हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन)/सम्रथाई कौ अंग
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(11)
कबीर वार्या नाव परि, किया राई लुण।
जिसहि चलावे पंथ तू, तिसही भुलावे कौन।।
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कबीर वार्या नाव परि, किया राई लुण।
जिसहि चलावे पंथ तू, तिसही भुलावे कौन।।