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हिंदी कविता (आदिकालीन एवं भक्तिकालीन) सहायिका/अतिसरूपग

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मंझन/

सन्दर्भ

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प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि मंझन द्वारा रचित हैं। यह उनकी कृति 'मधुमालती' से उद्धृत हैं। यह 'अधार वर्णन' से अवतरित हैं।

प्रसंग

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इसमें कवि ने उसके दोनों स्तनों का अत्यंत सुंदर रूप में वर्णन किया है। जो भी उन्हें देखता है वह देखता ही रह जाता है वे अपने में अनमोल हैं। कवि ने उसी के बारे में यहाँ वर्णन किया है। वह कहता है कि -

व्याख्या

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अति सरूप दुइ सिहुन अमोले......दुवौ सीवं के संझइत आपुस महिं न चलहिं।।

मधुमालती के दोनों स्तन अपने में अति सुंदर हैं। उनकी सुंदरता देखते ही बनती है। वे दोनों अपने में अनमोल हैं। जिनको देखकर तीनों लोगों के निवासियों का मन चंचल हो जाता है। वे अपने मन पर काबू नहीं रख पाते हैं। स्वयं विधाता ने इनको कठोर हृदय में हृदय पर निर्मित किया है। इसी से ये दोनों स्तन कठोर हो गये हैं। जब भी हृदय से हृदय मिलता है तभी ये स्तन आकर प्रकट करने के लिए उठ कर खड़े हो जाते हैं। अर्थात् उनमें कठोरता एवं अकड़न पैदा हो जाती है। ऐसे लगता है जैसे वे उठ खड़े हुए हैं। कवि कहता है कि ये दोनों ही अपने में अनुपम हैं और श्रीफल की भांति हैं। वे मानों श्रीफल के रूप में तारूण्य ने उसे में कर दिए हों। जवानी ने स्वयं ही उसे दिए हैं।

कहने का तात्पर्य यह है कि स्वयं तारूण्य ने आकर मधु मालती को भेंट-स्वरूप प्रदान किया हो। देखकर कोई भी अपने प्राणों को काबू में नहीं रख पाता है। वे लोगों के मन पर अपना प्रभाव छोड़ देते हैं। वे भी संकोच में बाहर आ गए। वे दोनों कठोर हैं मगर उन्हें कोई भी अपने में गर्व महसूस नहीं हो रहा है वे न ही नीचे झुकते हैं दोनों की अपनी सीमा है। वे अपने में विजयी हैं। वे आपस में दोनों नहीं मिलते हैं।

विशेष

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इसमें कवि ने मुधमालती के स्तनों को वनावट, सुंदरता एवं कठोरता का वर्णन किया है। वे अपने में अति सुंदर हैं। इनकी वजह से ही उसके शरीर की शोभा में वृद्धि हो रही है अवधी भाषा में उत्कर्ष है। मिश्रण की शोभा में वृद्धि हो रही है। अवधी भाषा है। भावों में उत्कर्ष है। चयन अपने में सुंदर है। सौंदर्य चित्रण देखते ही बनता है।

शब्दार्थ

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सिहुन - स्तन। अमोल = अनमोल। निरमए = निर्मित किये। तातें - इसी से। कठिन = कठोर। संचरे = मिलना। भै = हुए। खरे = खड़े तन ज्ञान। सिरीफल = श्री-फल, बेल। आनि = आकार। तरु नापैं = तारुण्य, यौवन। हियरे - मन में। कुच = स्तन। नवाहिं - झुकते। सीवं - सीमा। संझरत = विजेता। महिं = में।