हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/कवितावली
बालरूप की झांकी
अवधेस के द्वारे सकारे गई सुत गोद में भूपति लै निकसे।
अवलोकि हौं सोच बिमोचन को ठगि-सी रही,जे न ठगे धिक-से।
'तुलसी' मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन जातक-से।
सजनी ससि में समसील उभै नवनील सरोरुह-से बिकसे।।
(1)अयोध्याकाण्ड
सुनि सुंदर बैन सुधारस-साने, सयानी हैं जानकी जानी भली।
तिरछै करि नैन, दे सैन, तिन्हैं, समुझाइ कछु मुसुकाइ चली।
'तुलसी' तेहि औसर सोहैं सबै, अवलोकति लोचन लाहू अली।
अनुराग तड़ाग में भानु उदै, बिगसीं मनो मंजुल कंजकली।।
उत्तरकाण्ड
(१)
किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी ,भाट,
चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।।
पेटको पढ़त , गुन गढ़त , चढ़त गिरि,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी।।
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम, करि,
पेटही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।
‘तुलसी’ बुझाइ ऐक राम घनस्याम ही तें,
आगि बड़वागितें बड़भ् है आगि पेटकी।।
आगि बड़वागितें बड़भ् है आगि पेटकी।।
(२)
धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ।
काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ।।
तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ
माँगि कै खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु न दैबको दोऊ।।