जनपदीय साहित्य/संस्कार गीत

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संस्कार गीत व्यक्ति के विभिन्न संस्कारों के अवसर पर गाए जाने वाले गीत हैं।

विवाह गीत[सम्पादन]

विवाह, जिसे शादी भी कहा जाता है, दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है जो उन लोगों के बीच, साथ ही उनके और किसी भी परिणामी जैविक या दत्तक बच्चों तथा समधियों के बीच अधिकारों और दायित्वों को स्थापित करता है। विवाह को और यादगार बनाने के लिए हम हर स्तर पर गीत का प्रयोग करते हैं जिसे विवाह गीत कहते हैं। जैसे-जैसे लोगों की एक स्थान से दूसरे स्थान तक संस्कृति,पहनावा और बोली बदलती है उसी प्रकार विवाह गीत में भी मुख्य रूप से परिवर्तन दिखाई देता है लेकिन फिर भी कुछ विवाह गीत लगभग समान होते हैं। जैसे कन्यादान,सिंगारदान इत्यादि । अभी हम कुछ विवाह गीत के बारे में पढ़ेंगे।
रोका रस्म

विवाह की सहमति होने पर एक सूक्ष्म सी रस्म की जाती है और ये विवाह की सबसे पहली होने वाली रस्म है रोका सैरेमनी कहलाती है।[१]

लगन या सिक्का

वर-वधू के विवाह संस्कार से पहले लग्न पत्रिका लिखने की अनूठी परंपरा निभाई जाती है। शहर हो या गांव, यहां बसने वाले हिंदू समाज के करीब हर जाति के लोगों में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। 


 दादा कै चार हवेली, चारूँ तो जगमग हो रही
पहली हवेली मैं ए लाडो जन्म लिया था, दूजी मै हवन कराइयो
तीजी हवेली लाडो लगन लिख्या था, चैथी मे वेदी रचाइयो
मेरे ताऊ कै चार हवेली चारूँ तो जगमग हो रही[२]

बाण रस्म

शादी के दिन दुल्हन के अपने लुक की तैयारी तेल-बान की रस्म से शुरू करती है। यह शुद्ध पारंपरिक तरीका है दुल्हन की सुंदरता लाने का। दुल्हन के तत्काल परिवार की सभी महिलाएँ और दुल्हन की सहेलियाँ दुल्हन को हल्दी उबटन लगाती हैं और पारंपरिक गीत गाती हैं।

सात सुहागन मिलकर सजनी
बन्नी को बान चढ़ाओ री सखी मंगल गाओ ।।
दूध-दही में उबटन घोलो
बन्नी के अंग लगाओ री सखी ।। मंगल गाओ
हरी-हरी दूब, लिये हरियाली
बन्नी को तेल चढ़ाओ री सखी ।। मंगल गाओ
हरी-हरी चूड़ी मेंहदी रोली
लाड़ो को खूब सजाओ री सखी ।। मंगल गाओ[३]

हल्दी रस्म

दूल्हा-दुल्हन की शादी की शुरुआत हल्दी के कार्यक्रम से होती है। हल्दी और उबटन जैसे कार्यक्रम के लिए सुहागन स्त्रियों को बुलाया जाता है। 

हल्दी लगाओ रे,
 तेल चढ़ाओ रे,
 बन्नी का गोरा बदन दमकाओ रे हल्दी लगाओ बन्नी हमारी चंदा का टुकड़ा
फूलों जैसे है बन्नी का मुखड़ा
मुखड़ा सजाओ रे, कंचन बनाओ रे
बन्नी का गोरा बदन दमकाओ रे
हल्दी लगाओ ...

बन्नी की बहियाँ फूलों की डारी
नाज़ुक नाज़ुक बन्नी हमारी-२
केसरिया हल्दी का उबटन लगाओ रे-२
बन्नी का गोरा बदन दमकाओ रे
हल्दी लगाओ ...[४]

महंदी रस्म

सभी स्त्रियां कन्या को मेहंदी लगाती हैं, माना जाता है कि मेंहदी जितनी गहरी होती है, भविष्य में वैवाहिक जीवन उतना ही अच्छा होता है। एक और मान्यता यह है कि शादी के दौरान कई तरह का तनाव होता है, उस दौरान मेहंदी मानसिक शांति देती है।

मेहँदा बोवन मैं गई कोई छोटे देवर के साथ,
मैं बोये बीघे डेढ़ सौ देवर ने बीघे चार,
मेहँदा रंगे भरा जी राज
मेहँदा सिचन में गई कोई छोटे देवर के साथ
मैं सींचे बीघे डेढ़ सौ देवर ने बीघे चार,
मेहँदा रंगे भरा जी राज
मेहँदा काटन मैं गई कोई छोटे देवर के साथ
मैं काटे बीघे डेढ़ सौ देवर न बीघे चार,[५]

कन्यादान

कन्‍यादान का अर्थ होता है कन्‍या का दान। अर्थात पिता अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथ में सौंपता है। इसके बाद से कन्‍या की सारी जिम्‍मेदारियां वर को निभानी होती हैं। यह एक भावुक संस्‍कार है, जिसमें एक बेटी अपने रूप में अपने पिता के त्‍याग को महसूस करती है।

पहलो फेरो लाड़ी, दादा, ताऊजी री प्यारी।
दूजो तो फेरो लाड़ी, पापा, चाचीजी री प्यारी।
तीसरा तो फेरो लाड़ी, भैया, मामाजी री प्यारी।
चौथा तो फेरो लाड़ी, जीजा, फूफाजी री प्यारी।
पांचवो तो फेरा लाड़ी, नानाजी री प्यारी।
छठवें तो फेरा बन्नी, बन्ना री प्यारी।
सातवों तो फेरा, बन्नी हुई है पराई।[६]

घुड़चढ़ी

महिलाओं का मन चंचल होता है। घड़चढ़ी की रस्म यह दर्शाती है कि दूल्हा अपनी पत्नी की चंचलता के साथ सामंजस्य बिठाकर अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारियां निभाने योग्य है। दूल्हा घर से निकलने के बाद घोड़ी पर बैठता है।

घोड़ी आई रे, बाजार में बना, बाबा देख-देख जाए
घोड़ी के गल घुँघरू बना, ताऊ देख-देख जाए
घोड़ी के गल घुँघरू बना
ताई तेरी चायली बना, दादी तेरी चायली बना
मोती बार-बार जाए घोड़ी के गल घुघ्ँारू बना
हीरे बार-बार जाए घोड़ी के गल घुँघरू बना[७]

जयमाला

जयमाला में दूल्हा व दुल्हन एक दूसरे को माला पहनाते हैं। मान्यता है कि दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे को माला पहनाकर आपसी स्वीकृति प्रदान करते हैं। विवाह के दिन जब वर बारात लेकर कन्या के घर जाता है तो उस दिन वरमाला की रस्म निभाई जाती है। वरमाला को जयमाला भी कहा जाता है।

फेरे

विवाह संस्कार में दूल्हा व दुल्हन का गठबंधन कर अग्नि के सामने सात फेरों के सात वचन लिए जाते हैं।इसके बाद विवाह संस्कार का कार्यक्रम पूरा होता है।

पसेरे ठठे आये री पसेरे,
हमने बुलाये गोरे-2 काले-2 आये री पसेरे
पसेरे ठठे आये री पसेरे,
हम बुलाये लाम्बे-2, ओछे-2 आये री पसेरे,
पसेरे ठठे आये री पसेरे,
हमने बुलाए पैण्टां वाले, धोती वाले आये री पसेरे
हमने बुलाए पेन्ठे वाले, गंजे-2 आये री पसेरे
पसेरे ठठे आये री पसेरे।[८]््््््््््््््््््््््््््््

विदाई

विदाई एक बेहद संवेदनशील क्षण है। शायद मिलन के क्षण से भी ज्यादा। कि एक बेटी शादी के बाद अपनी नई जिंदगी में कदम रखने के लिए बाबुल के घर से विदा हो रही है। यह क्षण बेटी के लिए और उसके परिवार के लिए खासतौर से उसके पिता के लिए बेहद भावुक होता है।

गूँज उठी शहनाईयाँ कितने दिनों के बाद।
हुई पराई लाड़ली बस रह गई है याद।।
जाओ मेरी लाड़ली सज सोलह श्रृंगार।
बेटी को कहे बाप लिए नैन अश्रु धार।।

सासू की करना सेवा ,प्रियतम का रखना ध्यान।
घर के सभी बड़ों का करना सदा सम्मान।।
नणदल है सखी तेरी सुख दुख में दिनों रात ।
देवर से हँस के रहना कह देना दिल की बात।।
पिता समान ससुर का तू पाती रहना प्यार।
बेटी को कहे बाप…………………[९]

लेखक परिचय

नाम :- वरुण यादव

रोल नंबर :- 18/३२५

महाविद्यालय :-पी. जी. डी. ए. वी (संध्या ) दिल्ली विश्वविद्यालय

  1. https://shadikiwebsite.com/wedding-rituals/what-is-roka-ceremony/
  2. http://www.geetmanjari.com/lagan-songs.html
  3. http://www.geetmanjari.com/baan-ke-geet.html
  4. https://www.shaadisangeet.net/2016/11/haldi-ke-geet.html?m=1
  5. http://www.geetmanjari.com/mehndi-songs-hindi.html
  6. http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AB%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4_/_1_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80
  7. http://www.geetmanjari.com/ghodi-ke- geet.html
  8. http://www.geetmanjari.com/feron-ke-geet.html
  9. https://hindi.sahityapedia.com/%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A5%80-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%88-%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4-72600