हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/झाँसी की रानी की समाधि पर
संदर्भ
झांसी की रानी की समाधि कविता प्रसिद्ध कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित हैं। वह एक स्वच्छंद व्यक्तित्व वाली है।
प्रसंग
झाँसी की रानी की समाधि पर कविता में सुभद्रा जी ने रानी लक्ष्मीबाई की समाधि का वर्णन करते हुए उनके वीरता का गुणगान करती है।
व्याख्या
कवियित्री लक्ष्मी बाई की समाधि के विषय पर कहती है यह समाधि एक राख कि ढेरी है। वह जल के अमर हो गई है। उन्होंने स्वतंत्रता की बलीवेदी पर मित कर अपनी चित्ता प्र जलकर सुंदर आरती करी है। रानी टूटी हुई विजयमाला के समान इसी समाधि के आस पास स्वर्ग सिधार गई। उनकी वस्तु यही पर इक्कठा है मानो समाधि उनका स्मृति स्थल है। उस वीरांगना ने अंग्रेज़ो अनेक हमले सहन करे उन्होंने स्वतंत्रता के महायज्ञ में आहुति दी। युद्ध में वीरगति पाने से वीरो का मान सम्मान बढ़ता है। ठीक वैसे ही जैसे स्वर्ण भस्म स्वर्ण से ज्यादा मूल्यवान होता हैं। स्वाधीनता की चमक उनके समाधि में है। रानी लक्ष्मबाई जी की समाधि से भी सुंदर समाधियां संसार में मौजूद है परन्तु उनके किस्से छोटे छोटे जंतुओं तक ही सीमित है। लक्ष्मीबाई की समाधि अमर समाधि है। वीरो की शौर्य गाथाओं का बखान कवि स्नेह के साथ करते है। कवियित्री कहती है हम बुंदेलखंड में रहनेवाले लोगो से रानी की गाथाएं सुनी है। अंग्रेजो के साथ रानी ने अंतिम समय तक डटकर सामना करा।
विशेष
1) भाषा सरल है।
2)रानी लक्ष्मबाई जी की समाधि का वर्णन है।
3)मानवीकरण अलंकार है।
4)वीरता का वर्णन है।
5)तत्सम शब्दों का प्रयोग है।
6) माधुर्य गुण है।