि जहां फसल उत्पादन से कोई लाभ प्राप्त नहीं होता,लगान शुन्य भूमि कहते हैं।

उद्देश्य

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उद्देश को समझाने के लिए दो प्रारूपों को आधार के रूप में प्रयोग किया गया है।

  1. बाजार से बढ़ती दूरी के साथ-साथ फसल के प्रकार और कृषि-भूमि उपयोग बदल जाते है।
  2. बाजार से बढ़ती दूरी के साथ-साथ क्रमशः कृषि उत्पादन की गहनता में आ जाती है।

वॉन थ्यूनेन की मान्यताएं

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वॉन थ्यूनेन ने अपने जटिल सिद्धांत को सरल रूप देने के लिए कुछ मान्यताओं की एक सूची तैयार की जिससे संबंधित बाधाओं पर अंकुश रखा जा सके इनकी मान्यताएं निम्न प्रकार थी:-

  1. उन्होंने एक ऐसे विलग प्रदेश (Isolated State)की कल्पना की है जिसके केंद्र में एक नगर है जिसके चारों और विस्तृत कृषि क्षेत्र हैं।
  2. यह नगर उस विलग प्रदेश के कृषि उत्पादन के खपत का एकमात्र बाजार है जो ना कहीं से आयात करता है और ना ही कृषि अधिक्य को किसी अन्य बाजार में बेचता है।
  3. इस विलग प्रदेश में सर्वत्र एक सा प्राकृतिक वातावरण है,अर्थात सर्वत्र एक समान धरातल,जलवायु विद्यमान है।
  4. इसमें बसने वाले कृषक अधिकतम लाभ प्राप्त करने के इच्छुक हैं तथा नगर में मांग के अनुसार फसलों की किस्मों में फेर बदल करने में सक्षम हैं।
  5. संपूर्ण विलग प्रदेश में एक ही प्रकार के परिवहन साधन उपलब्ध हैं। (जो उनके समय घोड़ा गाड़ी था)।
  6. परिवहन व्यय दूरी तथा भार के अनुपात में बढ़ता है।

मौलिक सिद्धांत

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थ्यूनेन का सिद्धांत मुख्य रूप से आर्थिक लगान पर आधारित था। जिसे बाद के भूगोलवेताओं ने स्थानीयकरण लगान का नाम दिया। आर्थिक लगान वह लाभ है जो विभिन्न प्रकार के उत्पादित वस्तुओं के अर्जित दाम से उत्पादन लागत को घटाकर प्राप्त होता है। थ्यूनेन ने आर्थिक लगान का परिकलन निम्नलिखित सूत्र के रूप में किया है-

LR=Y(m-c)-ytd.

जिसमें, LR=स्थानीयकरण लगान
Y=प्रति इकाई उपज
m=उत्पादन के बाजार मूल्य
c=उत्पादन लागत
t=परिवहन मूल्य
d=बाजार से भूमि खंड की दूरी

थ्यूनेन का सिद्धान्त
थ्यूनेन का सिद्धान्त

थ्यूनेन का सिद्धांत के आधार

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  1. बढ़ती दूरी के साथ-साथ भूमि उपयोग में परिवर्तन। यदि दो क्षेत्रों में दो फसलों का चयन करना हो तो किस क्षेत्र में कौन सी फसल लगाई जाए यह उस फसल की कीमत,उत्पादन लागत,परिवहन लागत,प्रति एकड़ उपज ,इत्यादि बातों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाता है। प्रत्येक क्षेत्र में किसी एक फसल का उत्पादन दूसरे फसल की अपेक्षा अधिक हो सकता है।ऐसी स्थिति में प्रत्येक क्षेत्र को उस फसल के उत्पादन में विशेषीकरण करना चाहिए इसका उत्पादन होता है। यदि दो फसलों में पहले का परिवहन व्यय कम और बाजार में कीमत अधिक प्राप्त हो तो दूसरे की तुलना में पहले का स्थानीयकरण बाजार के अधिक निकट होगा।
  2. बाजार से बढ़ती दूरी के साथ-साथ भूमि उपयोग के गहनता में कमी। बाजार के निकट उगाई गई फसलों का आर्थिक लगान बाजार से दूर उगाई गई फसलों से अधिक होगा। मुख्य रूप से इसका कारण परिवहन लागत है। थ्यूनेन के अनुसार बाजार के निकट अथवा दूर, दोनों स्थानों में प्रति इकाई उपज एक समान होगी परंतु बाजार से दूर स्थित भूमि खंडों के अत्यधिक उत्पादन को बाजार तक लाने के लिए अधिक परिवहन व्यय का भार उठाना पड़ेगा। अतः बाजार से दूर स्थित हुए भूमि खंडों में व्यापक कृषि ही अधिक लाभदायक होगी जबकि बाजार के निकट ग्रहण कृषि अधिक लाभदायक होगी।

सिद्धांत की मेखलाएं

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वॉन थ्यूनेन के अनुसार केन्द्र से दूर क्रमशः छः निम्नलिखित भूमि उपयोग मेखला पाए जाते हैं। []
पहला वृत खण्ड में दूध,फल एवं शाक-सब्जी की गहन कृषि।
दूसरा वृत खण्ड में लकड़ी का उत्पादन।
तीसरा वृत खण्ड में गहन-कृषि पद्धति द्वारा अन्न का उत्पादन।
चतुर्थ एवं पंचम वृत खण्ड में अपेक्षाकृत विस्तृत खेती द्वारा अन्न की खेती होगी जिसमें कुछ परती जमीन भी छोड़ी जाएगी।
छठवें वृत खण्ड में पशुओं के चारागाह का उत्पादन।

वॉन थ्यूनेन सिद्धांत की मेखलाएं
वॉन थ्यूनेन सिद्धांत की मेखलाएं

आलोचना

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  1. वॉन थ्यूनेन द्वारा कल्पित विलग प्रदेश की तरह कोई भी क्षेत्र वास्तविक जगत में मिलना कठिन है।
  2. आधुनिक समय में परिवहन व्यय केवल भार तथा दूरी के अनुपात में ही नहीं बढ़ता बल्कि अन्य कारक में कार्यरत होते हैं।
  3. दिनों-दिन प्राविधिक विकास होने के कारण न केवल परिवहन बल्कि अन्य तकनीकी विकास भूमि उपयोग को विविध प्रकार से प्रभावित करता है जैसे रेफ्रिजरेटर के विकास से अब दूध, सब्जी, फल, जैसे शीघ्र नष्ट होने वाले पदार्थों का परिवहन बहुत दूर-दूर तक करना संभव हो गया है,अतः उनका उत्पादन नगर के नजदीक होना अनिवार्य नहीं है।
  4. किसी भी क्षेत्र में उत्पादित वस्तुओं के लिए अनेक बाजार उपलब्ध है।
  5. मिट्टी की उत्पादन क्षमता सभी फसलों के लिए समान दिखाई गई है जबकि कृषि के लिए जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण कारक है वह है मिट्टी का उपजाऊपन पर इसे थ्यूनेन ने अपने सिद्धांत में कहीं भी प्रमुखता नहीं दी है।[]

बाद में थ्यूनेन ने दो और कारकों को अपने सिद्धांत में आत्मसात किया।

  1. परिवहन के साधन के रूप में एक नदी जिसमें परिवहन गति अधिक तीव्र एवं परिवहन व्यय 1/10 के बराबर होगा। इससे सकेंद्रीय वित्त खंडों का स्वरूप बदलकर नदी के दोनों ओर समानांतर खंडों में होगा।
  2. उस विलग प्रदेश में कोई दूसरा उपनगर हो तो उसको अपनी स्वतंत्रता पृष्ठभूमि में स्वतंत्र सकेंद्रीय वृत्त खंडों में विभिन्न फसलों के उत्पादन की कल्पना थ्यूनेन ने की।

ओलफ जोनासन का सिद्धान्त

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स्वीडन के भूगोलवेत्ता ओलफ जोनासन ने वाॅन थ्यूनेन के माॅडल में संशोधन किया है। सन् 1925 में उसने यूरोप के कृषि-परिदृश्य प्रारूप पर इसे लागू किया। उसने ऐसा देखा कि यूरोप,उत्तरी अमेरिका में कृषिय भूमि उपयोग की पेटियां औद्योगिक केंद्रों के इर्द-गिर्द स्थित है।

ओलफ जोनासन के अनुसार पेटियां

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  1. नगरीय केंद्र के बाहर हरी शाक-सब्जी एवं फूलों की खेती
  2. फल,आलू एवं तंबाकू
  3. डेयरी उत्पादन, मांस के लिए मवेशी, एवं मोटे खाद्यान्न
  4. सामान्य खेती अन्न और पशुओं के लिए चारा
  5. खाद्यान्न एवं तेल के लिए फ्लैक्स
  6. मवेशी,घोड़े एवं भेड़ों का पशुचारण, डिब्बा बंद मांस,नमक,
  7. सबसे बाहरी क्षेत्र वन

ओलफ जोनासन का सिद्धांत वर्तमान में मान्यता प्राप्त नहीं हैं।

संबंधित प्रश्न

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इस अध्याय से संबंधित प्रश्न कुछ इस प्रकार हैं:-

  1. वॉन थुनन मॉडल की 5 केंद्रीय धारणाएं क्या हैं?
  2. वॉन थुनन मॉडल की व्याख्या करें?
  3. वॉन थुनन मॉडल क्यों महत्वपूर्ण है?
  4. भूगोलविदों के लिए वॉन थुनन मॉडल कैसे उपयोगी हो सकता है?
  5. वॉन थुनन मॉडल की आलोचना पर चर्चा करें।

सन्दर्भ

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  1. Thünen, Johann Heinrich von. 1783–1850. Der Isolierte Staat in Beziehung auf Landwirtschaft und Nationalökonomie, oder Untersuchungen über den Einfluss, den die Getreidepreise, der Reichtum des Bodens und die Abgaben auf den Ackerbau ausüben, Vol. 1,. and Der Isolierte Staat..., Vol II: Der Naturgeässe Arbeitslohn und dessen Verhältnis zum Zinsfuss und zur Landrente, Part 1 (Partial translation into English by Carla M. Wartenberg in 1966 as Isolated State. New York: Pergamon Press.) For more information, see Scott Crosier's Johann-Heinrich von Thünen: Balancing Land-Use Allocation with Transport Cost Archived २००९-०३-०२ at the Wayback Machine.
  2. H. M. Saxena (2013). Economic Geography. Rawat Publications. आइएसबीएन 978-81-316-0556-1.
  3. https://www.britannica.com/topic/location-theory