भारतीय साहित्य/मराठी साहित्य

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भारतीय साहित्य
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: भारतीय आर्यभाषा के मध्ययुग में जो अनेक प्रादेशिक भाषाएँ विकसित हुई उनका सामान्य नाम प्राकृत है और उन भाषाओं

महाराष्ट्री अपभ्रंश प्रसूत मराठी महाराष्ट्र की बोलचाल की प्रमुख भाषा है तथा भारतीय संविधान के अनुसार यह महाराष्ट्र राज्य की राजभाषा भी स्वीकृत की गई है। इसके बोलने वालों की संख्या 49,452,922 (8.0296) है जो कि समस्त भारतीय भाषाओं में जनसंख्या की दृष्टि से चौथे स्थान पर आती है। इसकी लगभग 65 बोलियाँ हैं। इसकी प्रमुख बोलियाँ हलबी, कोंकणी, कमारी, कटिया कटकरी, कोष्टी, मराठी, क्षत्रिय मराठी, परखारी तथा वर्ती है मराठी भाषा की लिपि देवनागरी है। साहित्यिक दृष्टि से मराठी अतिसम्पन्न है।

में यह लगभग एक लाख वर्गमील में उत्तर में सतपुड़ा पहाड़ियों से लेकर, दक्षिण कृष्णा नदी तक तथा पूर्व में नागपुर से लेकर पश्चिम में गोवा तक बोली जाती है। डॉ. गुणे, जूल, ब्लाक आदि अनेक विद्वान् मराठी का सम्बन्ध महाराष्ट्री प्राकृत और महाराष्ट्री अपभ्रंश से मानते हैं। डॉ. घोष आदि ने उसे शौरसेनी के बाद की माना है। 979 ई. से 1270 ई. तक के छह उत्कीर्ण लेख मैसूर स्वदेश और बंबई में मिले हैं। ध्वनि के स्तर पर भी मराठी ने अपनी अलग पहचान बनाते हुए अपनी भाषाग तवैशिष्ट्य को निर्मित किया है। मराठी साहित्य ने भारतीय भाषाओं को उच्च कोटि के कई साहित्यिक रचनाएं दी है। मराठी साहित्य के इतिहास में साहित्यिक काल विभाजन छह खंडों में विभक्त

है-

1. यादव काल (1189 ई. से 1320 ई. तक)

2. बहमनी काल (1320 से 1600) 3. मराठा काल (1600 से 1700)

4. पेशवा काल (1700 से 1850)

5. ब्रिटिश काल (1850 से 1947)

6. आधुनिक काल (1947 से आज तक)

भक्ति आंदोलन की मुख्य धारा में भी मराठी साहित्य और मराठा भक्त कवियों का भारी योगदान रहा है तो आधुनिक काल में भी स्वतंत्रता आंदोलन और समाज सुधार के दौर में इन कवियों ने सामाजिक और राष्ट्रीय जागृति के स्वर को मुखरित करने का स्तुत्य कार्य किया। साहित्यिक सरोकार को राष्ट्रीय-सामाजिक-सांस्कृतिक- मानवीय सरोकार में रूपान्तरित करने का बीड़ा आधुनिक मराठी साहित्य ने उठाया। मराठी साहित्य के अग्रणी रचनाकारों में एकनाथ, तुकाराम, मुक्तेश्वर, विष्णु सखाराम खांडेकर, केलकर, विभावरी शिरूरकर, शिवाजी सावंत और विजय तेंदुलकर आदि का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। विजय तेंदुलकर ने तो आधुनिक नाटक और रंगमंच को लेकर मराठी भाषा में कई अभिनव प्रयोग किए हैं। मराठी नाटक और रंगमंच पर उनकी गहरी छाप है। हिन्दी भाषा और साहित्य के विपरीत मराठी साहित्य में गद्य मध्यकाल से ही मिलने लगते हैं। चूंकि गद्य विचार और चिंतन की भाषा होती है इसीलिए हम यह कह सकते हैं कि मराठी साहित्य ने अपने आरिम्भक दौर से ही विचार और चिंतन के दामन को पकड़ कर आगे बढ़ी है।

मराठी के आदि कवि मुकुन्दराय (1128-1198) हैं जिनका प्रधान ग्रन्य 'विवेकसिंधु' है। भक्ति की प्रवृत्ति के आधार पर मराठी साहित्य को प्रमुखतः महानुभव काल, ज्ञानेश्वर नामदेव काल, एकनाथ काल तुकराम-रामदाल काल, मोरोपंत काल, प्रभाकरराम जोशी काल तथा आधुनिक काल, प्रमुखतः इन कालों में बाँटा गया है।

महानुभाव पंथ के प्रथम कवि चक्रधर (1274 ईसवी) अहिंसा में परम विश्वात करने वाले थे, और वैदिक यज्ञबलि के विरुद्ध थे। संस्कृत काव्य-परंपराएं तोड़कर इस पंथ के कवियों ने 1881 और 1333 में 'ऋद्धिपुर वर्णन', 'सह्याद्रि वर्णन जैसे काव्य रचे। यह पंथ गुप्तलिपि में खो गया

संन्यासी पुत्र ज्ञानेश्वर (1275-99 ) वारकरी संप्रदाय के आदिपुरुष थे। उनका ग्रन्थ 'ज्ञानेश्वरी' (जो गीता की छन्दोबद्ध टीका है) और 'अमृतानुभव' दर्शन के अपार सरोवर हैं, और श्रेष्ठ काव्य भी । ज्ञानेश्वर का अंतिम 'पसायदान' विश्वात्मक मानवतावाद का श्रेष्ठ उदघोष है। नामदेव ( 1270-1850) शिंपी जाति के थे, पर उनकी वाणी हिंदी में और पंजाबी 'ग्रंथसाहब' में भी मिलती है। उन्होंने अभंग और पद, विविध रागों में लिखे 'संत ज्ञानेश्वर' की 'ज्ञानेश्वरी' मराठी के प्राचीन साहित्य का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है।

उनकी 'अनुभवामृत' कृति भी जन भाषा की कमनीयता, वैचारिकता की सघनता एवं कल्पना की उदात्तता के कारण मराठी काव्य की अब भी अप्रतिम रचना है। नामदेव ज्ञानेश्वर के कनिष्ठ समसामयिक संत थे जो एक प्रकार से वारकरी संप्रदाय के प्रतिष्ठापक भी थे जिसमें रूढ़ि विद्रोह एवं संत बोध की वह धारा गतिशील हुई जिसकी प्रतिष्ठा हिंदी में कबीर के द्वारा हुई। एकनाथ समाज सुधारक कवि थे जिनका काल था 1582- 99। उन्होंने रामायण और भागवत की भाषा टीकाएँ लिखी। एकनाथ ने ही कबीर की उलटवासियों की तरह संध्या भाषा का प्रयोग किया और नाट्यात्मक एकालापों द्वारा रहस्यवाद को जनसुलभ बनाया 1551 के 'दासोपंत' के एक लाख ओवियों की परमार्थपरक कविता लिखी।

ज्ञानदेव, नामदेव, ज्ञानेश्वर, एकनाथ, मुक्तेश्वर, तुकाराम, रामदास मराठी के प्रसिद्ध संत कवि हैं।

पश्चिम में मराठी साहित्य में नवजागरण का उदय अन्य क्षेत्र से पहले हुआ। बम्बई प्रेसीडेंसी कॉलेज के अधिकारी एलफिंसटन और मालकम की उदार शिक्षा नीति, ईसाई धर्म प्रचार, बालशास्त्री जमेकर तथा कृष्ण शास्त्री, चिपलूणकर द्वारा पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन, केशरी के प्रकाशन तथा तिलक, रानाडे और गोखले जैसे प्रबुद्ध विचारकों के चिन्तन के परिणामस्वरूप उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्ध में ही आधुनिक मराठी साहित्य का सूत्रपात हो गया था। उन्नीसवीं शताब्दी का मध्य अनुवाद और प्रेरणाकाल है। इस काल में कालिदास, भवभूति, शुद्रक आदि का मराठी में अनुवाद किया गया। ड्राइडन, मिल्टन, स्कॉट, पोप, ग्रे, वर्डस्वर्थ आदि ने भी भाव-भंगिमा के स्तर पर मराठी साहित्य को प्रभावित किया। महाजनि कीर्तिकर, कुते आदि कवियों ने राष्ट्रवादी चेतना का काव्य लिखा। इनके काव्य में विचार गांभीर्य, वैयक्तिक तत्त्व और उपन्यास श्चीमन अभिव्यक्ति की सरलता मिलती है। अन्य कवियों में केशवसुत (तुतारी), गोविंदाग्रज हिमायत की है और क्रान्तिकारी वीर सावरकर (के पवाड़े) राष्ट्रीय जनजागरण के माध्यम बने। रोमानी कविताओं का प्रारम्भ तो ‘केशवसुत' की कविताओं से माना जाता है, परन्तु बालकवि आदि ने इस। स्वर को अधिक स्पष्ट किया। बालकवि के प्राकृतिक चित्रण में देखने लगा था। अद्वितीय मृदुता है। उनमें पुष्पकलिकाओं, नर्तन करती हुई सरिताओं, गुंजन करती ने मलयालम भ्रमरियों आदि का चित्रण पाठक को मोह लेता है। शरद, मुक्तिबोध और करंदीकर साम्यवादी भावधारा के कवि हैं जिन्होंने निष्ठा के साथ इस विचारधारा को स्वीकार और अभिव्यक्त किया है। नव काव्य, प्रयोगवाद और अति यथार्थवाद के प्रमुख स्वर बनकर उभरे बा. सी. मर्ढेकर। इनकी कविताएँ मानवी व्यक्तित्व के विघटन को व्यक्त करती हैं। इस धारा के अन्य साहित्यकारों में पेंडसे, पाधे, रेगे आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।