भारतीय अर्थव्यवस्था/धारणीय विकास और पर्यावरण

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स्थिर धारणीयता

धारणीय विकास की अवधारणा पर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन में बल दिया गया जिसने इसे इस प्रकार परिभाषित किया 'ऐसा विकास जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं की पूर्ति क्षमता का समझौता किए बिना पूरा करें।'[१]

इस सम्मेलन की रिपोर्ट आवर कॉमन फ्यूचर जिसने उपर्युक्त परिभाषा दी है,धारणीय विकास की व्याख्या "सभी की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति और एक अच्छे जीवन की आकांक्षाओं की संतुष्टि के लिए सभी को अवसर प्रदान करने के रूप में की है।"

धारणीय विकास का लक्ष्य गरीबों की समग्र दरिद्रता को कम करके उन्हें चिरस्थाई सुरक्षित जीविका निर्वाह साधन प्रदान करना है जिससे संसाधन अपक्षय,पर्यावरण अपक्षय,सांस्कृतिक विघटन और सामाजिक अस्थिरता न्यूनतम हो।

तात्पर्य यह है कि धारणीय विकास का अर्थ उस विकास से है जो सभी की विशेष रूप से बहुसंख्यक निर्धनों की बुनियादी आवश्यकताओं जैसे रोजगार भोजन ऊर्जा जल आवास आदि की पूर्ति करें और इनर वक्ताओं की पूर्ति हेतु कृषि विनिर्माण बिजली और सेवाओं की वृद्धि सुनिश्चित करें।[२]

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. भरतीय अर्थव्यवस्था का विकास,NCERT,पेज-178
  2. भरतीय अर्थव्यवस्था का विकास,NCERT,पेज-176-177