सामान्य अध्ययन २०१९/पर्यावरण-विश्व

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सामान्य अध्ययन २०१९
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  • हेड ऑन ज़ेनरेशन (HOG) प्रौद्योगिकी वायु और ध्वनि प्रदूषण से मुक्त है। यह प्रणाली कार्बन डाइआक्साइड (CO2) और नाइट्रोज़न आक्साइड (NOx) के वार्षिक उत्सर्जन में कमी लाएगी।

ओवरहेड केबल से बिजली की आपूर्ति एकल-चरण में 750 वोल्ट है और 945 केवीए का ट्रांसफार्मर इसे तीन चरणों में 50 हर्ट्ज पर 750 वोल्ट के आउटपुट में परिवर्तित कर देता है,जिसके बाद यह ऊर्जा कोच तक पहुँचाई जाती है।

चूँकि हेड ऑन जेनरेशन तकनीक से लैस ट्रेनों को डीज़ल जेनरेटर से बिजली की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं होती है, इसलिये उनके पास दो नियमित जेनरेटर कारों के बजाय केवल एक आपातकालीन जनरेटर कार होती है।

इससे अतिरिक्त स्थान सृजित होगा, जिससे अब अधिक यात्रियों को समायोजित किया जा सकता है।

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण महासभा’ (United Nations Environment Assembly), 2019 का विषय 'पर्यावरणीय चुनौतियों और सतत् उपभोग तथा उत्पादन हेतु अभिनव समाधान' (Innovative Solutions for Environmental Challenges and Sustainable Consumption and Production) था।

सम्मेलन के दौरान इसमें शामिल सभी राष्ट्र वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु विकास के नए मॉडल को अपनाने पर सहमत हुए। सभी राष्ट्रों ने सर्वसम्मति से वर्ष 2030 तक एकल-उपयोग प्लास्टिक उत्पादों जैसे- कप, कटलरी और बैग आदि में कटौती करने पर भी सहमति व्यक्त की। इस सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nation Environment Programme-UNEP) ने वैश्विक पर्यावरण आउटलुक रिपोर्ट का ‘’’छठा संस्करण ‘’’भी जारी किया है।

  • अमखोई जीवाश्म पार्क पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में इलमबाज़ार के पास स्थित है। इसमें 15 से 20 मिलियन वर्ष की आयु की जीवाश्म लकड़ियाँ है और इसे आधिकारिक तौर पर पश्चिम बंगाल के राज्य वन विभाग द्वारा मान्यता प्राप्त है।
  • पेट्रिफिकेशन एक भूवैज्ञानिक घटना है, जिसके द्वारा कार्बनिक पदार्थ मूल सामग्री के प्रतिस्थापन तथा मूल छिद्रों के रिक्त स्थान खनिजों द्वारा भरने से एक जीवाश्म बन जाता है।

पेट्रिफ़ाइड लकड़ी इस प्रक्रिया का प्रतिनिधित्त्व करती है,लेकिन बैक्टीरिया से लेकर कशेरुकी तक सभी जीवों का पेट्रीकरण हो सकता है। पेट्रिफिकेशन की घटना दो समान प्रक्रियाओं के संयोजन के माध्यम से होती है : अनुमेयकरण और प्रतिस्थापन (Permineralization and Replacemen)।

यूरोपीय संघ ग्रीन डील (European Union Green Deal)[सम्पादन]

1 दिसंबर 2019 को यूरोपीय संघ द्वारा जलवायु परिवर्तन पर अतिरिक्त उपायों की एक घोषणा,यूरोपीय संघ ग्रीन डील की गई थी। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने सितंबर में महासभा सत्र के मौके पर एक विशेष बैठक बुलाई थी ताकि देशों की प्रतिबद्धता सुनिश्चित की जा सके। इसके परिणामस्वरूप 60 से अधिक देशों ने अपने जलवायु कार्यवाही या वर्ष 2050 के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सहमति व्यक्त की थी, लेकिन ये सभी अपेक्षाकृत छोटे उत्सर्जक देश हैं।

यूरोपीय संघ (जिसमें 28 सदस्य देश हैं) विश्व में चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद ग्रीनहाउस गैसों के तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है।

दो प्रमुख फैसले यूरोपीय ग्रीन डील के केंद्र में हैं। जलवायु तटस्थता (Climate Neutrality):-यूरोपीय संघ ने वर्ष 2050 तक ‘जलवायु तटस्थ’ बनने हेतु सभी सदस्य देशों के लिये एक कानून लाने का वादा किया है। [१] जलवायु तटस्थता को शुद्ध-शून्य उत्सर्जन की स्थिति के रूप में व्यक्त किया जाता है। इसके अंतर्गत वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों का अवशोषण और निष्कासन जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं। यूरोपीय संघ वर्ष 2050 तक जलवायु तटस्थता लक्ष्य की प्राप्ति पर सहमत होने वाला पहला बड़ा उत्सर्जक है। उसने कहा है कि वह लक्ष्य की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये यूरोपीय संघ में अगले वर्ष मार्च तक एक प्रस्ताव लाएगा।

2030 उत्सर्जन कटौती लक्ष्य में वृद्धि:- पेरिस जलवायु समझौते के तहत घोषित अपनी जलवायु कार्ययोजना में यूरोपीय संघ वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक अपने उत्सर्जन में 40% की कमी करने के लिये प्रतिबद्ध है। अब इस कमी को कम-से-कम 50% तक बढ़ाने और 55% की दिशा में काम करने का वादा किया गया है।

इसके विपरीत अन्य विकसित देशों द्वारा कम महत्त्वाकांक्षी उत्सर्जन लक्ष्य घोषित किये गए हैं। उदाहरण के लिये अमेरिका ने वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में 26-28% की कटौती करने पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन पेरिस जलवायु समझौते से हटने के बाद अब वह उस लक्ष्य को पूरा करने के लिये भी बाध्य नहीं है। यूरोपीय संघ द्वारा कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिये वर्ष 1990 को आधार को बनाने के विपरीत अन्य सभी विकसित देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) के अनिवार्य लक्ष्य के तहत अपने आधार वर्ष को वर्ष 2005 या पेरिस जलवायु समझौते के तहत स्थानांतरित कर दिया है। यूरोपीय संघ ग्रीन डील हेतु किये गए प्रयास: ग्रीन डील में इन दो समग्र लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये क्षेत्रीय योजनाएँ शामिल हैं और नीतिगत बदलावों के प्रस्ताव की भी आवश्यकता होती है। उदाहरणस्वरूप इसमें वर्ष 2030 तक इस्पात उद्योग को कार्बन-मुक्त बनाने, परिवहन और ऊर्जा क्षेत्रों के लिये नई रणनीति, रेलवे के प्रबंधन में संशोधन तथा उन्हें अधिक कुशल बनाने एवं वाहनों हेतु अधिक कठोर वायु प्रदूषण उत्सर्जन मानकों का प्रस्ताव है। कार्बन उत्सर्जन पर अन्य देशों की स्थिति: यूरोपीय संघ उत्सर्जन को कम करने के लिये अन्य विकसित देशों की तुलना में बेहतर कार्य कर रहा है। उत्सर्जन में कमी के संदर्भ में यह संभवतः यूरोपीय संघ के बाहर किसी भी विकसित देश के विपरीत वर्ष 2020 के लक्ष्य को पूरा करने के लिये प्रगति पर है। कनाडा जो क्योटो प्रोटोकॉल से बाहर चला गया, ने पिछले वर्ष बताया कि वर्ष 2005 के उत्सर्जन से इसका उत्सर्जन 4% कम था, लेकिन यह वर्ष 1990 की तुलना में लगभग 16% अतिरिक्त था।

जलवायु परिवर्तन पर COP-25,मैड्रिड (स्पेन की राजधानी)[सम्पादन]

2-13 दिसंबर,2019 तक मैड्रिड (Madrid) में आयोजित होने वाले ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन’(UNFCCC) के 25वें जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP-25) में भारत समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्वों के सिद्धांत((CBDR-RC))पर ज़ोर देगा। इसके अनुसार विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध कार्रवाई में विकासशील और अल्पविकसित देशों की तुलना में अधिक ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये क्योंकि विकसित होने की प्रक्रिया में इन देशों ने सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन किया है और ये देश जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे अधिक ज़िम्मेदार हैं।

वर्ष 2019 के सम्मेलन के आयोजन की ज़िम्मेदारी चिली की थी लेकिन चिली ने आंतरिक कारणों से देश में बढ़ते विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए COP-25 के आयोजन में असमर्थता जताई थी।

चिली में दो सप्ताह पहले हुई उपनगरीय रेल के किराये में वृद्धि को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। यह विरोध प्रदर्शन अब एक बड़े जन आंदोलन में बदल गया है। जिसके माध्यम से अब चिली की जनता अधिक से अधिक समानता, बेहतर सार्वजनिक सुविधाओं तथा संविधान में परिवर्तन की मांग कर रही है। इस विज्ञप्ति में भारत की दो जलवायु कार्रवाई पहलों की चर्चा की गई है-

एक मुख्य कारण यह भी है कि दिसंबर 2018 में पोलैंड के कार्टोविस में आयोजित COP-24 सम्मेलन के अंत तक COP-25 के मेजबान का फैसला नहीं हो पाया था क्योंकि चिली और कोस्टारिका के बीच मेज़बानी को लेकर अनिश्चितता बनी रही।

चिली ने एक अन्य कारण बताते हुए कहा कि उसने इसी वर्ष नवंबर में ‘एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग’ (Asia Pacific Economic Cooperation- APEC) के प्रमुखों के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की है, अतः वह दिसंबर में एक और अन्य बड़े सम्मेलन के आयोजन के लिये स्वयं को तैयार नहीं कर सकता।

  1. आपदा प्रतिरोधी संरचना के लिये गठबंधन:-विभिन्न देशों को जलवायु और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे पर जानकारी के आदान-प्रदान करने के लिये एक मंच उपलब्ध।
  2. उद्योग संक्रमण के लिये नेतृत्त्व समूह:-(Leadership Group for Industry Transition):

भारत और स्वीडन द्वारा संयुक्त रूप से प्रारंभ इस पहल के माध्यम से विभिन्न देशों में सरकारी और निजी क्षेत्र के लिये एक मंच उपलब्ध कराया जाएगा ताकि प्रौद्योगिकी नवाचार के क्षेत्र में सहयोग तथा कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने पर कार्य किया जा सके। COP-25 का प्राथमिक उद्देश्य

  1. वर्ष 2015 के पेरिस समझौते की नियम-पुस्तिका (Rule-Book) के अनसुलझे मुद्दों पर चर्चा करना था। पेरिस समझौता वर्ष 2020 में वर्ष 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल का स्थान लेगा।
बीते वर्ष दिसंबर में आयोजित COP-24 में नए कार्बन बाज़ारों के निर्माण,उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य, विभिन्न देशों के अलग-अलग लक्ष्यों जैसे कुछ मुद्दों पर आम सहमति नहीं बन पाई थी जिसके कारण पेरिस समझौते की नियम-पुस्तिका को भी अंतिम रूप नहीं दिया जा सका था।
  1. बैठक में अंतर्राष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार प्रणाली की कार्य-पद्धति और अल्प-विकसित देशों के लिये जलवायु परिवर्तन के परिणामों से निपटने हेतु मुआवज़े की व्यवस्था जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की जानी थी।
  2. साथ ही COP-25 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा जारी वार्षिक उत्सर्जन गैप रिपोर्ट और जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) की विभिन्न रिपोर्ट्स पर भी चर्चा की जानी थी।

उक्त रिपोर्ट्स में कहा गया था कि वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का पेरिस समझौते का लक्ष्य अब ‘असंभव होने की कगार पर है’, क्योंकि वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन अभी भी लगातार बढ़ रहा है। बैठक में चिली मेड्रिड टाइम ऑफ एक्शन नामक दस्तावेज़ जारी किया गया है। इस दस्तावेज़ के अंतर्गत सतत् विकास तथा गरीबी उन्मूलन में जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली बाधाओं से निपटने के लिये IPCC द्वारा राष्ट्रों को दिये वैज्ञानिक सुझावों की सराहना की गई है। इसके अलावा इसमें राष्ट्रों द्वारा वर्ष 2020 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की पूर्ववर्ती प्रतिबद्धताओं और वर्तमान उत्सर्जन स्तर के अंतर पर प्रकाश डालते हुए प्रतिबद्धताओं की अनिवार्यता पर ज़ोर दिया गया। साथ ही जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में विकासशील देशों की मदद करने के लिये वर्ष 2020 तक 100 बिलियन डॉलर जुटाने की प्रतिबद्धता को भी दोहराया गया। दस्तावेज़ में जैव-विविधता क्षरण और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का एकीकृत रूप से उन्मूलन करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया। बैठक के दौरान निजी क्षेत्र की 177 कंपनियों ने 1.5C के लक्ष्य के अनुरूप उत्सर्जन में कटौती करने की शपथ ली। इसी बीच यूरोपीय संघ ने ‘यूरोपीय ग्रीन डील’ का भी अनावरण किया गया, जिसके अंतर्गत वर्ष 2050 तक यूरोपीय संघ के देश स्वयं को जलवायु तटस्थ (Climate Neutral) अर्थात वर्ष 2050 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

  1. इसके अलावा विकासशील देशों द्वारा हरित जलवायु कोष (GCF) के अंतर्गत ‘फाईनेंसिंग विंडो’ की व्यवस्था पर असहमति दर्ज की गई।
  2. अल्प विकासशील देशों ने पूर्व-2020 (Pre-2020) लक्ष्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया परंतु उन से ज़्यादा अपेक्षा न करने की मांग भी की।
  3. अनुच्छेद-6 के अतिरिक्त पेरिस समझौते की नियम-पुस्तिका के सभी बिंदुओं पर सदस्य देशों ने सहमति व्यक्त की।

कितना सफल रहा COP-25? बैठक में पेरिस समझौते के अनुच्छेद-6 में उल्लेखित नए कार्बन बाज़ार के लिये नियमों पर आम सहमति न बन पाने के कारण इसे अगले वर्ष होने वाले COP-26 तक के लिये स्थानांतरित कर दिया गया। विदित है कि पेरिस समझौते का अनुच्छेद- 6 एक अंतर्राष्ट्रीय कार्बन बाज़ार की अवधारणा प्रस्तुत करता है। कार्बन बाज़ार विभिन्न देशों और उद्योगों को उत्सर्जन में कमी के लिये कार्बन क्रेडिट अर्जित करने की अनुमति देता है। इन कार्बन क्रेडिट्स को किसी भी अन्य देश को बेचा जा सकता है। कार्बन क्रेडिट का खरीदार देश इन क्रेडिट्स को अपने कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य के रूप में दिखा सकता है। कुछ देशों (जैसे-मैक्सिको) ने क्योटो समझौते के क्रेडिट पॉइंट्स को पेरिस समझौते में इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी है, जिस पर सभी देश एकमत नहीं हो सके। अनुच्छेद-6 के ही अंतर्गत ‘सामान समयसीमा’ (Common Timeframe) की अनिवार्यता को भी अगले वर्ष तक के लिये टाल दिया गया। एक अन्य समस्या यह है कि नई प्रक्रिया के तहत इन क्रेडिट्स को बाज़ार में देशों या निजी कंपनियों के बीच कई बार खरीदा-बेचा जा सकता है। अतः इस प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करना आवश्यक होगा कि इन क्रेडिट्स की एक बार से अधिक गणना न की जाए।

क्योटो प्रोटोकॉल की दूसरी प्रतिबद्धता (2013-20) की अवधि के समाप्त होने पर 2020 में पेरिस समझौता औपचारिक रूप से लागू हो जाएगा लेकिन अभी भी इसके कई नियमों पर सहमति नहीं बन पाई है। ज्ञात हो कि वर्ष 2012 में कनाडा ने स्वयं को क्योटो प्रोटोकॉल से बाहर कर लिया था।

COP की दोहा बैठक (COP-18) 2012 में कनाडा, जापान, रूस, बेलारूस, युक्रेन, न्यूजीलैंड और अमेरिका ने क्योटो प्रोटोकॉल की दूसरी प्रतिबद्धता से जुड़ने से मना कर दिया था। अमेरिका जैसे देश का स्वयं को पेरिस समझौते से अलग करना इस मुहिम के लिये एक बड़ा झटका है।

वर्ष 2017 में फिजी ने भी इतने बड़े सम्मेलन के लिये संसाधनों की कमी बताते हुए इसके आयोजन से इनकार कर दिया था तथा उस वर्ष यह सम्मेलन जर्मनी के बॉन में आयोजित किया गया था।
अमीर देश आमतौर तौर पर इस सम्मेलन की मेज़बानी से कतराते रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, पश्चिमी यूरोप के कई देशों तथा ऑस्ट्रेलिया ने इस सम्मेलन की मेज़बानी कभी नहीं की है।

यूनाइटेड किंगडम वर्ष 2020 में पहली बार ग्लासगो में COP-26 की मेज़बानी करेगा। COP-सम्मेलन की मेज़बानी पोलैंड चार बार तथा मोरक्को दो बार कर चुका है।

वैश्विक जलवायु परिवर्तन[सम्पादन]

  • स्नोएक्स(SnowEx)नासा (NASA) का एक 5 वर्षीय मौसमी अभियानहै जिसका उद्येश्य शीत ऋतु के दौरान हुई बर्फ बारी में जल की मात्रा का पता लगाना है।

2016-17 में प्रारंभ इस कार्यक्रम का भौगोलिक केंद्र-बिंदु उत्तरी अमेरिका है जिसमें टुंड्रा (अल्पाइन या आर्कटिक),टैगा (बोरेल वन),वार्म(समशीतोष्ण)वन,समुद्री,प्रेयरी और अल्पायु (Ephemeral) जैसे जलवायु क्षेत्र शामिल हैं।

स्नोएक्स ‘अर्थ सिस्टम एक्सप्लोरर’ (Earth System Explorer) अभियान के लिये रिमोट सेंसिंग और मॉडल की सहायता से विश्व के समग्र स्नो वाटर इक्वालैंट (Snow Water Equivalent- SWE) के मानचित्रण में सहायक होगा।

SWE एक सामान्य स्नो पैक्स (Snow Packs) माप है। अर्थात यह बर्फ के भीतर निहित पानी की मात्रा है। कार्य: स्नोएक्स किसी भौगोलिक सीमा के भीतर कहाँ कितनी बर्फ गिरी है तथा इसकी विशेषताओं में परिवर्तन का आकलन करता है। आकलन करने के लिये एयरबोर्न मापन (Airborne Measurements), भू-आधारित मापन और कंप्यूटर मॉडलिंग (Computer Modelling) का उपयोग किया जाता है। एयरबोर्न माप में बर्फ की गहराई को मापने के लिये रडार और लिडार, SWE को मापने के लिये माइक्रोवेव रडार तथा रेडियोमीटर, सतह की तस्वीर लेने के लिये ऑप्टिकल कैमरे, सतह के तापमान को मापने के लिये अवरक्त रेडियोमीटर एवं बर्फ की सतह व संरचना के लिये हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजर्स का उपयोग किया जाता है। ग्राउंड टीमें बर्फ की गहराई, घनत्व, संचय परतों, तापमान, गीलापन और बर्फ के दाने के आकार को मापती हैं। इस वर्ष वास्तविक समय के लिये कंप्यूटर मॉडलिंग को भी अभियान में एकीकृत किया जाएगा।

  • दुनिया भर के 153 देशों के लगभग 11,000 से अधिक वैज्ञानिकों ने वैश्विक जलवायु आपातकाल की घोषणा की है।

वैश्विक जलवायु आपातकाल के आधार: बायोसाइंस ज़र्नल में भारत के 69 वैज्ञानिकों सहित विश्व के 11,258 हस्ताक्षरकर्त्ताओं ने जलवायु परिवर्तन के रुझान को प्रस्तुत किया तथा इससे निपटने के तरीकों को भी शामिल किया है। जलवायु आपातकाल की घोषणा 40 वर्षों से अधिक समय तक किये गए वैज्ञानिक विश्लेषण के डेटा पर आधारित है। इस डेटा में ऊर्जा उपयोग,पृथ्वी का तापमान,जनसंख्या वृद्धि,भूमि क्षरण,वृक्षों की कटाई, ध्रुवीय बर्फ का द्रव्यमान,प्रजनन दर,सकल घरेलू उत्पाद और कार्बन उत्सर्जन सहित एक व्यापक क्षेत्र को कवर करने वाले सार्वजनिक कारक शामिल है। वैज्ञानिकों ने उन छह क्षेत्रों को चिंहित किया है जिनमें मानव को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिये तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।

इनमें ऊर्जा,अल्पकालिक प्रदूषक,प्रकृति,भोजन,अर्थव्यवस्था और जनसंख्या शामिल हैं।
  • यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) और भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने 25 सितंबर, 2019 को आधिकारिक तौर पर फॉरेस्ट-प्लस 2.0 (Forest-PLUS 2.0) कार्यक्रम लॉन्च कर दिया है।

यह टिकाऊ वन परिदृश्य प्रबंधन के उद्देश्य पर आधारित पायलट प्रोजेक्ट्स फॉरेस्ट-प्लस का दूसरा संस्करण है, जिसने 2017 में अपने पाँच साल पूरे किये हैं। इसका उद्देश्य ‘निर्वनीकरण एवं वन निम्नीकरण से होने वाले उत्सर्जन में कटौती’ (REDD +) में भाग लेने हेतु भारत की क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना था।

इसमें सिक्किम,रामपुर,शिवमोग्गा और होशंगाबाद के चार पायलट प्रोजेक्ट शामिल थे।
इसके अंतर्गत वन प्रबंधन के लिये क्षेत्र परीक्षण,नवीन उपकरण और दृष्टिकोण विकसित किया गया।
सिक्किम में जैव-ब्रिकेट्स (Bio-Briquettes) का संवर्द्धन,रामपुर में सौर ताप प्रणाली की शुरुआत और होशंगाबाद में एक कृषि-वानिकी मॉडल का विकास इस कार्यक्रम की कुछ उपलब्धियाँ थीं।
बायो-ब्रिकेट्स विकासशील देशों में प्रयोग किया जाने वाले कोयला और चारकोल का जैव-ईंधन विकल्प हैं

फॉरेस्ट-प्लस 2.0 दिसंबर 2018 में शुरू किया गया पाँच वर्षीय कार्यक्रम है। अमेरिका की एक परामर्शदात्री और इंजीनियरिंग कंपनी टेट्रा टेक ARD को कार्यक्रम लागू करने का दायित्व सौंपा गया है और नई दिल्ली स्थित IORA इकोलॉजिकल सॉल्यूशंस नामक पर्यावरण सलाहकार समूह इसका कार्यान्वयन भागीदार है।

फॉरेस्ट-प्लस 2.0 में तीन भू-परिदृश्यों (Landscapes) में पायलट प्रोजेक्ट्स शामिल हैं- बिहार में गया, केरल में तिरुवनंतपुरम और तेलंगाना में मेडक। इन स्थलों का चयन उनके भू-परिदृश्यों में विविधता के आधार पर किया गया है। अतः कथन 3 सही है।

लक्ष्य

  1. 1,20,000 हेक्टेयर भूमि का बेहतर प्रबंधन।
  2. 12 मिलियन डॉलर मूल्य की नई और समावेशी आर्थिक गतिविधियाँ।
  3. 800,000 घरों को लाभान्वित करना।
  4. पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये भू-परिदृश्य के प्रबंधन में तीन प्रोत्साहन तंत्रों का प्रदर्शन।
ग्रीनहाउस गैस का प्रभाव
विकिरण को मजबूत करनेवाले कारक
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती हेतु ‘नेतृत्व समूह’-

न्यूयार्क में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु कारवाई शिखर सम्मेलन (UN Climate Action Summit) के दौरान 11 देशों व कुछ संगठनो को मिलाकर एक ‘नेतृत्व समूह’ (Leadership Group) की घोषणा की गयी है।[२]

यह समूह विश्व में सर्वाधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करने वाले उद्योगों को उत्सर्जन कटौती में सहयोग कर निम्न कार्बन उत्सर्जन अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा। इसका उद्देश्य हार्ड-टू-डीकार्बोनाइज़ (भारी वाहन,शिपिंग,स्टील,सीमेंट आदि) और उर्जा गहन क्षेत्रों (Energy-Intensive Sectors) में बदलाव लाना है।

यह वैश्विक पहल भारी उद्योगों और ऑटो कंपनियों को पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये एक व्यावहारिक मार्ग उपलब्ध करवाएगी।

इस समूह में भारत,स्वीडन,अर्जेंटीना,फिनलैंड,फ्रांस,जर्मनी,आयरलैंड,लक्ज़मबर्ग,नीदरलैंडस,दक्षिण कोरिया और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं।
इस समूह के संयुक्त नेतृत्व हेतु भारत और स्वीडन को चुना गया है।

इस वैश्विक पहल को विश्व आर्थिक मंच,एनर्जी ट्रांजिसन कमीशन,मिशन इनोवेशन (Mission Innovation),स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट और यूरोपीय क्लाइमेट फाउंडेशन (European Climate Foundation) एवं अनेक कंपनियों द्वारा समर्थन प्रदान किया जाएगा।

स्विट्ज़रलैंड मानचित्र
  • पिजोल ग्लेशियर(Pizol Glacier) स्विट्ज़रलैंड में स्थित है। यह वैश्विक तापन के कारण तेज़ी से पिघलकर समाप्ति की स्थिति में पहुँच चुका है।

स्विट्ज़रलैंड के पूर्वोत्तर भाग में स्थित और लगभग 2,700 मीटर(8,850 फीट)ऊंँची इस ग्लेशियर की सीमाएँ लिंचेस्टीन और ऑस्ट्रिया को स्पर्श करती हैं। जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप वैश्विक नीतियों के प्रतीकात्मक विरोध हेतु पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं ने काले रंग के कपड़े पहने थे। इस प्रकार का प्रतीकात्मक विरोध इससे पहले आइसलैंड में जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप ओकजोकुल (Okjokull) द्वीपसमूह से पूरी तरह बर्फ पिघलने के बाद किया गया था।

  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल द्वारा जारी रिपोर्ट में ग्लोबल वार्मिंग में भूमि संबंधी गतिविधियों जैसे- कृषि,उद्योग,वानिकी, पशुपालन और शहरीकरण के योगदान के बारे में बात की गई है।

रिपोर्ट में खाद्य उत्पादन गतिविधियों द्वारा ग्लोबल वार्मिंग को प्रभावित करने संबंधी योगदान को भी इंगित किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया कि अगर मवेशियों के पालन-पोषण और परिवहन,ऊर्जा एवं खाद्य प्रसंस्करण जैसी गतिविधियों पर ध्यान दिया जाए तो ये गतिविधियाँ प्रत्येक वर्ष कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 37% का योगदान करती है। रिपोर्ट में बताया गया कि उत्पादित सभी खाद्य पदार्थों का लगभग 25% बर्बाद हो जाता है जो कचरे के रूप में अपघटित होकर उत्सर्जन को बढ़ाता है।

ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क
  • ऑस्ट्रेलिया ने ग्रेट बैरियर रीफ के संबंध में दीर्घकालिक दृष्टिकोण को ‘पुअर’ (Poor) से घटा कर ‘वेरी पुअर” (Very Poor) कर दिया है।

महासागरीय तापमान में वृद्धि के कारण 2300 किमी लंबी कोरल रीफ को प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching) का सामना करना पड़ रहा है। विश्व की सबसे लंबी इस कोरल रीफ में 2900 अलग-2 रीफ और 900 द्वीप है। द ग्रेट बैरियर रीफ को अंतरिक्ष से देखा जा सकता है और यह दुनिया की सबसे बड़ी एकल संरचना है जो जीवित जीवों द्वारा बनी है। वर्ष 1981 में इसे विश्व विरासत स्थल (World Heritage Site) का दर्जा दिया गया। ऑस्ट्रेलियाई एजेंसी द ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क अथॉरिटी द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट यूनेस्को की समिति के सम्मुख प्रमुख इनपुट होगी। इससे ग्रेट बैरियर रीफ को ‘संकटग्रस्त विश्व विरासत की सूची’ (World Heritage in Danger) में शामिल करने की संभावना बढ़ जायेगी।

  • एक किशोर जलवायु प्रचारक ग्रेटा थनबर्ग पर्यावरण पर बात करने के लिये नाव से न्यूयार्क गईं तथा वहाँ पहुँचकर सभी लोगों से ‘प्रकृति पर युद्ध’ को समाप्त करने का आग्रह किया।

थनबर्ग पर्यावरण के लिये काम करने वाले युवाओं के बीच एक बड़ा प्रतीक बन गई हैं। उन्होंने हर हफ्ते स्वीडन के स्कूल में पर्यावरण के लिये हड़ताल करने हेतु अभियान #FridaysForFuture का नेतृत्व किया जो अब काफी लोकप्रिय हो गया है। वह अगले महीने न्यूयॉर्क में होने जा रहे यूनाइटेड नेशंस क्लाइमेट एक्शन में अपने विचार प्रस्तुत करने के लिये आई हैं। साथ ही दुनिया भर के उन नेताओं से मिलेंगी जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाने के लिये अपनी योजनाएँ प्रस्तुत करने वाले हैं। ग्रेटा थनबर्ग एक अभिनेता और ऑपेरा सिंगर की बेटी हैं।इनकी उम्र महज़ 16 साल है। स्वीडन के आम चुनाव से कुछ हफ्ते पहले इन्होंने स्कूल जाना छोड़कर जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरों के बारे में प्रचार-प्रसार करना शुरू कर दिया। चुनाव के बाद भी हर शुक्रवार को स्कूल नहीं जाने का सिलसिला जारी रखा कुछ समय पश्चात् ही इनके साथ हज़ारों छात्रों ने भी इसे अपना लिया। इसके बाद थनबर्ग पोप से मिलीं, दावोस में भाषण दिया तथा जर्मनी के कोयला विरोधी प्रदर्शनों में शामिल हुईं। अपने अभियान को जारी रखने के लिये इन्होंने स्कूल से एक साल की छुट्टी ले ली है। #FridaysForFuture जलवायु संकट पर की जाने वाली नाममात्र की कार्यवाही के विरोध में अगस्त 2018 में स्वीडन में शुरू किया गया आंदोलन है। हैशटैग #FridaysForFuture और #Climatestrike इतने अधिक लोकप्रिय हो गए कि कई छात्रों एवं वयस्कों ने दुनिया भर में अपने संसदों तथा स्थानीय शहर के बाहर विरोध करना शुरू कर दिया।

  1. Climatestrike जलवायु मुद्दे को हल करने के लिये युवा पीढ़ी द्वारा विश्व स्तर पर की जाने वाली एक समन्वित कार्रवाई है जिसे पुरानी पीढ़ी द्वारा जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम नहीं किये जाने पर चलाया जा रहा है।
  2. Climatestrike का उद्देश्य मानव इतिहास में सबसे बड़ी चुनौती को हल करने के लिये सबको सचेत करने हेतु प्रयास है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण आइसलैंड के ग्लेशियर 'ओकजोकुल' ने अपनी पहचान खो दी है।

यह दुनिया का संभवतः पहला स्मारक हो सकता है जो जलवायु परिवर्तन के कारण समाप्त होने वाला ग्लेशियर बन गया है। आइसलैंड के प्रधानमंत्री की मौजूदगी में ओकजोकुल से ग्लेशियर का दर्जा वापस ले लिया गया। एक अनुमान के अनुसार, अगले 200 वर्षों में दुनिया के सभी ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे।

ओकजोकुल ग्लेशियर (Okjokull Glacier):-ओकजोकुल (Okjokull) जिसे ओके (OK) भी कहा जाता है (आइसलैंड में ‘ग्लेशियर’ को ‘जोकुल’ नाम से जाना जाता है) लांगजोकुल समूह (Langjokull Group) का हिस्सा था, जो आइसलैंड के ग्लेशियरों के आठ क्षेत्रीय समूहों में से एक है।

वतनजोकुल (Vatnajokull) समूह उनमें सबसे बड़ा है। वतनजोकुल ग्लेशियर (Vatnajokull Glacier) आइसलैंड के वतनजोकुल राष्ट्रीय उद्यान (Vatnajokull National Park) को हाल ही में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया था, यह यूरोप के सबसे बड़े आइस कैप अर्थात् वतनजोकुल ग्लेशियर में स्थित है। वतनजोकुल राष्ट्रीय उद्यान दक्षिण आइसलैंड में स्थित है इसे वर्ष 2008 में जोकुलसार्गलजुफुर (Jokulsargljufur) और स्काफ्टाफेल राष्ट्रीय उद्यान (Skaftafell National Park) को एक साथ जोड़कर आधिकारिक रूप से बनाया गया था। यह यूरोप का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है जो लगभग 12,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। यह पश्चिम मध्य आइसलैंड में ओके ज्वालामुखी (OK volcano) के ऊपर स्थित है। ग्लेशियोलॉजिस्ट (Glaciologists) द्वारा ने वर्ष 2014 में ओकजोकुल ग्लेशियर की स्थिति का दर्जा छीन लिया गया था। ग्लेशियर/हिमानी/हिमनद (Glacier) पृथ्वी की सतह पर विशाल आकार की गतिशील बर्फराशि को कहते हैं जो अपने भार के कारण पर्वतीय ढालों का अनुसरण करते हुए नीचे की ओर प्रवाहित होती है। यह हिमराशि सघन होती है और इसकी उत्पत्ति ऐसे इलाकों में होती है जहाँ हिमपात की मात्रा हिम के क्षय से अधिक होती है और प्रतिवर्ष कुछ मात्रा में हिम अधिशेष के रूप में बच जाता है।

  • दक्षिण अफ्रीका ने कार्बन टैक्स (Carbon Tax) को 1 जून, 2019 से लागू किया। कार्बन टैक्स प्रदूषण पर नियंत्रण करने का एक साधन है, जिसमें कार्बन के उत्सर्जन की मात्रा के आधार पर जीवाश्म ईंधनों के उत्पादन, वितरण एवं उपयोग पर शुल्क लगाया जाता है।

जलवायु और स्वच्छ वायु संघ (Climate & Clean Air Coalition-CCAC) विश्व के 65 देशों (भारत सहित), 17 अंतर सरकारी संगठनों, 55 व्यावसायिक संगठनों, वैज्ञानिक संस्थाओं और कई नागरिक समाज संगठनों की एक स्वैच्छिक साझेदारी है। इस संघ का प्राथमिक उद्देश्य मीथेन, ब्लैक कार्बन और हाइड्रो फ्लोरोकार्बन जैसे पर्यावरणीय प्रदूषकों को कम करना है। भारत CCAC से जुड़ने वाला विश्व का 65वाँ देश बन गया है।

  • पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र बाहरी कोर में पाया जाता है-बाहरी कोर तरल अवस्था में है।

पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने के कारण तरल बाहरी कोर के अंदर का लोहा चारों ओर घूमकर एक चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण करता है। कई प्रकार की चट्टानों में लोहे के समान गुणधर्म वाले खनिज होते हैं जो छोटे चुंबकों की तरह कार्य करते हैं। मैग्मा या लावा के शांत होने के बाद यह खनिज चुंबकीय क्षेत्र के साथ संरेखित होकर चट्टानों को संरक्षित करता है। लावा प्रवाह चुंबकीय क्षेत्र के आदर्श परिचायक होते हैं। पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र नाटकीय रूप से लंबी कालावधि के दौरान अपनी ध्रुवीयता को बदलता रहता है। वर्तमान में उत्तरी चुंबकीय ध्रुव साइबेरिया के आसपास है इसके कारण हाल ही में GPS को सटीक नेविगेशन हेतु अपने सॉफ़्टवेयर को अपडेट करना पड़ा।

  • 66 डिग्री के ऊपर की अक्षांशीय स्थिति को शीत कटिबंध या फ्रिगिड ज़ोन (Frigid Zone) कहते हैं।इस क्षेत्र में सूर्य की किरणें क्षितिज से ज्यादा ऊपर नहीं आ पाती है। इसलिये यहाँ का औसत तापमान काफी कम रहता है और बर्फ की उपस्थिति भी वर्ष के महीनों तक बनी रहती है। वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस क्षेत्र की बर्फ तेज़ी से पिघल रही है जिसके परिणामस्वरूप चरम मौसमी घटनाओं की बारंबारता बढ़ रही है साथ ही जलवायु अध्ययनों में दीर्घकालिक जलवायु अस्थिरता का भी अनुमान व्यक्त किया जा रहा है।

अमेरिका, कनाडा, आइसलैंड, नार्वे, फिनलैंड, स्वीडन, रूस इत्यादि देश फ्रिज़िड ज़ोन में स्थित हैं।

  • पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में जून, 1992 में विकासशील देशों के एक अलग समूह के रूप में छोटे द्वीपों पर स्थित विकासशील देशों (SIDS) को मान्यता दी गई थी।ये कैरेबियन सागर और अटलांटिक महासागर, हिन्द और प्रशांत महासागरों के द्वीपों पर स्थित राष्ट्र हैं।

SIDS देश वैश्विक स्तर पर होने वाले ग्रीन हाउस उत्सर्जन का 1% ही उत्सर्जित करते हैं जिस कारण प्राकृतिक आपदाओं से इनका नुकसान कम होता है। सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में सतत विकास पर अपनाई गई ‘द फ्यूचर वी वांट’ (The Future We Want) में SIDS की समस्याओं को उजागर किया गया है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा का गठन जून 2012 में किया गया। ध्यातव्य है कि सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन को RIO+20 या RIO 2012 भी कहा जाता है।

  • यू.एस. नेशनल वेदर सर्विस के क्लाइमेट प्रेडिक्शन सेंटर के अनुसार, मैडेन-जूलियन ऑसीलेशन (Maden Julian Oscillation-MJO) लहर की स्थिति और तीव्रता के कारण भारतीय मानसून के आगमन में देरी हो रही है। MJO एक समुद्री-वायुमंडलीय घटना है जो दुनिया भर में मौसम की गतिविधियों को प्रभावित करती है। यह साप्ताहिक से लेकर मासिक समयावधि तक उष्णकटिबंधीय मौसम में बड़े उतार-चढ़ाव के लिये जिम्मेदार मानी जाती है। यह निरंतर प्रवाहित होने वाली घटना है जो हिंद तथा प्रशांत महासागरों में सबसे प्रभावशाली है। इसलिये MJO हवा, बादल और दबाव की एक चलती हुई प्रणाली है। यह जैसे ही भूमध्यरेखा के चारों ओर घूमती है, वर्षा की शुरुआत हो जाती है।

ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र की एक बड़ी कंपनी बीपी पीएलसी (BP PLC, British Corporation) द्वारा की गई समीक्षा के अनुसार, 2010-2011 के बाद वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में उच्चतम दर से वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में पिछले वर्ष वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 2.0 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।

  • आयरलैंड की संसद ने देश में जलवायु आपातकाल घोषित कर दिया है। ब्रिटेन के बाद ऐसा कदम उठाने वाला वह विश्व का दूसरा देश बन गया है। ब्रिटेन ने यह कदम लंदन में एक्सटिंशन रिबेलियन एन्वायरनमेंटल कैम्पेन समूह द्वारा हुए आंदोलन के बाद उठाया था। इस समूह का लक्ष्य वर्ष 2025 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की सीमा शून्य पर लाने और जैवविविधता के नुकसान को समाप्त करना है।
  • यूरोपियन क्लाइमेट फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार यूरोप में 14 प्रतिशत उत्सर्जन स्टील, रसायन एवं सीमेंट उद्योग से होता है। इसे वर्ष 2050 तक शून्य पर लाने का लक्ष्य रखा गया है। वर्ष 2050 तक रिसाइकल करके स्टील और प्लास्टिक की 70 प्रतिशत मांग पूरी की जा सकती है। यूरोपीय संघ ने सरकारों, उद्योगों, नागरिकों और सभी क्षेत्रों से कहा था कि वर्ष 2050 तक जैव ईंधन के प्रयोग से मुक्त बनने की महत्त्वाकांक्षी योजना का हिस्सा बनें। तब यह भी कहा गया था कि यदि यूरोप अपने मौजूदा लक्ष्य पर टिका रहा तो वह वर्ष 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को केवल 50 प्रतिशत तक ही कम कर पाएगा। यह 2015 पेरिस समझौते के तहत किये गए वादे को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
  • स्विट्जरलैंड स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिख के शोधकर्त्ताओं द्वारा डॉल्फिन के प्रजनन और उत्तरजीविता पर गर्म हवा के प्रभाव का अध्ययन किया गया।इनके अनुसार डॉल्फिन के जीवित रहने की दर 12% तक घट गई थी और मादा डॉल्फिन की प्रजनन दर भी कम हो गई थी।2011 में गर्म हवाओं के कारण समुद्री जल का तापमान चार डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया था। इससे पानी के नीचे उगने वाले पौधों (Sea Grass) को काफी नुकसान हुआ था। ये Sea Grass पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के शार्क बे पारिस्थितिकी तंत्र का प्रमुख हिस्सा हैं, जिसे यूनेस्को ने विश्व विरासत सूची में शामिल किया है। इसकी वज़ह से 2017 तक मादा डॉल्फिन की प्रजनन क्षमता सामान्य नहीं हो पाई थी।
  • डेलाइट सेविंग टाइम मार्च में प्रारंभ होकर नवंबर के पहले रविवार को समाप्त होता है। इस साल 10 मार्च को शुरू हो गया है जो 3 नवंबर, 2019 को समाप्त हुआ। वर्ष 2018 में यह 11 मार्च को शुरू 4 नवंबर को समाप्त हुआ था। ग्रीष्म ऋतु में दिन बड़ा होता है,दिन के प्रकाश का अधिकतम उपयोग करने के लिये कई देश गर्मियों में अपनी घड़ियों को एक घंटा आगे सेट कर लेते हैं ताकि जल्दी काम शुरू करके खत्म कर सके। कुछ दिन बाद वे देश फिर से अपने मूल समय पर वापस आ जाते हैं इसे टाइमलाइट सेविंग टाइम कहा जाता है।

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकांश हिस्सों में स्थानीय समयानुसार 2 बजे, अमेरिकियों ने अपनी घड़ियों को एक घंटे आगे सेट किया। इसके बाद timeanddate.com के अनुसार 70 से अधिक देशों ने इसका अनुसरण किया।

भारत डेलाइट सेविंग टाइम का पालन नहीं करता है क्योंकि भूमध्य रेखा के पास के देशों में मौसमों के बीच दिन के समय में उच्च विविधता का अनुभव नहीं होता है।
  • नॉर्वे की राजधानी ओस्लो इलेक्ट्रिक टैक्सियों के लिये वायरलेस चार्जिंग की सुविधा उपलब्ध कराने वाला दुनिया का पहला शहर बन गया है। नॉर्वे सरकार ने एक प्रोजेक्ट के तहत ओस्लो शहर की सड़कों पर इंडक्शन टेक्नोलॉजी के साथ चार्जिंग प्लेट इंस्टॉल किया है, जहां इलेक्ट्रिक कार को चार्ज किया जा सकता है।आज नॉर्वे दुनिया में सबसे अधिक इलेक्ट्रिक कारें रखने वाला देश है और वहाँ 2023 तक शून्य उत्सर्जन प्रणाली कायम करने का लक्ष्य रखा गया है।[३]
  • 30 मार्च को दुनिया भर में स्थानीय समयानुसार रात 8:30 बजे गैर-आवश्यक लाइट बंद कर पृथ्वी दिवस (अर्थ ऑवर) मनाया गया। विश्व वन्यजीव कोष (WWF)द्वारा आयोजित इस अंतर्राष्ट्रीय पहल के तहत लोगों, सरकारी कार्यालयों और अन्य शहरी केंद्रों को पर्यावरण संरक्षण हेतु एक प्रतीक के रूप में घंटे भर के लिये गैर-आवश्यक रोशनी बंद करने की आवश्यकता होती है।[४]

इस कार्यक्रम का प्राथमिक उद्देश्य लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति जागरूक करना है।पहली बार 2007 में सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) में मनाया गया,परंतु इस वर्ष दुनिया भर के 180 से अधिक देशों ने एक साथ अर्थ ऑवर मनाया।

इस अवसर पर 22 अप्रैल को UAE की एतिहाद एयरवेज़ पहली ऐसी एयरलाइन बन गई, जिसने एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक (Single Use Plastic) के बिना उड़ान भरी। एतिहाद की ब्रिसबेन तक की यह उड़ान न केवल फ्लाइट के दौरान प्लास्टिक के उपयोग को 80% तक कम करने के लक्ष्य का हिस्सा थी, बल्कि 2022 के अंत तक पूरे संगठन में यह लक्ष्य हासिल किया जाना है। एतिहाद ने अपने विमानों में 95 से अधिक एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पादों की पहचान की थी। इसके अलावा एतिहाद ने 1 जून तक अपनी उड़ानों में एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं को 20% तक कम करने के लिये प्रतिबद्धता जताई है। साथ ही इस साल के अंत तक एतिहाद अपनी उड़ानों से 100 टन एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को हटा देगा।

प्रदूषण[सम्पादन]

चाइनीज़ ब्रेक फर्न ‘टेरिस विटाटा’ आर्सेनिक का संचयन करता है। इसकी भारी धातु संचयन की क्षमता किसी भी अन्य पौधे या जानवर से अधिक है। शोधकर्त्ताओं ने फर्न में आर्सेनिक संचयन के गुण के लिये उत्तरदायी तीन जीनों की पहचान की है। यह फर्न अपनी जड़ से शाखाओं तक आर्सेनेट के रूप में मृदा में उपलब्ध भारी धातु का संचय करता है। इसके तीन जीन प्रोटीन का निर्माण करते हैं जो आर्सेनेट को पौधे की कोशिकाओं के माध्यम से एक कोशिकीय कक्ष में भेजता है। इस कक्ष को रिक्तिका (Vacuole) कहा जाता है यहाँ आर्सेनिक का संचयन होता है। आर्कटिक क्षेत्र में व्यापक स्तर पर माइक्रोप्लास्टिक्स पाए गए हैं जो वायु संदूषण (Air Contamination) को प्रदर्शित करता है। वैज्ञानिकों ने स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इन कणों के दुष्प्रभाव पर भी चिंता व्यक्त की है।[५] माइक्रोप्लास्टिक्स पाँच मिलीमीटर से कम लंबे प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं। जल निकायों में इनका प्रवेश अन्य प्रदूषकों के वाहक का कार्य करता है। ये खाद्य श्रृंखला में कैंसरजन्य रासायनिक यौगिकों के वाहक होते है। प्रत्येक वर्ष नदियों के माध्यम से कई मिलियन टन प्लास्टिक कचरे का महासागरों में प्रवाह होता है। महासागरों में लहरों की गति और सूर्य के पराबैंगनी प्रकाश के कारण प्लास्टिक छोटे- छोटे टुकड़ों में टूट जाता है।

प्रदूषण से सूखे की स्थिति अधिक गंभीर- भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Tropical Meteorology-IITM), पुणे द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि एल नीनो (El Nino) वर्षों के दौरान दक्षिण एशियाई देशों का प्रदूषण,मानसून पर जलवायु चक्र के प्रभाव में वृद्धि कर सकता है जिससे भारत में सूखे की गंभीरता बढ़ सकती है।

अध्ययन में कहा गया कि एशियाई ट्रोपोपॉज एरोसोल लेयर (Asian Tropopause Aerosol Layer) यानी प्रदूषकों की एक अधिक ऊँचाई वाली परत, में समाहित होने वाले प्रदूषकों के कारण भारतीय उपमहाद्वीप क्षेत्र में सौर विकिरण की मात्रा में कमी आई है। बढ़े हुए एरोसोल लोडिंग से उत्तर भारत और तिब्बती पठार पर असामान्य शीतलन होता है, जो निम्न-दाब प्रणाली को कमज़ोर करता है। इससे मानसून का संचार कमज़ोर होता है और इस तरह सूखे की स्थिति और गंभीर हो जाती है। इस घटना के कारण मध्य भारत में होने वाली वर्षा के स्तर में लगभग 17% की गिरावट दर्ज की गई है। चूँकि दक्षिण एशिया में 2040 के दशक के अंत तक एयरोसोल प्रदूषण लोडिंग के बने रहने की उम्मीद है। ऐसे में उच्च एल नीनो की घटनाओं के घटित होने की उम्मीद है। अतिरिक्त सूचना राष्ट्रीय वायुमंडलीय अनुसंधान प्रयोगशाला का एरोसोल, विकिरण एवं अल्पमात्रिक गैस समूह (Aerosols, Radiation and Trace Gases Group-ARTG) वायुमंडलीय एरोसोल, अल्पमात्रिक गैस, विकिरण, बादलों और उनकी अन्योन्यक्रिया के अध्ययन में संलग्नित है।

सूक्ष्म ठोस कणों अथवा तरल बूंदों के हवा या किसी अन्य गैस में कोलाइड को एरोसोल(Aerosol) कहा जाता है। एरोसोल प्राकृतिक या मानव जनित हो सकते हैं। हवा में उपस्थित एरोसोल को वायुमंडलीय एरोसोल कहा जाता है। धुंध, धूल, वायुमंडलीय प्रदूषक कण तथा धुआँ एरोसोल के उदाहरण हैं। सामान्य बातचीत में, एरोसोल फुहार को संदर्भित करता है, जो कि एक डब्बे या सदृश पात्र में उपभोक्ता उत्पाद के रूप में वितरित किया जाता है। तरल या ठोस कणों का व्यास 1 माइक्रोन या उससे भी छोटा होता है।

नेपाल में एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध-दुनिया के सबसे ऊँचे पर्वत माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) पर प्रदूषण को कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए नेपाल सरकार ने एकल उपयोग वाले प्लास्टिक (Single Use Plastic) पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है।

नेपाल सरकार के इस कदम का उद्देश्य वर्ष 2020 तक एवरेस्ट क्षेत्र को प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र बनाना है। एकल उपयोग प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने वाला यह नियम 1 जनवरी, 2020 से लागू होगा। इस नियम के तहत 30 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। इनमें प्लास्टिक की थैलियाँ, स्ट्रॉ, सोडा और पानी की बोतलें तथा अधिकांशतः खाद्य पैकेजिंग के लिये प्रयुक्त होने वाले प्लास्टिक शामिल है। नेपाल के खंबु क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय लोगों को पाँच अलग-अलग प्रकार और आकार के प्लास्टिक बैग प्रदान किये जाएंगे, जिन्हें वे दैनिक गतिविधियों के लिये उपयोग कर सकते हैं। इसके अलावा नेपाल सरकार आने वाले साल के दौरान देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 'विज़िट नेपाल' (Visit Nepal) नामक अभियान पर भी ध्यान दे रही है, जिसका लक्ष्य 20 लाख विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करना है। उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणविदों द्वारा अक्सर यह चिंता व्यक्त की जाती रही है कि नेपाल ने दुनिया की सबसे ऊँची चोटी के संवेदनशील वातावरण की रक्षा करने हेतु पर्याप्त प्रयास नहीं किये हैं।

प्लास्टिक के विकल्प के रूप में कैक्टस-एक मैक्सिकन शोधकर्त्ता द्वारा कांटेदार कैक्टस (Cactus) के पौधे से निर्मित पैकेजिंग सामग्री विकसित की गई है।वैज्ञानिकों के अनुसार, मेक्सिको के कांटेदार कैक्टस (Cactus) के पौधे से बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का उत्पादन किया जा सकता है। यह दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषकों में से एक पॉलीथीन के लिये एक आशाजनक समाधान प्रस्तुत कर सकती है। हालाँकि यह अभी शुरुआती प्रशिक्षण है लेकिन वर्ष 2020 तक इसे पेटेंट करने तथा बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन किये जाने की संभावना है। यह पैकेजिंग सामग्री सिर्फ एक बार ही प्रयोग किया जा सकता है। बांग्लादेश में नदियों को कानूनी व्यक्ति का दर्जा-बांग्लादेश के उच्च न्यायालय ने नदियों को जीवित इकाई के समान अधिकार दिये जाने संबंधी प्रस्ताव को मंज़ूरी प्रदान की। यह निर्णय वर्ष 2016 में एक अधिकार समूह द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के संबंध में सामने आया। इसके अंतर्गत सैकड़ों नदियों को कानूनी अधिकार प्रदान किया जाएगा । बांग्लादेश नदियों को इस प्रकार के अधिकार प्रदान करने वाला कोलम्बिया, भारत और न्यूजीलैंड के बाद चौथा ऐसा देश बन गया है। माहासागरीय प्लास्टिक कचरे से निपटने हेतु G20 के कार्यान्वयन फ्रेमवर्क को अपनाया गया।इसका उद्देश्य स्वैच्छिक आधार पर महासागरीय अपशिष्ट से निपटने के लिए एक ठोस कार्रवाई को आगे बढ़ाना।

इससे पूर्व G20 हैम्बर्ग शिखर सम्मेलन,2017में महासागरीय अपशिष्ट पर G20 कार्ययोजना को अपनाया गया।
फ्रेमवर्क के अंतर्गत
  1. व्यापक जीवन चक्र दृष्टिकोण(comprehensive life-cycle approach)को बढ़ावा प्रदान करेंगे।
  2. उन्हें समस्या से निपटने में अपनी प्रगति की रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी और साथ ही सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों को साझा करना होगा।
  3. G20 देशों,प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रिय संगठनों ,स्थानीय सरकारों आदि के साथ सहायता और सहयोग स्थापित करना।

पॉली (डाइकेटोनेमाइन)/(Poly Diketoenamine) या PDK पूर्ण रूप से पुनर्चक्रण योग्य एक नए प्रकार का प्लास्टिक जिसे शोधकर्त्ताओं ने हाल में तैयार किया है। पत्रिका ‘नेचर केमिस्ट्री’ में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने एक ऐसा प्लास्टिक बनाया है जिसके बार-बार पुनर्चक्रण के पश्चात् भी गुणवत्ता में कोई कमी नहीं आएगी। पॉली (डाइकेटोनेमाइन)/(Poly Diketoenamine) या PDK प्लास्टिक को सान्द्र अम्लीय विलयन में डुबोकर उसे बुनियादी घटकों में पूरी तरह से तोड़ा जा सकता है। अम्ल एकलक को एडिटिव्स से अलग करता है जो प्लास्टिक को एक विशिष्ट आकार देता हैं।

एकलक (मोनोमर) ऐसा कार्बनिक यौगिक होता है जो बहुलकीकरण (पॉलीमराइजेसन) के माध्यम से बहुलक (पॉलीमर) बनता है।उदाहरण- पाइथिलीन,टेफ्लान,पालीविनाइल क्लोराइड। वैज्ञानिकों द्वारा खोजे गए उक्त प्लास्टिक के एकलकों को पुनः उपयोग के लिये प्राप्त किया जा सकता है या किसी अन्य उत्पाद को बनाने हेतु पुनर्चक्रित किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह प्लास्टिक वर्तमान में उपयोग में लाए जा रहे प्लास्टिक का विकल्प बन सकता है। पारंपरिक प्लास्टिक में आमतौर पर अपरिवर्तनीय रासायनिक बंधन होते हैं, जबकि पॉली (डाइकेटोनेमाइन)/(Poly Diketoenamine) या PDK में ऐसे परिवर्तनीय रासायनिक बंधन होते हैं जो प्लास्टिक को अधिक प्रभावी ढंग से पुनर्चक्रित करने की सुविधा प्रदान करते हैं।

तेल की खपत करने वाले जीवाणु की खोज मारियाना गर्त (Mariana Trench) में की गई है।यहाँ ऐसे सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं जो तेल जैसे यौगिकों को खाते हैं और फिर ईंधन के लिये इसका उपयोग करते हैं।

संयुक्त अरब अमीरात के दुबई में विश्व के सबसे बड़े ई-वेस्ट रिसाइक्लिंग (पुनर्चक्रण) हब की शुरुआत हुई। एनवायरोसर्व कंपनी द्वारा दुबई इंडस्ट्रियल पार्क में खोले गए ई-वेस्ट रिसाइक्लिंग प्लांट पर 5 मिलियन डॉलर की लागत आई है। यहाँ Waste Electrical and Electronic Equipment (WEEE), IT Asset Disposition (ITAD), कोल्ड गैस और विशेष प्रकार के वेस्ट का पुनर्चक्रण किया जाएगा। इस रिसाइक्लिंग हब की प्रसंस्करण क्षमता 100,000 टन प्रतिवर्ष है, जिसमें से 39 हज़ार टन ई-वेस्ट होगा। यह परियोजना स्विस गवर्नमेंट एक्सपोर्ट फाइनेंस एजेंसी द्वारा समर्थित है।[६]

जैव-विविधता[सम्पादन]

  • प्रकृति संरक्षण फाउंडेशन और कोलंबिया विश्वविद्यालय के पारिस्थितिकीविदों द्वारा दो दशक तक किये गए लंबे अध्ययन से पता चला कि सात से पंद्रह वर्षों तक किये गए सक्रिय प्रयासों से उष्णकटिबंधीय वर्षावनों (Tropical rainforest) को पुनर्जीवित किया जा सका था।

वर्ष 2002 में यह अध्ययन शुरू हुआ जो पश्चिमी घाट के अन्नामलाई हिल्स में वर्षावनों के अवशेषों पर केंद्रित था।पारिस्थितिक सुधार के अंतर्गत आक्रामक खरपतवारों के चुने हुए क्षेत्रों को साफ करना तथा देशी प्रजातियों के विविध प्रकारों को शामिल किया गया था।

  • 22 मई को मनाया जानेवाला अंतर्राष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस या विश्व जैव विविधता दिवस की शुरुआत 20 दिसंबर, 2000 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव द्वारा की गई थी।

वर्ष 2019 के लिये अंतर्राष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस (International Day of Biological Diversity) की थीम ‘हमारी जैव-विविधता, हमारा भोजन, हमारा स्वास्थ्य’है। 22 मई,1992 को नैरोबी में जैव-विविधता पर अभिसमय (Convention on Biological Diversity- CBD) के टेक्स्ट को स्वीकार किया गया था। इसलिये 22 मई को प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस मनाया जाता है।

  • खाद्य और कृषि हेतु जैव विविधता

आनुवंशिकी,प्रजातिय और पारिस्थितिकी-तंत्र के स्तर पर जैव-विविधता जीवन की विविधता है। खाद्य और कृषि हेतु जैव विविधता (Biodiversity For Food and Agriculture- BFA) इसी का ही एक हिस्सा है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि और खाद्य उत्पादन में योगदान देता है। जैव-विविधता,उत्पादन प्रणाली और आजीविका को जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान के प्रति अधिक लचीला बनाती है।

  • अमेरिका के एक अंडर-सी एक्सप्लोरर,विक्टर वेस्कोवो ने प्रशांत महासागर के मारियाना गर्त में लगभग 6.8 मील तक गोता लगाया।

यह तीसरी बार था जब इंसान ने समुद्र की सबसे अधिक गहराई तक गोता लगाया है,इस गहराई को चैलेंजर डीप (Challenger Deep) के नाम से जाना जाता है।

  • यूरोपीय संसद ने समुद्र तटों को प्रदूषित करने वाले महासागरों और समुद्रों में उपस्थित एकल-उपयोग प्लास्टिक कचरे पर प्रतिबंध लगाने के लिये मतदान किया। इसके अंतर्गत 2025 तक 25 प्रतिशत तथा 2029 तक 90 प्रतिशत प्लास्टिक की बोतलों का निर्माण पुनर्नवीनीकरण योग्य सामग्री से किया जाएगा।
यूरोपीय संसद के सदस्यों (Member of European parliament- MEP) द्वारा किया गया मतदान यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों में वर्ष 2021 तक एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का मार्ग प्रशस्त करता है।[७]
सौर सुनामी चुंबकीय क्षेत्र की तरंगें हैं और सूर्य से लगभग 400 किमी. प्रति सेकंड की गति से गर्म, आयनीकृत गैस के रूप में गति करती हैं। अत: कथन 1 सही है।
सौर सुनामी की खोज 1997 में यूरोपियन स्पेस एजेंसी (Europen Space Agency) के सोहो (Solar and Heliospheric Observatory-SOHO) द्वारा की गई थी।
  • डेल्टाज़, वल्नरेबिलिटी एंड क्लाइमेट चेंज: माइग्रेशन एंड अडप्टेशन’ (Deltas, Vulnerability and Climate Change: Migration and Adaptation (DECMA) नामक शीर्षक से एक अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन प्रकाशित हुआ।
वर्ष 2014 और 2018 के बीच तीन डेल्टाओं-गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना डेल्टा (भारत और बांग्लादेश),वोल्टा (घाना) और महानदी (भारत) पर केंद्रित इस अध्ययन में डेल्टाओं में जलवायु परिवर्तन,अनुकूलन और प्रवासन के पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।
इसमें कवर किया गये दक्षिण और उत्तर 24 परगना ज़िले के 64% लोग आर्थिक कारणों से प्रवासन करते हैं जिसमें अस्थिर कृषि, आर्थिक अवसरों की कमी और कर्ज़ जैसे कारण शामिल हैं। 28% प्रवासन सामाजिक कारणों से जबकि लगभग 7% प्रवासन के लिये चक्रवात और बाढ़ जैसे पर्यावरणीय कारक ज़िम्मेदार हैं।
अध्ययन में दर्शाया गया है कि पलायन करने वाले लोगों में 83% पुरुषऔर केवल 17% महिलाएँ शामिल हैं।

IIT गुवाहाटी, IIT मंडी और IISC बेंगलुरु के शोधकर्त्ताओं ने हिमालय के नज़दीक बसे 12 प्रदेशों के मौसम परिवर्तन का तुलनात्मक मानचित्र तैयार किया है।असम,मणिपुर,मेघालय,मिज़ोरम, नगालैंड,त्रिपुरा,अरुणाचल प्रदेश,सिक्किम,पश्चिम बंगाल,हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर आदि राज्यों का ज़िलावार नक्शा बनाकर वहाँ के मौसम के बारे में जानकारी साझा की गई है। पर्यावरण के दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील हिमालय के इस मानचित्र में कई बिंदुओं पर फोकस किया गया है, जिनमें मौसम, तापमान, वर्षा, उपज, वन और रहन-सहन के बारे में जानकारियाँ शामिल हैं।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA-4) का चौथा सत्र मार्च 2019 में केन्या के नैरोबी में संपन्न UNEA-4 का विषय 'पर्यावरणीय चुनौतियों और सतत् उपभोग तथा उत्पादन हेतु अभिनव समाधान' (Innovative Solutions for Environmental Challenges and Sustainable Consumption and Production) था।[८]

राष्ट्र इस बात पर सहमत हुए कि उन्हें 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों के तहत लक्ष्य प्राप्त करने हेतु विकास के नए मॉडल की ओर कदम बढ़ाने होंगे।
सभी राष्ट्रों ने सर्वसम्मति से 2030 तक एकल-उपयोग प्लास्टिक उत्पादों जैसे- कप, कटलरी और बैग आदि में कटौती करने पर भी सहमति व्यक्त की।
इस सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nation Environment Programme-UNEP) ने वैश्विक पर्यावरण आउटलुक रिपोर्ट का छठा संस्करण भी जारी किया है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (United Nations Environment Assembly-UNEA)

सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन RIO+20 या RIO 2012 के दौरान जून 2012 में गठित संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा,संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का प्रशासनिक निकाय है।जो पर्यावरण के संदर्भ में निर्णय लेने वाली विश्व की सर्वोच्च संस्था है।
यह दुनिया के सामने आने वाली महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों को संबोधित करती है।
यह वैश्विक पर्यावरण नीतियों हेतु प्राथमिकताएँ निर्धारित करने और अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून विकसित करने के लिये हर दो वर्ष में एक बार आयोजित की जाती है।

ग्लोबल फैसिलिटी फॉर डिज़ास्टर रिडक्शन एंड रिकवरी(Global Facility for Disaster Reduction and Recovery-GFDRR)- विकासशील देशों को प्राकृतिक खतरों और जलवायु परिवर्तन के प्रति उनकी भेद्यता को बेहतर ढंग से समझने और कम करने में मदद हेतु एक वैश्विक साझेदारी है।

सितंबर 2006 में स्थापित GFDRR,विश्व बैंक द्वारा प्रबंधित अनुदान प्रक्रिया है,जो दुनिया भर में आपदा जोखिम प्रबंधन परियोजनाओं का समर्थन करती है।यह जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क के कार्यान्वयन में योगदान देता है।
400 से अधिक स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ काम करते हुए GFDRR ज्ञान, वित्तपोषण और तकनीकी सहायता प्रदान करता है।[९]

उद्देश्य:-देश की विकास रणनीति के तहत मुख्यतः आपदाओं में कमी लाना और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन (CCA) तथा आपदा न्यूनीकरण (ISDR) प्रणाली के लिए अंतर्राष्ट्रीय रणनीति के तहत विभिन्न हितधारकों के बीच वैश्विक और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना एवं उसे मजबूत करना।

यह आपदा जोखिम प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन को विकास की रणनीतिय और निवेश कार्यक्रमों में एकीकृत कर आपदाओं से जल्दी और प्रभावी ढंग से उबरने में देशों की मदद करने हेतु
  • 13वें जंगली जानवरों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर सम्मेलन(CMS)का आयोजन 15 से 22 फरवरी, 2020 के दौरान भारत में गुजरात के गांधीनगर में किया जाएगा।
  • इसेबॉन कन्वेंशन भी कहा जाता है।यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के तत्त्वावधान में की गई एक पर्यावरणीय संधि है, जो प्रवासी जानवरों के संरक्षण तथा उनके आवास के स्थायी उपयोग के लिये एक वैश्विक मंच प्रदान करता है।

हिंदुकुश हिमालय में दो-तिहाई ग्लेशियर के वर्ष 2100 तक पिघलने की संभावना- इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) द्वारा किए गए अध्ययन के निष्कर्ष के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग कम करने से जुड़े पेरिस समझौते के अनुसार, वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक रोकने में सफलता मिलने के बावजूद हिमालय के हिन्दु कुश क्षेत्र के तापमान में 2.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोतरी हो सकती है। इसके चलते इस क्षेत्र में स्थित एक-तिहाई ग्लेशियर पिघल सकते हैं।[१०]

हिंदुकुश हिमालय उत्तरी एवं दक्षिण ध्रुवों के बाद तीसरा सबसे बड़ा बर्फ का क्षेत्र है और 1970 के दशक से लगातार ग्लोबल वार्मिंग से प्रभावित है।
ग्लेशियर पिघलने से इस क्षेत्र में हिमनदों की लगभग 8,790 झीलें हैं जिनमें से 203 हिमनद झीलों में भयंकर बाढ़ आ सकती है।
सामान्यतः हिंदुकुश में हर साल औसतन 76 घटनाएँ ऐसी पाई जाती हैं, जिनमें चीन में लगभग 25 तथा भारत में 18 घटनाएँ हैं।
भारत समेत 22 देशों के 350 से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा किया गया यह अध्ययन सोमवार को काठमांडू में जारी किया गया है।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) की स्थापना 1988 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य नीति निर्माताओं को जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार, इसके प्रभावों और भविष्य में होने वाले जोखिमों तथा अनुकूलन एवं शमन के विकल्पों का नियमित आकलन प्रदान करना है।

  • रिन्यूएबल एनर्जी नेटवर्क फॉर द 21st सेंचुरी (REN21)द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा 2018 ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट जारी किया गया।
  • जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (CCPI),जर्मनवाच,कैन इंटरनेशनल और न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित किया जाता है। CCPI अंतर्राष्ट्रीय जलवायु राजनीति में पारदर्शिता बढ़ाने के लिये तैयार किया गया एक उपकरण है।भारत का स्कोर 93 है और समग्र सूचकांक में यह 11वें स्थान पर है।

अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय संस्थाएं[सम्पादन]

CITES (The Convention of International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) वन्यजीवों और वनस्पतियों की संकटापन्न प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर देशों के बीच एक समझौता है। यह समझौता 1 जुलाई,1975 से लागू है। लेकिन भारत इस समझौते के लागू होने के लगभग एक साल बाद 18 अक्तूबर, 1976 को इसमें शामिल होने वाला 25वाँ सदस्य बना। वर्तमान में CITES के पक्षकारों की संख्या 183 है। समझौते के तहत संकटापन्न प्रजातियों को तीन परिशिष्टों में शामिल किया जाता है:

परिशिष्ट I:-इसमें शामिल प्रजातियाँ ‘लुप्तप्राय’ हैं, जिन्हें व्यापार से और भी अधिक खतरा हो सकता है।
परिशिष्ट II:-इसमें ऐसी प्रजातियाँ शामिल हैं जिनके निकट भविष्य में लुप्त होने का खतरा नहीं नहीं है लेकिन ऐसी आशंका है कि यदि इन प्रजातियों के व्यापार को सख्त तरीके से नियंत्रित नहीं किया गया तो ये लुप्तप्राय की श्रेणी में आ सकती हैं।
परिशिष्ट III:- इसमें वे प्रजातियाँ शामिल हैं जिसकी किसी एक पक्ष/देश द्वारा नियंत्रण/संरक्षण के लिये पहचान की गई है। इस परिशिष्ट में शामिल प्रजातियों के व्यापार को नियंत्रित करने के लिये दूसरे पक्षों का सहयोग अपेक्षित है।

भारत ने अगस्त के अंत में स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में होने वाली CITES सचिवालय (Secretariat) की बैठक में विभिन्न वन्यजीव प्रजातियों की सूची में बदलाव संबंधी एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत प्रस्ताव में Smooth-Coated Otter, छोटे-पंजे वाले ओटर (Small-Clawed Otter), भारतीय स्टार कछुआ, टोके गेको (Tokay Gecko), वेजफिश (Wedgefish) और भारतीय शीशम (Indian Rosewood) की सूची में बदलाव के बारे में बात की गई हैं। भारतीय शीशम को CITES परिशिष्ट II से हटाने का प्रस्ताव किया गया है। CITES द्वारा सुरक्षा की आवश्यकता के आधार पर प्रजातियों को तीन परिशिष्टों में सूचीबद्ध किया गया है।

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. https://ec.europa.eu/info/strategy/priorities-2019-2024/european-green-deal/actions-being-taken-eu_en
  2. https://www.un.org/en/climatechange/un-climate-summit-2019.shtml
  3. https://www.theverge.com/2019/3/21/18276541/norway-oslo-wireless-charging-electric-taxis-car-zero-emissions-induction
  4. https://www.un.org/sustainabledevelopment/blog/2019/03/earth-hour-2019/
  5. https://www.nationalgeographic.com/environment/2019/08/microplastics-found-in-arctic-snow/
  6. https://www.civilhindipedia.com/blogs/blog_post/world-s-largest-e-waste-recycling-hub-begins-in-dubai
  7. https://www.theguardian.com/environment/2019/mar/27/the-last-straw-european-parliament-votes-to-ban-single-use-plastics
  8. https://www.unenvironment.org/events/un-environment-event/un-environment-assembly
  9. https://www.gfdrr.org/en/who-we-are
  10. https://www.downtoearth.org.in/hindistory///one-third-of-the-glaciers-can-melt-by-the-end-of-the-century-63123