हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/बादल राग

विकिपुस्तक से
हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका
 ← संध्या सुंदरी बादल राग वह तोड़ती पत्थर → 
बादल राग


संदर्भ -

बादल राग कविता ‘अनामिका’ काव्य से ली गई है। निराला को वर्षा ऋतु अधिक आकृष्ट करती है, क्योंकि बादल के भीतर सृजन और ध्वंस की ताकत एक साथ समाहित है। बादल किसान के लिए उल्लास और निर्माण का अग्रदूत है तो मजदूर के संदर्भ में क्रांति और बदलाव। ‘बादल राग’ निराला जी की प्रसिद्ध कविता है।

प्रसंग-


बादल राग' निराला जी की प्रसिद्ध कविता है। वे बादलों को क्रांतिदूत मानते हैं। बादल शोषित वर्ग के हितैषी हैं, जिन्हें देखकर पूँजीपति वर्ग भयभीत होता है। बादलों की क्रांति का लाभ दबे-कुचले लोगों को मिलता है, इसलिए किसान और उसके खेतों में बड़े-छोटे पौधे बादलों को हाथ हिला-हिलाकर बुलाते हैं।

व्याख्या- कवि बादल को संबोधित करते हुए कहते है कि हे क्रांतिदूत रूपी बादल! तुम आकाश में ऐसे मंडराते रहते हो जैसे पवन रूपी सागर पर कोई नौका तैर रही हो। यह उसी प्रकार है जैसे अस्थिर सुख पर दुख की छाया मंडराती रहती है। सुख हवा के समान चंचल है तथा अस्थायी है। बादल संसार के जले हुए हृदय पर निर्दयी प्रलयरूपी माया के रूप में हमेशा स्थित रहते हैं। बादलों की युद्ध रूपी नौका में आम आदमी की इच्छाएँ भरी हुई रहती हैं। कवि कहता है कि हे बादल! तेरी भारी-भरकम गर्जना से धरती के गर्भ में सोए हुए अंकुर सजग हो जाते हैं अर्थात कमजोर व निष्क्रिय व्यक्ति भी संघर्ष के लिए तैयार हो जाते हैं। हे विप्लव के बादल! ये अंकुर नए जीवन की आशा में सिर उठाकर तुझे ताक रहे हैं अर्थात शोषितों के मन में भी अपने उद्धार की आशाएँ फूट पड़ती हैं।


व्याख्या- कवि कहते है कि हे क्रांतिकारी बादल! तुम बार-बार गर्जन करते हो तथा मूसलाधार बारिश करते हो। तुम्हारी वज्र के समान भयंकर आवाज को सुनकर संसार अपना हृदय थाम लेता है अर्थात भयभीत हो जाता है। बिजली गिरने से आकाश की ऊँचाइयों को छूने की इच्छा रखने वाले ऊँचे पर्वत भी उसी प्रकार घायल हो जाते हैं जैसे रणक्षेत्र में वज़ के प्रहार से बड़े-बड़े वीर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में, बड़े लोग या पूँजीपति ही क्रांति से प्रभावित होते हैं। इसके विपरीत, छोटे पौधे हँसते हैं। वे उस विनाश से जीवन प्राप्त करते हैं। वे अपार हरियाली से प्रसन्न होकर हाथ हिलाकर तुझे बुलाते हैं। विनाश के शोर से सदा छोटे प्राणियों को ही लाभ मिलता है। दूसरे शब्दों में, क्रांति से निम्न व दलित वर्ग को अपने अधिकार मिलते हैं। आगे कवि कहते है कि पूँजीपतियों के ऊँचे-ऊँचे भवन मात्र भवन नहीं हैं अपितु ये गरीबों को आतंकित करने वाले भवन हैं। ये सदैव गरीबों का शोषण करते हैं। वर्षा से जो बाढ़ आती है, वह सदा कीचड़ से भरी धरती को ही डुबोती है। भयंकर जल-प्लावन सदैव कीचड़ पर ही होता है। यही जल जब कमल की पंखुड़ियों पर पड़ता है तो वह अधिक प्रसन्न हो उठता है। प्रलय से पूँजीपति वर्ग ही प्रभावित होता है। निम्न वर्ग में बच्चे कोमल शरीर के होते हैं तथा रोग व कष्ट की दशा में भी सदैव मुस्कराते रहते हैं। वे क्रांति होने में भी प्रसन्न रहते हैं। पूँजीपतियों ने आर्थिक साधनों पर कब्जा कर रखा है। उनकी धन इकट्ठा करने की इच्छा अभी भी नहीं भरी है। इतना धन होने पर भी उन्हें शांति नहीं है। वे अपनी प्रियाओं से लिपटे हुए हैं फिर भी बादलों की गर्जना सुनकर काँप रहे हैं। वे क्रांति की गर्जन सुनकर भय से अपनी आँखें बँद किए हुए हैं तथा मुँह को छिपाए हुए हैं। अंतिम में कवि कहता है कि हे विप्लव के वीर! शोषण के कारण किसान की बाँहें शक्तिहीन हो गई हैं, उसका शरीर कमजोर हो गया है। वह शोषण को खत्म करने के लिए अधीर होकर तुझे बुला रहा है। शोषकों ने उसकी जीवन-शक्ति छीन ली है, उसका सार तत्त्व चूस लिया है। अब वह हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया है। हे जीवन-दाता! तुम बरस कर किसान की गरीबी दूर करो। क्रांति करके शोषण को समाप्त करो।

विशेष -

1) कवि ने किसान की दयनीय दशा का सजीव चित्रण किया है।

2) विद्रोह की भावना का वर्णन किया है।

3)‘शीर्ण शरीर’ में अनुप्रास अलंकार है तथा काव्यांश में मानवीकरण अलंकार है।

4) तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।

5) मुक्तक छंद है।

6) संबोधन शैली का भी प्रयोग है।

7) चित्रात्मक शैली है।

8) वीर रस की प्रधानता है।