हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/अतिसरूपग
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अति सरूप दुइ सिहुन अमोले। जिन्ह देखत त्रिभुवन मन डोलै।
कठिन हिरदै महं विधि निरमए। तातें कठिन सिहुन दुइ भए।
जबहिं हिरदै हिरदै संचरे। कुच आदर कहँ उठ भै खरे।
दुवौ अनूप सिरीफल नए। भेंट आनि तरु नापैं देए।
जबहिं प्रानपति हियरे छाए। कुछ स्कोच उठि बाहेर आए।
दुनउं कठोरे कलिसिरे गरब न काहू नवाहिं।
दुवौ सीवं के संझइत आपुस महिं न मिलहिं॥