सामान्य अध्ययन २०१९/आपदा प्रबंधन
जैमिनी(GEMINI)-आपदा संबंधी चेतावनी,आपातकालीन जानकारी और संचार तथा मछुआरों के लिये चेतावनी एवं मछली संभावित क्षेत्रों (Potential Fishing Zones- PFZ) की पहचान के लिये पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने 9 अक्तूबर, 2019 को गगन आधारित समुद्री संचालन और जानकारी- जैमिनी (Gagan Enabled Mariner’s Instrument for Navigation and Information- GEMINI) उपकरण लॉन्च किया।
- उद्देश्य:-
- मछुआरों की आजीविका बढ़ाने, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने और मछली पकड़ने की योजना बनाने में सहायता करना।
- आपातकालीन स्थितियों जैसे चक्रवात के समय सूचनाओं का प्रसार करना।
जैमिनी उपकरण, गगन उपग्रह से प्राप्त डाटा को ब्लू टूथ संचार द्वारा मोबाइल तक पहुँचाएगा क्योंकि तट से अधिक दूर जाने पर मछुआरों का मोबाइल नेटवर्क संपर्क टूट जाता है। भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र द्वारा विकसित मोबाइल एप्लीकेशन से इस सूचना को 9 क्षेत्रीय भाषाओं में प्रदर्शित किया जाएगा। जैमिनी उपकरण के संचालन के लिये गगन प्रणाली के तीन भू-समकालिक उपग्रहों (GSAT-8, GSAT-10 और GSAT-15) का प्रयोग किया जाएगा।
- इसका संचालन भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा किया जाएगा।
भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र(Indian National Centre for Ocean Information Services- INCOIS)पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय है। इसका मुख्य अधिदेश महासागर का अवलोकन कर इससे संबंधित जानकारियों को जनसामान्य के लिये सुलभ बनाना है।इसका मुख्यालय हैदराबाद में स्थित है।
- भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत एक सांविधिक निकाय है।
इसका गठन संसद के एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय हवाई अड्डा प्राधिकरण और अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा प्राधिकरण का विलय करके किया गया था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
राष्ट्रीय मानसून मिशन(National Monsoon Mission) की शुरुआत पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने मानसूनी वर्षा हेतु अत्याधुनिक भविष्यवाणी प्रणाली विकसित करने के लिये राष्ट्रीय मानसून मिशन की गई है। इस मिशन के निष्पादन और समन्वय की ज़िम्मेदारी भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) पुणे की है। यह राष्ट्रीय मिशन IITM, NCEP (USA) और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय जैसे संगठनों के आपसी समन्वय से क्रियान्वित किया जा रहा है। इस मिशन हेतु NCEP की जलवायु पूर्वानुमान प्रणाली (Climate Forecast System- CFS) को मूल मॉडलिंग प्रणाली के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। अमेरिकी मौसम पूर्वानुमान मॉडल को जलवायु पूर्वानुमान प्रणाली (Climate Forecast System- CFS) कहा जाता है। अमेरिकी मॉडल को नेशनल सेंटर फॉर एन्वायरनमेंटल प्रेडिक्शन (National Centres for Environmental Prediction- NCEP) एनओएए नेशनल वेदर सर्विस (NOAA National Weather Service) द्वारा विकसित किया गया है। अमेरिकी मॉडल विकसित करने वाले उपरोक्त दोनों संस्थान भारत में भी पूर्वानुमान प्रणाली विकसित करने में सहयोग कर रहे हैं।
अंतरिक्ष एवं प्रमुख आपदाओं पर अंतर्राष्ट्रीय चार्टर के लिये हस्ताक्षरकर्त्ता देश आपदा के समय एक-दूसरे से मानचित्रण और उपग्रह डेटा से संबंधित अनुरोध कर सकते हैं। यह चार्टर एक बहुपक्षीय व्यवस्था है जिसका उद्देश्य प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं से प्रभावित देशों के लिये उपग्रह आधारित डेटा साझा करना है। विभिन्न अंतरिक्ष एजेंसियाँ आपदा की स्थितियों में त्वरित प्रतिक्रिया के लिये संसाधनों और विशेषज्ञता को समन्वित करने की अनुमति देती है। इस समय इसमें 17 चार्टर हैं, जो अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपने द्वारा विकसित किये गए संसाधनों का प्रयोग करते हैं। इस समय यह विश्व के 125 देशों को अपनी सेवाएँ प्रदान कर रहा है।
- आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में तापमान बढ़कर 43 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुँच गया। चित्तूर ज़िले में आम तौर पर मई माह के पहले सप्ताह में सर्वाधिक गर्मी होती है लेकिन इस वर्ष अप्रैल माह से ही यहाँ तापमान बढ़ने लगा और प्रायः जो तापमान अप्रैल माह में 40 डिग्री सेल्सियस से कम होता था वह 42 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया। इस तरह से बढ़ते तापमान के कारण ग्रीष्म लहर (Heat Waves) एक बार फिर से चर्चा का विषय बनी हुई है।
क्या होती है ग्रीष्म लहर? ग्रीष्म लहर असामान्य रूप से उच्च तापमान की वह स्थिति है, जिसमें तापमान सामान्य से अधिक रहता है और यह मुख्यतः देश के उत्तर-पश्चिमी भागों को प्रभावित करता है। ग्रीष्म लहर मार्च-जून के बीच चलती है परंतु कभी-कभी जुलाई तक भी चला करती है। ऐसे चरम तापमान के परिणामतः बनने वाली वातावरणीय स्थितियाँ तथा अत्यधिक आर्द्रता के कारण लोगों पर पड़ने वाले शारीरिक दबाव बेहद दुष्प्रभावी होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप यह जानलेवा भी साबित हो सकती है। राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ग्रीष्म लहरों से सर्वाधिक प्रभावित राज्य हैं। ग्रीष्म लहर के कारण होने वाली क्षति कम करने के लिये ओडिशा मॉडल(Heat Wave Action Plan Of Odisha) वर्ष 1998 में ग्रीष्म लहर के कारण बड़ी संख्या में हुई मौतों के बाद ओडिशा सरकार इसे चक्रवात या बड़े स्तर की आपदा के रूप में देखती है। अप्रैल-जून के दौरान राज्य-स्तर और ज़िला-स्तर के आपदा केंद्रों द्वारा भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department) द्वारा व्यक्त तापमान पूर्वानुमान की लगातार निगरानी की जाती है। इसके बाद स्थानीय स्तर पर ग्रीष्म लहर से निपटने की रणनीति बनाई जाती है। सरकार द्वारा ग्रीष्म लहर से बचने के लिये किये गए उपायों में - विद्यालयों, कॉलेजों और सरकारी दफ्तरों का कार्य समय सुबह-सुबह का करना, सार्वजनिक वेतन कार्यक्रम, जैसे-मनरेगा पर रोक, दिन के विभिन्न घंटों में सार्वजनिक यातायात सुविधा को बंद करना इत्यादि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त राज्य सरकार ग्रीष्म लहर का सामना करने के लिये लोगों में जागरूकता लाने हेतु विज्ञापन लगाती है, ग्रीष्म लहरों से प्रभावित या लू के मरीजों के इलाज के लिये अस्पतालों में अतिरिक्त साधन उपलब्ध करवाए जाते हैं और नागरिक समाज संगठन जागरूकता फैलाने का कार्य करते हैं।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (United Nations Office for Disaster Risk Reduction-UNDRR) ने प्रमोद कुमार मिश्रा को आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये ससकावा पुरस्कार 2019 से सम्मानित किया है।
जिनेवा में ग्लोबल प्लेटफॉर्म फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (Global Platform for Disaster Risk Reduction- GPDRR) 2019 के छठे सत्र में इस पुरस्कार की घोषणा की गई।
वर्ष 2019 के लिये ससकावा पुरस्कार की थीम ‘बिल्डिंग इनक्लूसिव एंड रेजिलिएंट सोसाइटीज़’ (Building Inclusive and Resilient Societies) थी।
ओडिशा तट पर चक्रवात फणी के टकराने से पहले चिल्का झील के केवल दो मुहाने सक्रिय थे, ये ऐसे बिंदु होते हैं जहाँ झील समुद्र से मिलती है। लेकिन, अब उच्च ज्वारीय प्रिज्म युक्त तरंग ऊर्जा के कारण चार नए मुहाने खुल गए हैं।इसके कारण बहुत अधिक मात्रा में समुद्री जल चिल्का झील में प्रवेश कर चिल्का लैगून की लवणता में वृद्धि कर रहा है। चिल्का झील के जल में खारापन है, लेकिन एक निश्चित स्तर से अधिक लवणता होने पर इस झील के पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन की संभावना है। यदि समुद्री जल झील में प्रवेश करता है तो इससे मछलियों के प्रवासन में बढ़ोतरी होगी, जिससे जैव-विविधता समृद्ध होगी। लेकिन, इसके दीर्घकालिक प्रभावों के संबंध में विशेष रूप से सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।
चक्रवात केनेथने मोज़ाम्बिक में दस्तक दी।काबो डेलगाडो (Cabo Delgado) तट से टकराने वाले अब तक के सभी चक्रवातों की तुलना में केनेथ अधिक विनाशकारी था।पिछले दिनों मोज़ाम्बिक में चक्रवात इदई ने दस्तक दी थी।
नासा के एक्वा उपग्रह के आँकड़ों के मुताबिक, इस उष्णकटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति दक्षिणी हिंद महासागर (मेडागास्कर के उत्तर और अल्दाबरा एटोल के पूर्व में) में हुई।
1 अप्रैल को अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में 5.2तीव्रता वाला भूकंप के झटके महसूस।
चक्रवात ईदाई मार्च 2019 में मोज़ांबिक में आए एक उष्णकटिबंधीय में सबसे ज़्यादा प्रभावित बीरा शहर रहा।
इस चक्रवात से सोफाला प्रांत में सबसे अधिक नुकसान हुआ है।
अधिकांश क्षति बीरा शहर में हुईं जो देश का चौथा सबसे बड़ा शहर है, साथ ही एक बंदरगाह हब और सोफाला प्रांत की राजधानी है।
साइक्लोन ट्रेवर और वेरोनिका(Cyclone Trevor & Veronica)
- 21 मार्च को ऑस्ट्रेलिया में आए ट्रेवर और वेरोनिका नाम के दो चक्रवाती तूफानों से ऑस्ट्रेलिया के तटों में भूस्खलन होने की आशंका जताई जा रही है।
- ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमोत्तर तट पर वेरोनिका चक्रवात तथा पूर्वोत्तर तट पर ट्रेवर चक्रवात आया
- ट्रेवर और वेरोनिका हरिकेन और साइक्लोन की तरह ही हैं केवल इनके चक्रण की दिशा वामावर्त के बजाय दक्षिणावर्त है।
- सामान्यतः उत्तरी गोलार्द्ध में चक्रवात की दिशा वामावर्त है, और दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त होती है।[१]
- भीषण ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात ट्रेवर के कारण बंदरगाह परिचालन बाधित रहा साथ ही विद्युत आपूर्ति भी ठप हो गई।
- इस चक्रवात की गति लगभग 165 किलोमीटर प्रति घंटे आँकी गई है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात
[सम्पादन]- गृह-मंत्रालय के तत्त्वावधान में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण(National Disaster Management Authority- NDMA) द्वारा संबंधित राज्य सरकारों और NIDM के समन्वय से इस परियोजना को कार्यान्वित किया जाता है।
राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना को विश्व बैंक से प्राप्त वित्तीय सहायता के साथ लागू किया जाता है। इसके अंतर्गत चार प्रमुख घटकों को समाहित किया गया है:
- घटक A: चक्रवात की चेतावनी और सलाह प्रदान करने हेतु अंतिम मील कनेक्टिविटी (Last Mile Connectivity-LMC) को मजबूत करके प्रारंभिक चेतावनी प्रसार प्रणाली में सुधार।
- घटक B: चक्रवात जोखिम शमन हेतु निवेश।
- घटक C: जोखिम प्रबंधन और क्षमता निर्माण के लिये तकनीकी सहायता।
- घटक D: परियोजना प्रबंधन और संस्थागत समर्थन।
- उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का कारण तथा नामकरण
उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों (लगभग 5-30 डिग्री उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्धों) में विकसित होने वाले चक्रवातों को उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहा जाता है।
- इसे अमेरिका में हरिकेन और टारनेडो, आस्ट्रेलिया में विली-विलीज़, चीन तथा जापान में टायफून एवं टायफू व भारत में चक्रवात कहा जाता है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात बनने की आवश्यक दशाएँ:
- गर्म और आर्द्र वायु का लगातार आरोहण होना चाहिये क्योंकि चक्रवात को ऊर्जा की आपूर्ति संघनन की प्रक्रिया में छिपी हुई गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) से होती है।
- वृहद् समुद्री सतह, जहाँ समुद्री सतह का तापमान 27 डिग्री सेल्सियस से अधिक होना चाहिये।
- समुद्री सतह पर निम्न वायुदाब का विकास तथा वायु का अभिसरण (Convergence) एवं आरोहण (Ascent) होना चाहिये।
- कोरिआलिस बल की उपस्थिति अनिवार्य है क्योंकि यह वायु को चक्रीय गति प्रदान करता है।
- धरातलीय चक्रवात के ऊपरी वायुमंडल में प्रतिचक्रवातीय दशाएँ होनी चाहिये।
चक्रवातों का नामकरण पहले अक्षांशीय-देशांतर के आधार पर किया जाता था परंतु वर्तमान में चक्रवातों का नामकरण उनके स्थान, विशेषता और विस्तार के आधार पर किया जाता है। चक्रवातों के नामकरण में अक्षर प्रणाली का प्रयोग किया जाता है, इन अक्षरों में से Q,U,X,Z वर्णों को हटा दिया गया है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization- WMO) ने नामों की छह सूचियाँ तैयार की हैं, इन नामों का छह वर्ष बाद पुनः प्रयोग किया जाता है। जो चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी होते हैं, उनका नाम सूची से हटा दिया जाता है। अन्य उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के समान ही टाइफून के बनने और विकास की मुख्य दशाएँ समुद्री सतह का पर्याप्त तापमान वायुमंडलीय अस्थिरता क्षोभमंडल में उच्च आर्द्रता निम्न वायु दाब केंद्र कोरिओलिस बल (Coriolis Force) की उपस्थिति कम ऊर्ध्वाधर पवन कर्तन (Wind Shear )
- 28 दिसंबर,2019 को उष्णकटिबंधीय चक्रवात सराय फिजी के तट से टकराया।
यह श्रेणी दो का एक उष्णकटिबंधीय चक्रवात है,जो लगभग 10 किमी./घंटा की गति से पूर्व में टोंगा के जल क्षेत्र की ओर बढ़ रहा है। फिजी और टोंगा:-फिजी दक्षिण प्रशांत महासागर में एक देश और द्वीपसमूह है। यह न्यूज़ीलैण्ड के आकलैण्ड से करीब 2000 किमी. उत्तर में स्थित है। इसके नज़दीकी पड़ोसी राष्ट्रों में पश्चिम में वनुआत, पूर्व में टोंगा और उत्तर में तुवालु हैं। टोंगा,आधिकारिक तौर पर टोंगा साम्राज्य (जिसे Friendly Islands भी कहा जाता है) दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत महासागर में स्थित है। यह फिजी के पूर्व में अवस्थित है। सैफिर-सिम्पसन हरिकेन विंड स्केल (Saffir-Simpson Hurricane Wind Scale): सैफिर-सिम्पसन हरिकेन विंड स्केल में 1 से 5 तक रेटिंग होती है जो हरिकेन की गति पर आधारित होती है। यह स्केल संपत्ति के संभावित नुकसान का अनुमान लगाता है। श्रेणी हवाओं की गति हरिकेन से होने वाले नुकसान के प्रकार 1 119-153 किमी/घंटा कुछ नुकसान 2 154-177 किमी/घंटा व्यापक नुकसान 3 (गंभीर) 178-208 किमी/घंटा विनाशकारी क्षति 4 (गंभीर) 209-251 किमी/घंटा प्रलयकारी नुकसान 5 (गंभीर) 252 किमी / घंटा या अधिक प्रलयकारी नुकसान
- 25 दिसंबर,2019 को तेज़ हवाओं और भारी वर्षा के साथ टाइफून फानफोन (Typhoon Phanfone) फिलीपींस के तट से टकराया।
टाइफून फानफोन (स्थानीय भाषा में उर्सुला) टाइफून कम्मुरी के बाद फिलीपींस के तट से टकराने वाला दूसरा टाइफून है। प्रशांत महासागर में स्थित फिलीपींस ऐसा पहला बड़ा भू-क्षेत्र है जो प्रशांत महासागरीय चक्रवात बेल्ट (Pacific Cyclone Belt) से उठने वाले चक्रवातों का सामना करता है। टाइफून के बारे में: ऊष्णकटिबंधीय चक्रवातों को चीन सागर क्षेत्र में टाइफून कहते हैं। ज़्यादातर टाइफून जून से नवंबर के बीच आते हैं जो जापान,फिलीपींस और चीन जैसे देशों को प्रभावित करते हैं। दिसंबर से मई के बीच आने वाले टाइफूनों की संख्या कम ही होती है। उत्तरी अटलांटिक और पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में चक्रवातों को 'हरिकेन', दक्षिण-पूर्व एशिया और चीन में 'टाइफून' तथा दक्षिण-पश्चिम प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र में 'उष्णकटिबंधीय चक्रवात' कहा जाता है।
- टाइफून कम्मुरी (Typhoon Kammuri) फिलीपींस के तट से टकराया।
कम्मुरी,फिलीपींस में आने वाला इस वर्ष का 20वाँ टाइफून है। ऊष्णकटिबंधीय चक्रवातों को चीन सागर क्षेत्र में टाइफून कहते हैं। अधिकांश टाइफून जून से नवंबर के बीच आते हैं एवं दिसंबर से मई के बीच भी सीमित टाइफून आते हैं तथा ये जापान,फिलीपींस और चीन को प्रभावित करते हैं।
- नवंबर में भारत मौसम विभाग ने बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न चक्रवात बुलबुल को लेकर भारतीय राज्यों-पश्चिम बंगाल और ओडिशा के लिये ओरेंज अलर्ट जारी किया है।
पूर्वी-मध्य और दक्षिण-पूर्व बंगाल की खाड़ी तथा उत्तरी अंडमान सागर में बन रहा दबाव एक भयंकर चक्रवाती तूफान में बदल गया है। यह चक्रवात पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की ओर बढ़ रहा है। इस चक्रवात का नामकरण पाकिस्तान द्वारा किया गया है।
- हरिकेन डोरियन(Hurricane Dorian)
बहामास और दक्षिणपूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका को प्रभावित करने वाला एक अत्यंत शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवात है। कैरिबियाई द्वीपों के एक देश ‘बहामास’ के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में भारी तबाही मचाने के बाद इसे सबसे मज़बूत तूफान की श्रेणी में शामिल किया गया है।
मध्य अटलांटिक में उत्पन्न उष्णकटिबंधीय लहर से विकसित हुआ है। इसे सैफिर-सिम्पसन हरिकेन विंड स्केल (Saffir–Simpson Hurricane Wind Scale- SSHWS) पर श्रेणी 5 के तूफान के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें अधिकतम 285 किलोमीटर प्रति घंटे की तीव्र गति से चलने वाली हवाओं को शामिल किया जाता है।
हरिकेन एक प्रकार का तूफान है, जिसे “उष्णकटिबंधीय चक्रवात” (Tropical Cyclone) कहा जाता है। उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में हरिकेन सबसे अधिक शक्तिशाली एवं विनाशकारी तूफान होते हैं। उष्णकटिबंधीय चक्रवात उष्णकटिबंधीय अथवा उप-उष्णकटिबंधीय जल के ऊपर बनने वाली निम्न दाब युक्त मौसम प्रणाली में घूर्णन करते हैं। इनसे आँधियाँ तो आती हैं परंतु वाताग्रों (भिन्न घनत्वों के दो भिन्न वायुभारों को पृथक करने वाली सीमा) का निर्माण नहीं होता है। उत्पत्ति उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति अटलांटिक बेसिन में होती है। अटलांटिक बेसिन के अंतर्गत अटलांटिक महासागर, कैरिबियाई समुद्र, मेक्सिको की खाड़ी, पूर्वी-उत्तरी प्रशांत महासागर और कभी-कभी केंद्रीय उत्तरी-प्रशांत महासागर को भी शामिल किया जाता है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात ऐसे इंजनों के समान होते हैं जिनके संचालन के लिये ईंधन के रूप में गर्म, नमीयुक्त वायु की आवश्यकता होती है। इसका कारण यह है कि इनका निर्माण केवल ऐसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होता है जहाँ सतह से नीचे कम-से-कम 50 मीटर (165 फीट) की गहराई पर महासागर का तापमान 80 डिग्री फारेनहाइट (27 डिग्री सेल्सियस) होता है। श्रेणियाँ जब किसी तूफान की अधिकतम गति 74 m/h होती है तो उसे “हरिकेन” कहा जाता है। हरिकेन की तीव्रता को ‘सैफिर-सिंपसन हरिकेन विंड स्केल’ (Saffir-Simpson Hurricane Wind Scale) से मापा जाता है। इस स्केल में हवा की अधिकतम टिकाऊ गति के आधार पर हरिकेनों को निम्नलिखित पाँच श्रेणियों में विभक्त किया गया है: श्रेणी 1 : गति 74-95 मील/घंटा (120-153 किमी./घंटा) श्रेणी 2 : गति 96-110 मील/घंटा (155-177 किमी./घंटा) श्रेणी 3 : गति 111-129 मील/घंटा (179-208 किमी./घंटा) श्रेणी 4 : गति 130-156 मील/घंटा (209-251 किमी./घंटा) श्रेणी 5 : गति 157 मील/घंटा (253 किमी./घंटा)
चक्रवात महा (Cyclone Maha) केप केमोरिन/कोमोरिन (भारत के दक्षिणी छोर के पास स्थित) के समीप उत्पन्न।
- इसका नामकरण ओमान द्वारा किया गया है।
- यह चक्रवात लक्षद्वीप,दक्षिण-पूर्व अरब सागर तथा मालदीव के आसपास के क्षेत्रों के आसपास सक्रिय है।
- वर्ष 2019 में उत्तर-पूर्व मानसून से उत्पन्न दूसरा चक्रवाती तूफान है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, अरब सागर में दो चक्रवाती तूफान सक्रिय हैं। इससे पहले सक्रिय चक्रवात क्यार (Kyarr) अरब प्रायद्वीप की ओर बढ़ गया है।
- चक्रवात क्यार (Cyclone Kyarr)
26 अक्टूबर को उष्णकटिबंधीय चक्रवात क्यार (Kyarr) ने अरब सागर में 150 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से श्रेणी 4 के चक्रवात के रूप में दस्तक दी है।इसका नामकरण म्याँमार द्वारा किया गया है।
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) के अनुसार, पिछले 12 वर्षों में क्यार अरब सागर में आया सबसे तीव्रगामी चक्रवात है।
- यह उत्तर-पश्चिम में ओमान तट की ओर लगातार बढ़ रहा है।
- यह रिकॉर्ड स्तर पर अरब सागर में दूसरा सबसे तीव्र उष्णकटिबंधीय चक्रवात बन गया है।
- अरब सागर में वर्ष 2007 में आया 5 श्रेणी की तीव्रता वाला चक्रवात गोनू सबसे तीव्र (265 किमी. प्रति घंटे) उष्णकटिबंधीय चक्रवात था।
इससे पहले मौसम विभाग ने शुक्रवार को यलो अलर्ट जारी किया था। उत्तरी और दक्षिणी गोवा के जिलों में भारी बारिश की आशंका जताई गई थी। यलो अलर्ट तब जारी किया जाता है जब तूफान से तत्काल कोई खतरा नहीं नजर आता है। अरब सागर में उभरने वाले अधिकांश चक्रवातों की तरह, इसके अगले 24 घंटों में उत्तर-पश्चिम की ओर बहने और ओमान तट की ओर जाने की उम्मीद जताई गई है।[२]
- हगीबिस चक्रवात(Typhoon Hagibis)-जापान[३]
- टायफून (उष्ण कटिबंधीय चक्रवात) हगीबिस के कारण जापान में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया।टोक्यो के दक्षिण-पश्चिम में इज़ु प्रायद्वीप की मुख्य भूमि पर 9 अक्टूबर 2019 को स्थानीय समयानुसार शाम 7 बजे के आसपास टकराया।
- हगीबिस नाम फिलीपींस द्वारा दिया गया है,जिसका अर्थ "गति" (Speed) होता है।फिलीपींस ने स्थानीय स्तर पर इसका नाम पेरला (Perla) रखा है।
वर्ष 1958 में आए टाइफून इडा (जापानी में "कानोगावा टायफून" के रूप में विदित) के बाद से हगिबीस टायफून जापान को प्रभावित करने वाले सर्वाधिक शक्तिशाली चक्रवातों में से एक है। फिलीपीन भाषा में 'हगिबीस' का अर्थ ‘गति’ (Speed) होता है। इस तूफान ने कई क्षेत्रों में रिकॉर्ड स्तर की वर्षा की जिससे जापान बाढ़ और भूस्खलन से प्रभावित हुआ।
- हिक्का चक्रवात(Cyclone Hikaa) ओमान के दक्षिण में सक्रिय है।
24-37 किमी/ घंटे की गति की ऊर्ध्वाधर पवनें चक्रवात की प्रबलता को बढ़ा सकती हैं। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र की समुद्री सतह का तापमान 29-30 डिग्री सेल्सियस है जो उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की अनुकूलता में सहायक है। इसके साथ ही अरब प्रायद्वीप से आने वाली गर्म शुष्क हवाएँ इसकी प्रबलता को बढ़ा सकती हैं। भारत के मौसम विभाग के अनुसार यह चक्रवात अपने स्थान से पश्चिम की ओर बढ़ रहा है। भारत के मौसम विभाग के अनुसार इस चक्रवात की वर्तमान स्थिति गुजरात (वेरावल) से लगभग 490 किमी. पश्चिम-दक्षिण और कराची (पाकिस्तान) से 520 किमी. दक्षिण-दक्षिण तथा ओमान के मसिराह (Masirah) द्वीपसमूह से 710 किमी. पूर्व-दक्षिण में है। मसिराह (Masirah) द्वीपसमूह ओमान की राजधानी मस्कट से 513 किलोमीटर दक्षिण में है। यह मसिराह चैनल (Masirah Channel) से मुख्य भूमि से विभाजित होता है।
- टाइफून फैक्सई(Typhoon Faxai)-
तेज हवाओं और बारिश के साथ टाइफून फैक्सई ने टोक्यो को काफी क्षति पहुँचाई। टोकियो की खाड़ी से गुजरने के बाद यह टाइफून राजधानी चिबा में जमीन से टकराया। टाइफून एक उष्णकटिबंधीय चक्रवात है जो उत्तरी गोलार्ध्द में 100° से 180° पूर्वी देशांतर के बीच विकसित होता है। इस क्षेत्र को पश्चिमोत्तर प्रशांत बेसिन के नाम से जाना जाता है और यह पृथ्वी पर सबसे सक्रिय उष्णकटिबंधीय चक्रवात बेसिन है। पश्चिमोत्तर प्रशांत बेसिन में टाइफून का कोई निश्चित समय नही होता है। अधिकांश टाइफून जून से नवंबर के बीच आते हैं एवं दिसंबर से मई के बीच भी सीमित टाइफून आते हैं।
वैश्विक पहल
[सम्पादन]- पर्यावरण थिंक टैंक जर्मनवाच द्वारा वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक जारी किया गया। इस रिपोर्ट के अनुसार, विगत 20 वर्षों में कुल 12000 मौसम संबंधी घटनाओं में लगभग 5,00,000 लोगों की मौत हुई और लगभग 3.54 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। इसके अनुसार, वर्ष 2018 में जापान, फिलीपींस और जर्मनी सबसे अधिक जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देश पाए गए, इसके बाद क्रमशः मेडागास्कर, भारत और श्रीलंका का स्थान रहा।
जापान ने वर्ष 2018 में अत्यधिक बारिश के बाद बाढ़, गर्मी और गत 25 वर्षों में सबसे विनाशकारी तूफान जेबी का सामना किया। वर्ष का सबसे शक्तिशाली श्रेणी-5 का मैंगहट तूफान सितंबर महीने में उत्तरी फिलीपींस से होकर गुज़रा। इसकी वजह से करीब ढाई लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा और प्राण घातक भूस्खलन की घटनाएँ हुईं। जर्मनी को वर्ष 2018 में दीर्घकालिक गर्मी और सूखे का सामना करना पड़ा। जमर्नी के औसत तापमान में लगभग तीन डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज़ की गई।
- मेडागास्कर को विनाशकारी तूफान एवा का सामना करना पड़ा।
भारत में केरल में आई बाढ़ के अलावा पूर्वी तटों को तितली और गाज़ा तूफानों का भी सामना करना पड़ा जिसमें लगभग 1000 लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी। केरल में आई बाढ़ पिछले 100 सालों में सबसे विनाशकारी साबित हुई,जिसमें लगभग 2,20,000 लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। 20000 घर और 80 बाँध बर्बाद हो गए इसके अलावा लगभग 2.8 बिलियन डॉलर की क्षति हुई। वर्ष 1999 से 2018 तक जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित देश प्यूर्टो रिको, म्याँमार और हैती रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार इस पूरी अवधि में जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देशों की सूची में फिलीपींस, पाकिस्तान और वियतनाम क्रमशः चौथे, पांचवे और छठे स्थान पर है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली क्षति का एक प्रमुख कारण हीटवेव थीं। रिपोर्ट में COP 25 सम्मेलन में मौसम जनित समस्याओं से प्रभावित देशों के आर्थिक मदद के लिये विचार करने की बात की गई है।
- भारत के प्रधानमंत्री ने वर्ष 2017 की G20 बैठक में आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI) प्रस्ताव रखा था। अब अगले माह फ्राँस में G7 की बैठक प्रस्तावित है, इस बैठक में भारत के अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया, चिली तथा दक्षिण अफ्रीका को भी आमंत्रित किया गया है। ऐसा माना जा रहा है कि भारत CDRI के प्रस्ताव को इस बैठक में आगे बढ़ा सकता है।
- सेंनदाई फ्रेमवर्क के अनुसार, आपदा के जोखिम को कम करने के लिये यदि एक डॉलर खर्च किया जाए तो यह सात डॉलर का लाभ उत्पन्न करता है।
भारत विश्व में आपदा के कारण होने वाली मौतों को रोकने हेतु वैश्विक नेतृत्व कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNISDR) ने भारत के शून्य दुर्घटना दृष्टिकोण तथा राष्ट्रीय एवं स्थानीय स्तर पर आपदा के कारण होने वाली हानि और जोखिम को कम करने की नीति बनाकर वैश्विक समुदाय के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करने के लिये उसकी सराहना की है। किंतु भारत संसाधनों एवं अवसंरचना को चरम मानसून से होने वाली तबाही से बचाने में पर्याप्त रूप से सक्षम नहीं रहा है। भारत के संदर्भ में विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि 90 के दशक के अंत में तथा बीसवीं सदी के आरंभ में आपदा के कारण होने वाली आर्थिक हानि GDP के 2 प्रतिशत के बराबर रही है। ऐसे में भारत के लिये भी CDRI का गठन महत्त्वपूर्ण रूप से उपयोगी है। आपदा प्रबंधन, पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण के मामले में जापान को महारत हासिल है, प्राकृतिक रूप से आपदा के प्रति सुभेद्य होने के बावजूद यह विशेषता जापान को विश्व का सबसे सुरक्षित एवं सबसे अधिक आपदा प्रतिरोधी देश बनाती है। भारत सौर ऊर्जा के उपयोग में वृद्धि के लिये पहले ही वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों के गठबंधन के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सौर ऊर्जा गठबंधन (ISA) का निर्माण कर चुका है। CDRI की स्थापना भारत के उपर्युक्त प्रयास में अनुपूरक की भूमिका निभाएगा। भारत ने ISA के माध्यम से विश्व की सबसे बड़ी समस्या जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहयोग करने की बजाय समस्या का हल दूँढने वाले देश के रूप में अपने सॉफ्टपॉवर में वृद्धि की है। भारतीय विदेश नीति में ISA के बाद CDRI एक ऐसे नवाचार के रूप में स्थापित हो सकता है, जिसकी विश्व को आवश्यकता है।
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सहायक सचिवालय कार्यालय सहित आपदा प्रबंधन अवसंरचना पर अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन (International Coalition for Disaster Resilient Infrastructure-CDRI) की स्थापना को कार्योत्तर मंज़ूरी प्रदान कर दी है। इस प्रस्ताव को प्रधानमंत्री ने 13 अगस्त, 2019 को मंज़ूरी दी थी।
23 सितंबर, 2019 को अमेरिका के न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन (UN Climate Action Summit) के दौरान CDRI की शुरुआत किये जाने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा आयोजित यह शिखर सम्मेलन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और इसके परिणामस्वरूप होने वाली आपदाओं से निपटने की दिशा में प्रतिबद्धता व्यक्त करने के लिये बड़ी संख्या में राष्ट्राध्यक्षों को एक साथ लाएगा तथा CDRI के लिये आवश्यक उच्च स्तर पर ध्यान देने योग्य बनाएगा। अन्य बातों के अलावा निम्नलिखित पहलों को मंज़ूरी दी गईः
नई दिल्ली में सहायक सचिवालय कार्यालय सहित आपदा प्रबंधन अवसंरचना पर अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन (CDRI) की स्थापना। सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम (Societies Registration Act), 1860 के अंतर्गत संस्था के रूप में CDRI के सचिवालय की नई दिल्ली में स्थापना ‘CDRI संस्था’ अथवा इससे मिलते-जुलते नाम से उपलब्धता के आधार पर की जाएगी। संस्था का ज्ञापन और ‘CDRI संस्था’ के उपनियमों को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority-NDMA) द्वारा यथासमय तैयार किया जाएगा और इन्हें अंतिम रूप दिया जाएगा।
- CDRI को तकनीकी सहायता और अनुसंधान परियोजनाओं का निरंतर आधार पर वित्त पोषण करने, सचिवालय कार्यालय की स्थापना करने तथा बार-बार होने वाले खर्चों के लिये वर्ष 2019-20 से वर्ष 2023-24 तक पाँच वर्ष की अवधि के लिये आवश्यक राशि हेतु भारत सरकार की ओर से 480 करोड़ रुपए (लगभग 70 मिलियन डॉलर) की सहायता को सैद्धांतिक मंज़ूरी देना।
- चार्टर दस्तावेज़ का समर्थित स्वरूप CDRI के लिये संस्थापक दस्तावेज़ का कार्य करेगा। NDMA द्वारा विदेश मंत्रालय के परामर्श से संभावित सदस्य देशों से जानकारी लेने के बाद इस चार्टर को अंतिम रूप दिया जाएगा।
प्रमुख प्रभावः- CDRI एक ऐसे मंच के रूप में सेवाएँ प्रदान करेगा, जहाँ आपदा और जलवायु के अनुकूल अवसंरचना के विविध पहलुओं के बारे में जानकारी जुटाई जाएगी और उसका आदान-प्रदान किया जाएगा। यह विविध हितधारकों की तकनीकी विशेषज्ञता को एक स्थान पर एकत्र करेगा। इसी क्रम में यह एक ऐसी व्यवस्था का सृजन करेगा, जो देशों को उनके जोखिमों के संदर्भ तथा आर्थिक ज़रूरतों के अनुसार अवसंरचनात्मक विकास करने के लिये उनकी क्षमताओं और कार्यपद्धतियों को उन्नत बनाने में सहायता करेगी। इस पहल से समाज के सभी वर्ग लाभांवित होंगे। आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग, महिलाएँ और बच्चे आपदाओं के प्रभाव की दृष्टि से समाज का सबसे असुरक्षित वर्ग होते हैं तथा ऐसे में आपदा के अनुकूल अवसंरचना तैयार करने के संबंध में ज्ञान और कार्यपद्धतियों में सुधार होने से उन्हें लाभ पहुँचेगा। भारत में पूर्वोत्तर और हिमालयी क्षेत्र भूकंप के खतरे, तटवर्ती क्षेत्र चक्रवाती तूफानों एवं सुनामी के खतरे तथा मध्य प्रायद्वीपीय क्षेत्र सूखे के खतरे वाले क्षेत्र हैं।