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भौगोलिक चिंतन/यूनानी भूगोलवेत्ता

विकिपुस्तक से
भौगोलिक चिंतन
रोमन भूगोलवेत्ता

होमर

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होमर कोई भूगोलवेत्ता नहीं बल्कि प्राचीन यूनान के एक कवि थे जिन्होंने ईलियड (Illiad) एवं ओडिसी (Odyssey) नामक दो महाकाव्य रचे। इन महाकाव्यों में ट्रोजन युद्ध (1280 एवं 1180 ईपू) का वर्णन है जिसमें उस समय के ज्ञात संसार की ऐतिहासिक भूगोल से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी भी उपलब्ध है। होमर के अनुसार आकाश एक ठोस नतोदर धरातल वाला है (अर्थात, उलटे कटोरे जैसा) और उसका विस्तार पृथ्वी के बराबर है तथा वह लंबे-लंबे खंभों पर टिका हुआ है।

होमर ने चार दिशाओं से आने वाली पवनों का भी वर्णन किया हैः

  • बोरस (Bores) उत्तर से आने वाली तेज व ठंडी पवन, जिसमें आकाश स्वच्छ रहता है
  • नोटस (Notus) दक्षिणी पवन
  • यूरस (Eurus) गर्म और मंद पूर्वी पवन, और
  • जेफाइरस (Zephyrus) पश्चिम से आनेवाली डरावनी, सुगंधित एवं शक्तिशाली पवन।

इसके अलावा होमर की कविताओं में प्लीडेज, ओरायन (व्याध), हायड्रा, बूटस तथा ग्रेट बियर (सप्तर्षि) जैसे नक्षत्रसमूहों (कांस्टेलेशंस) का भी ज़िक्र आता है, जो खगोलीय ज्ञान का परिचय देता है।

होमर के काव्यों में भूमध्यसागर, काला सागर और मारमरा सागर के बारे में पर्याप्त विवरण मिलते हैं लेकिन एशिया, अफ्रीका तथा यूरोप के बारे में विवरणों का अभाव है।

थेल्स

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थेल्स (Thealse) आयोनिया के मिलेटस नगर के निवासी और मूलतः व्यापारी थे जिनका काल 7वीं-6वीं सदी ईपू बताया जाता है। इनका संबंध दर्शन के "आयोनियन स्कूल" से था। शायद पहली बार इन्होने चीजों को देखकर सामान्यीकरण (जेनरलाइजेशन) करके समस्याओं की व्याख्या का प्रयास किया।

थेल्स ने अपनी मिस्र की यात्रा के बाद कई ज्यामितीय प्रमेय दिए। लोडस्टोन नामक पत्थर में चुंबकीय गुण होने की बात लिखी और इन्होने ब्रह्मांड की जो कल्पना की उसमें पृथिवी को समुद्र के पानी पर तैरती हुई तश्तरी (डिस्क) के जैसा माना था।

थेल्स ने मिस्र में नील नदी के डेल्टा का अध्ययन किया तथा बताया कि नील नदी दो नदियों – बाहेल गजल (सफ़ेद नील) तथा बाहेल अजरक (नीली नील) से मिलकर बना हुआ बताया।

एनेक्जीमैंडर

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ऐनेक्सीमैंडर (Anaximander) भी मिलेटस वासी थे और थेल्स के समकालीन किंतु उनसे उम्र में छोटे थे। इन्होने बेबीलोनियाई उपकरण नोमोन को यूनानी दुनिया को परिचित कराया। नोमोन एक तरह का स्तंभ होता था जो सौरघड़ी (सनडायल) की तरह काम करता था; इस खंभे की परछाई ठीक दोपहर में सबसे छोटी और उत्तर-दक्षिण की ओर होती थी। इसके सहारे उत्तर-दक्षिण रेखा का (और इन दिशाओं का सटीक) निर्धारण किया जा सकता था। (इन्ही उत्तर-दक्षिण रेखाओं के मेरिडी नाम से वर्तमान मेरिडियन्स, अर्थात मध्याह्न रेखाओं, का नाम पड़ा है)

एनेक्जीमैंडर को, बाद के यूनानी विद्वानों द्वारा, प्रथम व्यक्ति माना जाता है जिन्होंने विश्व का मानचित्र मापक के अनुसार बनाने का प्रयास किया। उन्होंने एक मानचित्र बनाया था जिसमें ग्रीस को केंद्र में रखा था तथा बाकी यूरोप और एशिया के तत्कालीन ज्ञात स्थान दर्शाए गए थे। इसमें तत्कालीन विश्व (पृथिवी) को चारों ओर से सागर से घिरा हुआ दिखाया गया था।

थेल्स और एनेक्जीमैंडर को, एक साथ, गणितीय भूगोल का संस्थापक माना जाता है।

हिकेटियस

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हिकेटियस (Hecataeus) भी थेल्स और एनेक्जीमैंडर की मिलेटस वासी थे; इनके जन्म का समय थेल्स और एनेक्जीमैंडर के निधन के आसपास बताया जाता है। जिस तरह थेल्स और एनेक्जीमैंडर ने भूगोल में गणितीय परंपरा की शुरूआत की वैसे ही साहित्यिक गद्य में सुविस्तृत वर्णन की परंपरा का आरंभ करने का श्रेय हिकैटियस को दिया जाता है।

इन्होने उस भूगोलीय ज्ञान का वर्गीकरण और व्यवस्थित विवरण लिखा जो उस समय मिलेटस में केवल ग्रीक दुनिया ही नहीं बल्कि बाहरी जगहों से भी आ रहा था। हिकेटियस ने पुस्तक जस पीरियड्स (Ges-periods; अर्थात् पृथ्वी का वर्णन[नोट १]) लिखा जो संभवतः छठवीं में प्रकाशित हुई। यह केवल पीरियड्स के नाम से भी प्रसिद्ध है और संभवतः विश्व का प्रथम क्रमबद्ध वर्णन है जिसके कारण हिकेटियस को "भूगोल का पिता" (Father of Geography) भी कहा जाता है।[]

पीरियड्स पुस्तक दो खंडों में है: एक यूरोप के बारे में और दूसरी में एशिया और लीबिया (उस समय का ज्ञात अफ्रीका) का वर्णन है। भूमध्यसागर के द्वीपों और जलसंधियों का विस्तार से वर्णन मिलता है। एशिया में विशेष रूप से ईरान तथा भारत के बारे में जानकारी शामिल है, जिसमें यहाँ की जनजातियों तथा नदियों का विवरण है। इन्होने सिंधु तथा दजला-फ़रात नदियों को एशिया की प्रमुख नदियाँ बताया। इनके अनुसार पृथिवी सपाट एवं वृत्ताकार (प्लेन एंड सर्कुलर) है। हिकैटियस ने एनेक्जीमैंडर के मानचित्र में सुधार किया।

हेरोडोटस

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हेरोडोटस (Herodotus) इतिहासकार थे और इन्हें इतिहास का पिता (Father of History) कहा जाता है, जो उपाधि इन्हें सिसरो ने दी थी।

हेरोडोटस का जन्म हेलीकारनेसस (Halicarnessus) में 5वीं सदी ईपू में हुआ था लेकिन मुख्यतः वह हेलेनिक संस्कृति के केंद्र एथेंस नगर में रहे। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक हिस्ट्री या हिस्टोरियाइ (Historiae) है। इसमें इन्होने यूनानी-पार्शियाई युद्धों (ग्रीको-पर्शियन वार्स) का विवरण प्रस्तुत किया। इसी पुस्तक में इनके भौगोलिक विवरण भी शामिल हैं।

स्वयं हेरोडोटस ने पश्चिम में इटली की यात्रा की और पूर्व में मारमरा तथा बॉसपोरस जलसंधियों से होकर युग्जाइन सागर (काला सागर) पार करते हुए रूसी स्टेप प्रदेश तक पहुँचे। पूर्व की ओर वह परशियन साम्राज्य में पहुँचे और दक्षिण की ओर उन्होंने मिस्र की यात्रायें कई बार कीं। हेरोडोटस प्रथम भूगोलवेत्ता थे जिन्होंने कैस्पियन सागर को आतंरिक सागर माना; इनसे पहले एनेक्जीमैंडर और हिकेटियस ने इसे बाहरी विशाल समुद्र से जुड़ा हुआ माना था।

हेरोडोटस ने नील की घाटी और विशेषकर उसके डेल्टा के निर्माण का विवरण करते हुए लिखा कि इसका निर्माण इथिओपिया से नदी द्वारा लाई गई गाद और मृतिका से हुआ। इन्होने ही इसके लिए सर्वप्रथम ‘डेल्टा’ शब्द प्रस्तावित किया। इन्होने ईश्तर नदी (डेन्यूब) को विश्व की सबसे बड़ी नदी माना।

हेरोडोटस के नाम पर अरब भूगोलवेत्ता अल-मसूदी को अरब का हेरोडोटस कहा जाता है।

प्लेटो

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प्लेटो प्राचीन यूनान के महान दार्शनिक थे। वे निगमनात्मक तर्कपद्धति (डिडक्टिव रीज़निंग) के प्रणेता थे और उनका मानना था कि पार्थिव चीजें एक आदर्श प्रत्यय जगत (आइडियाज) की खराब नकल (कॉपी) मात्र हैं।

प्लेटो ने प्राचीन यूनानी शहर एटिका की उर्वर मृदा के क्षरण का विवरण प्रस्तुत किया और व्याख्या की कि किस तरह चीज़ें अपने आदर्श रूप से विकृत हो जाती हैं। प्लेटो ने अटलांटिस की कथा के बारे में बताया कि प्राचीन यूनानी सभ्यता पर किसी पश्चिमी अधिक विकसित सभ्यता द्वारा आक्रमण किया गया था, यूनानी सेना की विजय हुई और और इसके ठीक बाद हीआक्रमणकारियों का मूलस्थान एक भयावह भूकंप में समुद्र में डूब गया।

प्लेटो संभवतः पहले यूनानी दार्शनिक थे जिन्होंने यह घोषित किया कि पृथिवी एक गोलाभीय पिंड है और ब्रह्मांड के केंद्र में स्थित है। हालाँकि, यह अनुमान लगाया जाता है कि छठवीं सदी ई.पू. में पाइथागोरस सबसे पहले ऐसे दार्शनिक थे जो इस मत के समर्थक रहे होंगे क्योंकि उन्होंने आकाशीय पिंडों की वृत्ताकार गति के कुछ नियम विकसित किये थेऔर उनके शिष्य पर्मेनाइडीज ने भी इन नियमों का प्रयोग गोल पृथिवी से किये जाने वाले प्रेक्षणों के संदर्भ में किया।

अरस्तू

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अरस्तू प्लेटो के शिष्य थे लेकिन उनकी तर्कपद्धति आगमनात्मक थी, अर्थात विशिष्ट चीजों के प्रेक्षण से सामान्य निष्कर्ष तक पहुँचने की पद्धति थी। प्लेटो के विपरीत अरस्तू का मानना था कि चीजों में होने वाला भौतिक बदलाव इसलिये हो रहा है कि वे अपने आदर्श स्वरूप को प्राप्त करने की ओर अग्रसर हैं। अतः अरस्तू संभवतः पहले ऐसे दार्शनिक भी हैं जिन्हें सोद्देश्य्वादी (टेलियोलॉजिस्ट) माना जा सकता है।

अरस्तू पहले ऐसे दार्शनिक थे जिन्होंने पृथिवी के गोल होने के लिये प्रमाण खोजने का प्रयास किया। अरस्तू ने सबसे पहले यह तर्क दिया कि चंद्रग्रहण के समय चंद्रमा पर पड़ने वाली पृथिवी की छाया का किनारा गोलाई लिये होता है अतः पृथिवी को भी गोल होना चाहिये। इसके अलावा उत्तर की ओर यात्रा करने पर तारों की क्षितिज से ऊँचाई बढ़ती जाती है जो तभी संभव है जब पृथिवी की सतह वक्राकार हो।

अरस्तू ने मेटेरियोलॉजिका नामक पुस्तक लिखी। अरस्तू ने अक्षांश के साथ गर्मी के संबंध का विवरण दिया और वे मानते थे कि पृथिवी विषुवत रेखीय क्षेत्रों में इतनी अधिक गर्म होगी कि वह स्थान रहने लायक नहीं होंगे। उन्होंने इसे टॉरिड ज़ोन बताया। इसी प्रकार उत्तर में शीत के कारण इसे न रहने योग्य बताया (फ्रिजिड ज़ोन) और माना कि आवासयोग्य जगत पृथिवी के समशीतोष्ण इलाके ही हैं। इस प्रकार उन्होंने तापीय कटिबंधों में पृथिवी को बाँटा। अरस्तू का अनुमान था कि विषुवत रेखा के दक्षिण में भी एक समशीतोष्ण कटिबंध होना चाहिये।

थियोफ्रैस्टस अरस्तू के शिष्य थे। इन्हें "वनस्पति विज्ञान का जनक" माना जाता है। इन्होंने जलवायु और मिट्टी का वनस्पतियों पर प्रभाव का विवरण प्रस्तुत किया।

इरेटोस्थनीज

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इरेटोस्थेनीज के अनुसार विश्व

इरेटोस्थनीज (Eratosthenes) का जन्म यूनानी बस्ती सिरिन में 276 ईपू में हुआ था। एथेंस में शिक्षा पूरी करने के बाद इन्हें मिस्र के शासक टालमी यूरेट्स ने सिकंदरिया (अलेक्जेंड्रिया) के पुस्तकालय का अध्यक्ष नियुक्त किया। उस काल में यह पद शिक्षा जगत का सर्वोच्च पद माना जाता था। इन्होने पहली बार ज्याग्रफी शब्द का प्रयोग किया और अपनी पुस्तक का नाम ज्याग्रफिया रखा। इरेटोस्थनीज के अनुसार पृथ्वी की आकृति गोलाभ (स्फीयर) है तथा वह ब्रह्माण्ड के मध्य में स्थित है जिसके चारों ओर खगोलीय पिंड चौबीस घंटे में चक्कर लगाते हैं।

इन्होने नोमोन की सहायता से विषुवत रेखा की काफी हद तक सही लंबाई ज्ञात की (अर्थात पृथिवी की परिधि या इसके आकार को मापा)। महत्वपूर्ण यह है कि यह गणना अनुमान आधारित नहीं थी बल्कि इसका आधार ज्यामिति आधारित वैज्ञानिक विधि थी। इसके अलावा इन्होने पृथिवी से सूर्य और चन्द्रमा की दूरी भी निश्चित करने का प्रयासकिया था जिसका परिणाम यथार्थ के निकट है। इन्होंने विभिन्न अंक्षाशों और देशान्तरों को निश्चित करने का प्रयास किया।

उपरोक्त योगदानों के कारण इन्हें सिस्टमेटिक भूगोल का पिता अथवा वैज्ञानिक भूगोल का पिता या कई बार भूगोल का पिता भी कहा जाता है।[नोट २] अक्षांस-देशांतरों के मापन के कारण इन्हें भूगणित (जियोडेसी, geodacy) का पिता भी कहा जाता है।

इरेटोस्थनीज द्वारा लिखी गई पुस्तक में एक्युमेन (ecumane) अर्थात वासयोग्य (रहने लायक) विश्व का वर्णन प्रस्तुत किया। इनके द्वारा ज्ञात विश्व को एशिया, यूरोप और लीबिया (अफ्रीका) में विभाजित किया; इसके अलावा गर्मी के आधार पर पृथिवी को पांच कटिबंधों में बाँटा - एक उष्ण कटिबन्ध, दो शीतोष्ण कटिबंध तथा दो शीत कटिबंध।

हिपार्कस

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हिपार्कस (Hiparchus) को सिकंदरिया के पुस्तकालय के अध्यक्ष पद पर इरेटोस्थनीज के निधन के बाद नियुक्त हुये। ये मूलतः एक खगोशास्त्री और गणितज्ञ थे। इन्होंने एक वृत्त को 360 अंशों में विभाजित किया जो असीरियाई गणित से प्रभावित था लेकिन यूनानी ज्ञान में पहली बार था। इन्हें खगोलशास्त्र का पिता कहा जाता है[] (निकोलस कोपरनिकस को आधुनिक खगोलिकी का पिता कहते हैं; कुछ लोग गैलीलियो गैलिली को को भी खगोलिकी का पिता कहते हैं)। त्रिकोंमितिक सारणियों की गणना सर्वप्रथम इन्होने ही की थी जिसके कारण इन्हें त्रिकोणमिति का पिता भी कहा जाता है।

इन्होने पृथिवी को अंक्षाशों के आधार पर क्लाइमैटा (अक्षांश-आधारित जलवायु पेटियों, अथवा दिन की सबसे अधिक लंबाई वाला अक्षांस, अथवा आज की भाषा में कर्क रेखा एवं मकर के अक्षांश का मापन) में विभाजित किया। इन्होने इसका मान 23°40′ बताया जो काफी सटीक है।

पृथिवी की वक्राकार सतह (3डी) को समतल सतह (2डी) पर प्रदर्शित करने की समस्या से जूझने वाले भी ये पहले विद्वान् थे। अर्थात मानचित्र प्रक्षेप कि संकल्पना के खोजकर्ता थे; इन्होंने लंबरेखीय (Orthographic) तथा त्रिविमीय (Stereographic) दो प्रकार के प्रक्षेपों का विवरण दिया।

कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य और योगदान

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पोसिडोनियस (150–130 BC) केविचारों अनुसार विश्व, यह रचना 1628 के कार्टोग्राफर Petrus Bertius और Melchior Tavernier की है जिन्होंने विश्व में महाद्वीपों कीस्थिति को पोसिडोनियस के विचारों अनुसार दर्शाया है।
  • पोलिबियस ने द हिस्ट्रीज़ नामक किताब लिखी। वे मुख्यतः इतिहासकार थे,हालाँकि, इनके विवरणों में इतिहास पर भूगोल के प्रभाव का विवरण मिलता है।
  • पोसिडोनियस ने दि ओशन[नोट ३] नामक पुस्तक की रचना की।
  • इन्हें "भौतिक भूगोल का पिता"कहा जाता है। इन्होने ज्वार-भाटे का महत्वपूर्ण अध्ययन किया और चंद्रमा की कलाओं से इसे जोड़ा।
  • पोसिडोनियस ने अलग-अलग जगहों की जलवायु का वहां के लोगों के चरित्र पर प्रभाव का वर्णन किया।[नोट ४]
  1. जेस पीरियड्स का अनुवाद "Journey round the Earth" अथवा "World survey" या "General survey" भी किया जाता है।
  2. मूलतः "भूगोल का पिता" अथवा "फादर ऑफ़ ज्याग्रफी" हिकेटियस को कहते हैं। (ऊपर देखें)
  3. अंग्रेजी में पूरा नाम "About the ocean and the adjacent areas"
  4. इसे "geography of the races" जैसा निरूपण भी माना जाता है

संदर्भ

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  1. Tozer, Henry Fanshawe (1897). A History of Ancient Geography (अंग्रेज़ी में). University Press. आइएसबीएन 978-0-7905-6843-0. पहुँच तिथि 4 अप्रैल 2022.श्रेणी_वार्ता:सीएस1 अंग्रेज़ी-भाषा स्रोत (en)
  2. Holden, Edward Singleton (1901). Stories of the Great Astronomers: Conversations with a Child (अंग्रेज़ी में). D. Appleton.श्रेणी_वार्ता:सीएस1 अंग्रेज़ी-भाषा स्रोत (en)
भौगोलिक चिंतन
रोमन भूगोलवेत्ता