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हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/विनय पत्रिका

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हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)
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विनय पत्रिका


(1)

अब लौं नसनी, अब न नसैहौं ।

राम कृपा भव-निसा सिरानी, जागे पुनि न डसैहौं ।।1।।

पायो नाम चारु चिंतामनि, उर कर ते न खसैहौं ।

स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहि कसैहौं ।।2।।

परबस जानि हंस्यो इन इंद्रिन निज बस ह्वै न हंसैहौं ।

मन मधुकर पन कर तुलसी रघुपति पद कमल बसैहौं ।।3।।


(2)

केशव , कहि न जाइ का कहिये ।

देखत तव रचना विचित्र अति ,समुझि मनहिमन रहिये ।

शून्य भीति पर चित्र ,रंग नहि तनु बिनु लिखा चितेरे ।

धोये मिटे न मरै भीति, दुख पाइय इति तनु हेरे।

रविकर नीर बसै अति दारुन ,मकर रुप तेहि माहीं ।

बदन हीन सो ग्रसै चराचर ,पान करन जे जाहीं ।

कोउ कह सत्य ,झूठ कहे कोउ जुगल प्रबल कोउ मानै ।

तुलसीदास परिहरै तीनि भ्रम , सो आपुन पहिचानै ।


(3)

ऐसो कौ उदार जग माहीं ।

बिनु सेवा जो द्रवे दीन पर, राम सरस कोउ नाहि ॥1।।

जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावत मुनि ज्ञानी ।

सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी ॥2।।

जो संपति दस सीस अरप करि रावण सिव पहँ लीन्हीं ।

सो संपदा विभीषण कहँ अति सकुच सहित हरि दीन्हीं ॥3।।

तूलसीदासलसीदास सब भांति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो ।

तो भजु राम काम सब पूरन करहि कृपानिधि तेरो ॥